By नीरज कुमार दुबे | Jul 06, 2023
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह एससीओ शिखर सम्मेलन, रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात, इजराइल-फिलस्तीन संघर्ष, फ्रांस में हुई हिंसा और कनाडा-अमेरिका में बढ़ती खालिस्तानी गतिविधियों संबंधी मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ बातचीत की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-
प्रश्न-1. एससीओ शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद का मुद्दा उठाया, चीन की बेल्ड एंड रोल पहल का विरोध किया। चीन के राष्ट्रपति ने शीत युद्ध के खिलाफ आगाह किया, पुतिन ने सशस्त्र विद्रोह का मुद्दा उठाया, पाकिस्तान ने आतंकवाद को ‘कई सिर वाला राक्षस’ बताया। इस सबको कैसे देखते हैं आप? साथ ही ईरान को इस संगठन का सदस्य बनाने से क्या लाभ होगा?
उत्तर- यह अच्छी बात रही कि शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य देशों के नेताओं ने आतंकवाद के किसी भी कृत्य को ‘‘आपराधिक, अनुचित’’ करार देते हुए राजनीतिक एवं भू-राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आतंकवादियों एवं चरमपंथी समूहों के इस्तेमाल को ‘‘अस्वीकार्य’’ बताया। एससीओ देशों ने अपने-अपने राष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप ऐसे आतंकवादियों, अलगाववादियों और चरमपंथी समूहों की समान सूची तैयार करने के लिए साझा सिद्धांत विकसित करने पर सहमति व्यक्त की, जिनकी गतिविधियां सदस्य देशों के क्षेत्रों में प्रतिबंधित है। भारत की अध्यक्षता में डिजिटल माध्यम से आयोजित इस बैठक के समापन पर एक साझा बयान जारी किया गया। इसमें कहा गया है कि सदस्य देश आतंकवाद के वित्त पोषण के माध्यमों को रोकने, आतंकी भर्ती से जुड़ी गतिविधियों को बंद करने और सीमापार आतंकवादियों की आवाजाही पर लगाम लगाने के साथ आतंक के छिपे स्वरूपों और आतंकवादियों की पनाहगाहों को समाप्त करने की दिशा में कदम उठाएंगे। इसमें कहा गया है कि सदस्य देश आतंकवाद के सभी स्वरूपों की कड़े शब्दों में निंदा करने को प्रतिबद्ध हैं, चाहे यह किसी के द्वारा और किसी उद्देश्य के लिए होता हो। साझा बयान में कहा गया है कि आतंकवाद को किसी धर्म, सभ्यता, राष्ट्रीयता या जातीय समूह से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ आदि मौजूद थे। शिखर बैठक में अलग से ‘दिल्ली घोषणापत्र’ जारी किया गया जिसमें कहा गया है कि एससीओ के सदस्य देश आतंकवाद के प्रसार से निपटने के लिए उपयुक्त माहौल तैयार करने को प्रतिबद्ध हैं। इसमें डिजिटल परिवर्तन पर भी एक घोषणापत्र जारी किया गया।
इस बैठक के दौरान भारत ने चीन की महत्वाकांक्षी ‘बेल्ट एंड रोड’ परियोजना (बीआरआई) का एक बार फिर समर्थन करने से इंकार कर दिया। इसी के साथ वह इस परियोजना का समर्थन नहीं करने वाला शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का एकमात्र देश बन गया। भारत की मेजबानी में वर्चुअल माध्यम से आयोजित एससीओ शिखर सम्मेलन के अंत में जारी घोषणा में कहा गया कि रूस, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान ने बीआरआई के प्रति अपना समर्थन दोहराया है। घोषणा के मुताबिक, “चीन की ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (बीआरआई) पहल के लिए अपने समर्थन की पुष्टि करते हुए कजाकिस्तान गणराज्य, किर्गिज गणराज्य, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान गणराज्य और उज्बेकिस्तान गणराज्य ने संयुक्त रूप से इस परियोजना को लागू करने के लिए जारी काम पर ध्यान केंद्रित किया, जिसमें यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन और बीआरआई के निर्माण को जोड़ने का प्रयास भी शामिल है।” इसमें कहा गया है, “इन देशों ने इच्छुक सदस्य देशों द्वारा आपसी समझौतों के तहत राष्ट्रीय मुद्राओं की हिस्सेदारी में क्रमिक वृद्धि के रोडमैप को लागू करने के पक्ष में बात की।” घोषणा के अनुसार, सदस्य राज्यों ने ‘इच्छुक सदस्य देशों’ द्वारा अपनाई गई एससीओ आर्थिक विकास रणनीति 2030 के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना और डिजिटल अर्थव्यवस्था, उच्च प्रौद्योगिकी एवं सड़क तथा रेल परिवहन के लिए मौजूदा अंतरराष्ट्रीय मार्गों के आधुनिकीकरण जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से परियोजनाओं को गति देना महत्वपूर्ण माना। शिखर सम्मेलन में अपने उद्घाटन भाषण में, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सम्पर्क को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि ऐसे प्रयास करते समय एससीओ चार्टर के बुनियादी सिद्धांतों, विशेष रूप से सदस्य देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना आवश्यक है।
इसके अलावा, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने क्षेत्र में एक नया ‘शीत युद्ध’ भड़काने के बाहरी प्रयासों के खिलाफ आगाह किया तथा शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य देशों से आतंकवाद के खिलाफ एकजुट कार्रवाई के साथ क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने का आह्वान किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई एससीओ के शासनाध्यक्षों की परिषद की 23वीं बैठक को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए जिनपिंग ने सदस्य देशों से एक-दूसरे के मूल हितों और प्रमुख चिंताओं का ‘‘वास्तव में सम्मान’’ करने का आग्रह किया। अमेरिका की परोक्ष रूप से आलोचना करते हुए शी ने आधिपत्यवाद और ‘ताकत की राजनीति’ का विरोध करने और वैश्विक शासन व्यवस्था को निष्पक्ष तथा अधिक न्यायसंगत बनाने का भी आह्वान किया। राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हमें अपने क्षेत्र के समग्र और दीर्घकालिक हितों को ध्यान में रखना चाहिए और अपनी विदेश नीतियां स्वतंत्र रूप से बनानी चाहिए। हमें अपने क्षेत्र में एक नए शीत युद्ध या गुटबंदी-आधारित टकराव को बढ़ावा देने के बाहरी प्रयासों के खिलाफ अत्यधिक सतर्क रहना चाहिए।’’
अमेरिका के साथ चीन के तनाव भरे संबंधों के बीच शी ने कहा, ‘‘हमें अपने आंतरिक मामलों में किसी भी हस्तक्षेप और किसी भी बहाने से किसी भी देश द्वारा प्रदर्शन को उकसावे को दृढ़ता से अस्वीकार करना चाहिए। हमारे विकास का भविष्य मजबूती से हमारे ही हाथों में होना चाहिए।’’ उन्होंने बहुपक्षीयता को बरकरार रखने और वैश्विक प्रशासन को बेहतर बनाने के लिए प्रयास करने के महत्व को रेखांकित किया। शी ने क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा एससीओ देशों के बीच आदान प्रदान एवं लोगों के बीच सम्पर्क बढ़ाने के लिए प्रयास करने पर भी जोर दिया। राष्ट्रपति ने कहा कि चीन बातचीत और परामर्श के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय विवादों के निपटारे को बढ़ावा देने के लिए उनके द्वारा प्रस्तावित वैश्विक सुरक्षा पहल (जीएसआई) को लागू करने के लिए सभी पक्षों के साथ काम करने को तैयार है। शी ने यह भी कहा, ‘‘हमें अपने कानून प्रवर्तन और सुरक्षा सहयोग के लिए तंत्र को मजबूत करने तथा डिजिटल, जैविक और बाहरी अंतरिक्ष सुरक्षा सहित गैर-पारंपरिक सुरक्षा क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार करने के लिए तेजी से आगे बढ़ना चाहिए।’’ तालिबान शासित अफगानिस्तान पर शी ने कहा कि एससीओ देशों को अफगानिस्तान के पड़ोसियों के बीच समन्वय और सहयोग के तंत्र जैसे मंच का उपयोग जारी रखना चाहिए। शी ने कहा, ‘‘हमें रणनीतिक संचार और समन्वय को बढ़ाना चाहिए, बातचीत के माध्यम से मतभेदों को दूर करना चाहिए और प्रतिस्पर्धा को सहयोग से बदलना चाहिए। हमें वास्तव में एक-दूसरे के मूल हितों और प्रमुख चिंताओं का सम्मान करना चाहिए तथा विकास और कायाकल्प के लिए एक-दूसरे के प्रयासों का दृढ़ता से समर्थन करना चाहिए।’’ शी की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब भारतीय और चीनी सैनिक पूर्वी लद्दाख में गतिरोध के कुछ बिंदुओं पर तीन साल से अधिक समय से आमने-सामने हैं। भारत ने चीन को यह स्पष्ट कर दिया है कि जब तक सीमावर्ती इलाकों में शांति नहीं होगी, दोनों देशों के बीच संबंध आगे नहीं बढ़ सकते।
सरकारी ‘शिन्हुआ’ समाचार एजेंसी के अनुसार, शी ने एससीओ सदस्य देशों से देशों को जोड़ने एवं सम्पर्क बढ़ाने के लिए अरबों डालर की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजना के तहत विभिन्न देशों की विकास रणनीति एवं क्षेत्रीय सहयोग पहल के जरिये उच्च गुणवत्तापूर्ण सहयोग की वकालत की। राष्ट्रपति शी ने 2013 में सत्ता में आने के बाद बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) की शुरूआत की थी। इसका मकसद भूमि और समुद्र मार्ग के माध्यम से दक्षिण पूर्व एशिया, पश्चिम एशिया, खाड़ी क्षेत्र, अफ्रीका और यूरोप को जोड़ना है। बीआरआई के तहत ही 60 अरब डालर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की शुरूआत की गई है। भारत ने इस पर गंभीर आपत्ति दर्ज कराई है क्योंकि यह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है।
इसके अलावा, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा कि आतंकवाद और उग्रवाद के ‘‘कई सिर वाले राक्षस’’ से पूरी ताकत और दृढ़ता के साथ लड़ा जाना चाहिए। उन्होंने इसे कूटनीतिक फायदे के लिए हथकंडे के तौर पर इस्तेमाल करने के खिलाफ भी आगाह किया। भारत द्वारा आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के राष्ट्राध्यक्षों की 23वीं बैठक को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए उन्होंने धार्मिक अल्पसंख्यकों के बारे में भी बात की। प्रधानमंत्री शरीफ ने कहा, ‘‘आतंकवाद और उग्रवाद के कई सिर वाले राक्षस से-चाहे वह व्यक्तियों, समाज या राज्यों द्वारा प्रायोजित हो- पूरी ताकत और दृढ़ विश्वास के साथ लड़ना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में कूटनीतिक मुद्दे के लिए इसे एक औजार के रूप में इस्तेमाल करने के किसी भी प्रलोभन से बचना चाहिए।’’ शरीफ ने कहा, ‘‘राज्य प्रायोजित आतंकवाद समेत सभी तरह के आतंकवाद की स्पष्ट और कड़े शब्दों में निंदा की जानी चाहिए। चाहे कारण या बहाना कुछ भी हो, निर्दोष लोगों की हत्या का कोई औचित्य नहीं हो सकता है।’’ उन्होंने कहा कि आतंकवाद के संकट से लड़ने में पाकिस्तान द्वारा किए गए बलिदानों की कोई तुलना नहीं है, लेकिन यह अभी भी इस क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है और शांति तथा स्थिरता के लिए ‘‘गंभीर बाधा’’ है।
प्रधानमंत्री शरीफ ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर भी किसी भी देश का नाम लिए बिना कहा कि ‘‘घरेलू राजनीतिक एजेंडे के लिए धार्मिक अल्पसंख्यकों को नकारात्मक रूप से दिखाने के चलन को रोका जाना चाहिए।’’ शरीफ ने कश्मीर मुद्दे को भी उठाने की कोशिश की और लंबित विवादों के समाधान के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद की तीन बुराइयों के बारे में भी बात की और एससीओ देशों से इन बुराइयों का मुकाबला करने के लिए अपनी राष्ट्रीय और सामूहिक क्षमता, दोनों के साथ ठोस और तत्काल कार्रवाई करने का आग्रह किया। उन्होंने संपर्क के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह आधुनिक वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक परिभाषित विशेषता बन गई है। उन्होंने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के बारे में कहा कि यह क्षेत्र में संपर्क और समृद्धि के लिए ‘‘गेम चेंजर’’ हो सकता है। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘पाकिस्तान जिस जगह स्थित है, वह एक प्राकृतिक सेतु के रूप में कार्य करता है, जो यूरोप और मध्य एशिया को चीन, दक्षिण एशिया और पश्चिम एशिया से जोड़ता है।’’ उन्होंने कहा कि सीपीईसी के तहत विशेष आर्थिक क्षेत्र, क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सुविधाजनक माध्यम के रूप में भी काम कर सकते हैं। सीपीईसी के तहत पाकिस्तान के बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह को चीन के शिनजियांग प्रांत से जोड़ा जाना है। यह चीन की कई अरब डॉलर की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) की प्रमुख परियोजना है। भारत ने सीपीईसी पर चीन के समक्ष आपत्ति दर्ज कराई है क्योंकि यह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजर रहा है। शरीफ ने यह भी कहा कि ‘‘जलवायु-प्रेरित आपदा हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही है’’ और इससे निपटने के लिए वैश्विक एकजुटता और प्रतिक्रिया की जरूरत है। उन्होंने पिछले साल पाकिस्तान में आई बाढ़ का भी जिक्र किया, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को 30 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ। उन्होंने विकसित देशों से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए गरीबों की मदद करने का आग्रह किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि गरीबी उन्मूलन एससीओ देशों के लिए एक बड़ी चुनौती है, जहां दुनिया के सबसे ज्यादा गरीब हैं। उन्होंने कहा कि युद्धों और अन्य संबंधित मुद्दों के कारण वस्तुओं की कीमत में वृद्धि पर एससीओ देशों को कदम उठाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि अफगानिस्तान में स्थिरता साझा उद्देश्य होना चाहिए। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान को भी किसी भी आतंकवादी संगठन द्वारा अपने क्षेत्र के इस्तेमाल को रोकने के लिए कदम उठाना चाहिए। एससीओ की स्थापना 2001 में शंघाई में एक शिखर सम्मेलन में रूस, चीन, किर्गिज गणराज्य, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों द्वारा की गई थी। वर्ष 2017 में भारत के साथ पाकिस्तान इसका स्थायी सदस्य बन गया।
वहीं, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि रूसी समाज ने सशस्त्र विद्रोह के प्रयासों के खिलाफ एकजुटता दिखायी है और लोगों ने देश की सुरक्षा को लेकर अपनी जवाबदेही प्रदर्शित की है। रूसी राष्ट्रपति का यह बयान ऐसे समय में आया है जब हाल ही में रूस में निजी सेना ‘वैग्नर ग्रुप’ ने मास्को के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। हालांकि, यह बगावत अल्पकालिक रही। इस घटना के बाद किसी बहुपक्षीय मंच पर पुतिन की यह पहली उपस्थिति थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शासनाध्यक्षों की परिषद की 23वीं बैठक को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए पुतिन ने यूक्रेन संघर्ष के संदर्भ में कहा कि ‘बाहरी ताकतें’ हमारी सीमाओं के पास परियोजनाएं चला रही हैं ताकि रूस की सुरक्षा को खतरे में डाला जा सके। उन्होंने बिना किसी का नाम लिये कहा कि पिछले आठ वर्षो से हथियारों की खेप भेजी जा रही है, डोनबास में शांतिप्रिय लोगों के खिलाफ आक्रामकता हो रही है जो नवनाजीवाद की तरह है। उन्होंने कहा, ''रूसी लोग पहले से अधिक एकजुट हैं। देश की खातिर एकजुटता और उच्च जिम्मेदारी का स्पष्ट तौर पर प्रदर्शन किया गया और सशस्त्र विद्रोह के खिलाफ पूरे समाज ने एकजुटता का प्रदर्शन किया।’’
हाल ही में वैग्नर ग्रुप’ के प्रमुख येवगेनी प्रीगोझिन और उनके लड़ाकों ने रूस के खिलाफ विद्रोह करते हुए मॉस्को की तरफ कूच किया था। हालांकि, उन्होंने अचानक क्रेमलिन के साथ समझौते के बाद निर्वासन में जाने और पीछे हटने की घोषणा कर दी थी। इसके बाद दो दशकों से अधिक समय से सत्तारूढ़ पुतिन के नेतृत्व पर भी सवाल उठे थे। एससीओ की बैठक में पुतिन ने कहा, ‘‘इस अवसर पर मैं एससीओ के अपने सहयोगी देशों के सदस्यों को संवैधानिक व्यवस्था, जानमाल और नागरिकों की सुरक्षा करने में रूसी नेतृत्व का समर्थन करने के लिए धन्यवाद देता हूं।’’ उन्होंने कहा कि सभी एससीओ सदस्य देशों के साथ निर्यात लेनदेन में रूस की राष्ट्रीय मुद्रा की हिस्सेदारी वर्ष 2022 में 40 प्रतिशत से अधिक रही। रूसी राष्ट्रपति ने कहा कि एससीओ ‘सही अर्थो में न्यायपूर्ण’ और ‘बहुध्रुवीय’ विश्व व्यवस्था’ सृजित करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।
दूसरी ओर, ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने कहा कि पश्चिमी आधिपत्यवादी शक्तियों ने आर्थिक दबाव और प्रतिबंधों का सहारा लेकर समृद्धि और निष्पक्ष व्यापार के सिद्धांतों को खतरे में डाल दिया है। इसके साथ ही उन्होंने निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय प्रणाली के लिए लेन-देन से डॉलर को हटाने का आह्वान किया। रईसी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के राष्ट्राध्यक्षों की परिषद (सीएचएस) की 23वीं बैठक को एक वीडियो लिंक के माध्यम से संबोधित करते हुए यह आह्वन किया। ईरान एससीओ का नौवां स्थायी सदस्य बना है जिसका मुख्यालय बीजिंग में है। ईरान और हाल ही में रूस और चीन पर अमेरिका की अगुवाई में पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का परोक्ष रूप से जिक्र करते हुए रईसी ने कहा, ‘‘...पश्चिमी आधिपत्यवादी शक्तियों ने आर्थिक दबाव और प्रतिबंधों का सहारा लेकर दुनिया में सुरक्षा, आर्थिक समृद्धि और निष्पक्ष व्यापार के सिद्धांतों को खतरे में डाल दिया है।’’
रईसी ने कहा कि पिछले दशकों के अनुभव पर भरोसा करते हुए अब यह काफी स्पष्ट हो गया है कि सैन्यीकरण के साथ जो चीज पश्चिमी प्रभुत्व प्रणाली का आधार रही है, वह है डॉलर का प्रभुत्व। उन्होंने कहा कि इसलिए एक निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय प्रणाली को आकार देने के किसी भी प्रयास के लिए अंतर-क्षेत्रीय संबंधों में प्रभुत्व के इस साधन को हटाने की आवश्यकता है। उन्होंने शिखर सम्मेलन की मेजबानी के लिए प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद दिया और कहा कि ईरान के समूह में शामिल होने से ऐतिहासिक लाभ होंगे।
प्रश्न-2. रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात क्या हैं? हाल ही में रूसी राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री मोदी को जो फोन किया था उसके क्या मायने हैं?
उत्तर- युद्ध के ताजा हालात को देखें तो रूस बढ़त बनाता दिख रहा है क्योंकि यूक्रेन को पश्चिमी देशों के आश्वासन के बावजूद हथियारों की पर्याप्त आपूर्ति नहीं मिल पा रही है। इसलिए यूक्रेन की तरफ से पलटवार लगभग स्थिर हो गया है। जहां तक इस तरह की खबर है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को परमाणु हथियारों का उपयोग करने से रोका तो इस बात की संभावना काफी हद तक है क्योंकि पुतिन आजकल जिनपिंग की बात काफी मान रहे हैं। इस युद्ध में चीन जिस तरह खुलकर रूस का साथ दे रहा है उसको देखते हुए पुतिन इस स्थिति में नहीं हैं कि चीन के किसी अनुरोध को पूरी तरह खारिज कर सकें। इसके अलावा शी जिनपिंग खुद को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति का मसीहा साबित करना चाहते हैं इसलिए आजकल वह वैश्विक मामलों में विवाद की स्थिति को सुलझाने में सहयोग की पेशकश कर रहे हैं। अभी की संभावना देखें तो परमाणु युद्ध का खतरा तो नजर नहीं आ रहा है लेकिन यह जरूर दिख रहा है कि न्यूक्लियर रेडियेशन के जरिये यूक्रेन को तबाह किया जा सकता है। हालांकि रूस इस तरह का कोई कदम उठायेगा इसकी संभावना ज्यादा नहीं लगती है। रूस का तो आरोप है कि यूक्रेन खुद पर न्यूक्लियर रेडियेशन हमला करवा सकता है ताकि रूस पर आरोप लगाया जा सके। रूस का कहना है कि यूक्रेन युद्ध अपने हाथ से निकलते देख कोई आत्मघाती कदम उठा सकता है। रूस यूक्रेन का 25 प्रतिशत से ज्यादा भाग अपने कब्जे में ले चुका है और यूक्रेन उसमें से बहुत कम इलाका अब तक वापस ले पाया है। दूसरा वैगनर ग्रुप की बगावत पर काबू पाने के बाद अब पुतिन सारे कदम फूंक फूंक कर रख रहे हैं।
जहां तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन के बीच हुई फोन वार्ता की बात है तो आपको बता दें कि रूसी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फोन पर ‘‘सार्थक’’ बातचीत की तथा द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। इस दौरान दोनों नेताओं के बीच यूक्रेन संघर्ष पर भी चर्चा हुई। दोनों नेताओं के बीच टेलीफोन पर बातचीत शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के डिजिटल शिखर सम्मेलन से कुछ दिन पहले हुई। इससे एक दिन पहले, रूस के सुरक्षा परिषद सचिव निकोलाई पेत्रुशेव और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बीच द्विपक्षीय संबंधों और रूस में नवीनतम सुरक्षा घटनाक्रम पर चर्चा हुई थी। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि मोदी और पुतिन ने द्विपक्षीय सहयोग में प्रगति की समीक्षा की और आपसी हित के क्षेत्रीय एवं वैश्विक मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान किया। विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों नेता संपर्क में बने रहने तथा दोनों देशों के बीच विशेष एवं विशिष्ट रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने के प्रयास जारी रखने पर सहमत हुए। यह उल्लेख करते हुए कि फोन कॉल भारतीय पक्ष की ओर से की गई, क्रेमलिन प्रेस सेवा ने कहा, ‘‘बातचीत का स्वरूप सार्थक एवं रचनात्मक रहा। नेताओं ने रूस और भारत के बीच विशिष्ट रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने के लिए आपसी प्रतिबद्धता दोहराई और संपर्क जारी रखने पर सहमति व्यक्त की।’’ नेताओं ने द्विपक्षीय सहयोग पर चर्चा की और विभिन्न क्षेत्रों में संयुक्त परियोजनाओं को जारी रखने के महत्व का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि रूस और भारत के बीच व्यापार 2022 में काफी बढ़ गया, और यह सिलसिला 2023 की पहली तिमाही में भी जारी रहा। क्रेमलिन ने कहा कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने मोदी को कूटनीति के माध्यम से संघर्ष को सुलझाने से यूक्रेन के स्पष्ट इनकार के बारे में सूचित किया। रूस की सरकारी समाचार एजेंसी तास ने रूसी राष्ट्रपति कार्यालय क्रेमलिन के बयान के हवाले से कहा, ‘‘दोनों नेताओं ने यूक्रेन से संबंधित स्थिति पर चर्चा की। रूसी राष्ट्रपति ने विशेष सैन्य अभियान क्षेत्र में वर्तमान स्थिति का जिक्र किया, जो संघर्ष को हल करने के लिए राजनीतिक और कूटनीतिक कदम उठाने से कीव के स्पष्ट इनकार की ओर इशारा करता है।’’ विदेश मंत्रालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि यूक्रेन की स्थिति पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने मुद्दे के समाधान के लिए बातचीत और कूटनीति का अपना आह्वान दोहराया। हम आपको याद दिला दें कि भारत ने अभी तक यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा नहीं की है और वह कहता रहा है कि संकट को कूटनीति एवं बातचीत के माध्यम से हल किया जाना चाहिए। क्रेमलिन के बयान में यह भी कहा गया कि मोदी ने पुतिन को अपनी हालिया अमेरिका यात्रा और राष्ट्रपति जो. बाइडन के साथ बातचीत के बारे में बताया। क्रेमलिन ने कहा, 'नरेन्द्र मोदी ने उन्हें (पुतिन को) अपने अंतरराष्ट्रीय संपर्कों के बारे में बताया, जिसमें उनकी हालिया वाशिंगटन यात्रा भी शामिल है।' दोनों नेताओं ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) और जी20 के भीतर अपने देशों के सहयोग पर भी चर्चा की।
क्रेमलिन के बयान में यह भी कहा गया कि प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले हफ्ते वैगनर समूह द्वारा कुछ समय के लिए किए गए सशस्त्र विद्रोह के संबंध में रूसी नेतृत्व द्वारा उठाए गए कदमों के प्रति समर्थन व्यक्त किया। इसमें कहा गया, "24 जून के घटनाक्रम के संबंध में, नरेन्द्र मोदी ने कानून और व्यवस्था की रक्षा करने तथा देश में स्थिरता और अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए रूसी अधिकारियों की ठोस कार्रवाई के प्रति समर्थन व्यक्त किया।" येवगेनी प्रिगोझिन और उनके वैगनर समूह द्वारा किया गया विद्रोह राष्ट्रपति पुतिन के लिए उनके दो दशकों से अधिक के शासन में सबसे गंभीर चुनौती बन सकता था। इस घटनाक्रम से पुतिन के नेतृत्व पर भी सवाल खड़े हो गए। वैगनर समूह ने रोस्तोव-ऑन-डॉन शहर पर कब्ज़ा कर लिया था। विद्रोह तब समाप्त हुआ जब प्रिगोझिन ने मॉस्को की तरफ बढ़ रहे अपने सैनिकों को वापस लौटने का आदेश दिया।
प्रश्न-3. इजराइल और फिलस्तीन एक बार फिर मरने मारने पर आमादा हैं। इस बार के संघर्ष को कैसे देखते हैं आप?
उत्तर- इजराइल और फिलस्तीन के बीच विवाद आरम्भकाल से ही रहा है। इजराइल की शुरू से ही रणनीति रही है कि हर हमले का तगड़ा जवाब देकर ही दुश्मन को सबक सिखाया जा सकता है। अभी की जो स्थिति है वह कोई अलग नहीं है। इन दोनों देशों के बीच इस तरह का विवाद चलता ही रहेगा। ना फिलस्तीन अपनी हरकतों से बाज आयेगा और ना ही इजराइल सबक सिखाने का अवसर छोड़ेगा। इस संघर्ष के बने रहने का एक कारण यह भी है कि कुछ ताकतें हैं जोकि इजराइल की तरक्की और उसकी अमेरिका से घनिष्ठता से जलती हैं इसलिए वह इजराइल को नुकसान पहुँचाने का कोई मौका नहीं छोड़तीं।
प्रश्न-4. फ्रांस में जो बवाल हुआ, वह विश्व के अन्य देशों के लिए क्या संदेश है?
उत्तर- फ्रांस में जो कुछ हुआ उसकी विश्व में किसी ने कल्पना नहीं की होगी। एक खूबसूरत और समृद्ध देश को जिस तरह आग के हवाले किया गया वह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण था। फ्रांस में हिंसा और आगजनी की जो खबरें आ रही हैं उससे पूरी दुनिया हैरान है। हाल ही में यहां पेंशन सुधारों के विरोध में लंबे समय तक हिंसक प्रदर्शन हुए थे और कुछ दिनों पहले ही शांति हुई थी। लेकिन अब एक नाबालिग लड़के के खिलाफ पुलिस की निर्मम कार्रवाई ने लोगों को उद्वेलित कर दिया है जिससे वह सड़कों पर उतर कर हंगामा कर रहे हैं। लेकिन इस हंगामे ने दुनिया को इस बात के लिए सतर्क कर दिया है कि क्या इतनी बड़ी संख्या में रिफ्यूजियों को अपने यहां बसने देना चाहिए? क्या शरणार्थियों को ज्यादा अधिकार और सुविधाएं दी जानी चाहिए? फ्रांस में बाहर से आकर बसे लोगों ने जिस तरह देश में हंगामा किया वह पूरी दुनिया के लिए बड़ा संदेश है।
फ्रांस में कुछ लोगों ने मारे गये युवक के परिजनों के लिए चंदा इकट्ठा किया मगर उससे ज्यादा राशि उन लोगों ने एकत्रित कर ली जिन्होंने कानून तोड़ने वाले युवक को गोली मारने वाले पुलिसकर्मी के परिजनों की सहायता के लिए अभियान चलाया था। यह संकेत है कि फ्रांस की जनता कानून का शासन चाहती है। इसके अलावा जिस तरह फ्रांस की आम जनता ने हंगामा करने वालों का विरोध सड़कों पर उतर कर किया उससे यह भी प्रदर्शित हुआ कि देश के मूल निवासी एकजुट हैं।
प्रश्न-5. कनाडा और अमेरिका में जिस तरह खालिस्तानी गतिविधियां बढ़ रही हैं, खालिस्तान फ्रीडम रैली निकाली जा रही है। भारतीय दूतावासों, मिशनों को निशाना बनाया जा रहा है। उसे कैसे देखते हैं आप?
उत्तर- कनाडा, अमेरिका और ब्रिटेन में जो लोग खालिस्तान समर्थकों को पाल पोस रहे हैं उन्हें समझना होगा कि यह लोग भारत का तो कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे अपितु ये लोग एक दिन उस देश को ही नुकसान पहुँचाने में जरूरत सफल हो जायेंगे। जहां तक इस मुद्दे पर भारत का रुख है तो सरकार ने कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका जैसे देशों में खालिस्तानी तत्वों की गतिविधियों एवं हिंसा भड़काने की घटनाओं को ‘अस्वीकार्य’ करार देते हुए कहा है कि दूसरे देशों में राजनयिकों, अपने मिशन की सुरक्षा सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है और मेजबान देश से वियना संधि के अनुरूप दूतावासों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की उम्मीद की जाती है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने साप्ताहिक प्रेस वार्ता में कहा, ‘‘भारतीय राजनयिकों, मिशन के खिलाफ हिंसा भड़काने वाले पोस्टर अस्वीकार्य हैं। यह एक गंभीर मुद्दा है और हमने संबंधित देशों के समक्ष इस विषय को उठाया है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमारी अपेक्षा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर आतंकवादी, चरमपंथी तत्वों को कोई स्थान नहीं दिया जाए।’’ बागची ने कहा कि राजनयिकों, वाणिज्य दूतावासों, उच्चायोगों को लेकर पोस्टर लगाने का मुद्दा काफी गंभीर है, जिनमें हिंसा के लिए उकसाने, धमकी देने की बात की गई है।
उन्होंने कहा कि ऐसे मुद्दों पर कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया से बात की गई है, कुछ जगहों से तत्काल कार्रवाई की सूचना मिली है और कुछ स्थानों को लेकर अपेक्षा है कि कार्रवाई की जायेगी। बागची ने कहा कि अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हमले की घटना को भी वहां के प्रशासन के समक्ष उठाया गया और वहां से उच्च स्तर पर प्रतिक्रिया आई है तथा ऐसे कृत्य को उन्होंने आपराधिक बताया है। कुछ दिन पहले ही भारत ने नयी दिल्ली में कनाडा के उच्चायुक्त को तलब किया था और कनाडा में खालिस्तान समर्थकों की बढ़ती गतिविधियों पर एक ‘डिमार्शे’ (आपत्ति जताने वाला पत्र) जारी किया था। समझा जाता है कि भारत ने कनाडा के अधिकारियों से आठ जून को कनाडा में भारतीय मिशन के बाहर खालिस्तान समर्थक समूहों के विरोध-प्रदर्शन के मद्देनजर उचित कदम उठाने को भी कहा है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि यह मुद्दा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नहीं है बल्कि इनके नाम पर ही आतंकवादी तत्वों, अलगाववादी तत्वों को मौका मिल रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘हम जानना चाहते हैं कि देशों ने क्या कार्रवाई की या क्या कार्रवाई की जा रही है क्योंकि पहले भी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं।’’ बागची ने कहा, ‘‘हम ऐसे हमलों या धमकियों को काफी गंभीरता से लेते हैं और जो भी कार्रवाई जरूरी है, हम करते रहेंगे।’’ उन्होंने कहा कि हमारा दूतावास ऐसी घटनाओं पर नजर बनाए हुए है और स्थानीय प्रशासन के सम्पर्क में है। प्रवक्ता ने कहा कि मेजबान देश से वियना संधि के अनुरूप दूतावासों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की उम्मीद की जाती है। भारत ने सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर खालिस्तान समर्थकों के हमले का मामला भी अमेरिका के साथ उठाया है। यह कुछ महीनों के भीतर सैन फ्रांसिस्को में राजनयिक मिशन पर हमले की ऐसी दूसरी घटना है। खालिस्तान समर्थक प्रदर्शनकारियों के एक समूह ने 19 मार्च को सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हमला कर तोड़फोड़ की थी। खालिस्तान समर्थकों ने दो जुलाई को एक वीडियो ट्विटर पर साझा किया, जिसमें सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास में कुछ लोगों को आगजनी की कोशिश करते हुए देखा जा सकता है। पिछले महीने, ब्रैम्पटन में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या से जुड़ी एक झांकी निकाले जाने की घटना के दृश्य सोशल मीडिया पर आने के बाद भारत ने कनाडा को चेतावनी देते हुए कहा था कि द्विपक्षीय संबंधों के लिए यह ठीक नहीं है।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था, ''स्पष्ट रूप से हम यह समझ नहीं पा रहे हैं कि वोट बैंक की राजनीति के अलावा कोई ऐसा क्यों करेगा।’’ इसी सप्ताह सोमवार को विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा था कि ‘चरमपंथी, अतिवादी’ खालिस्तानी सोच भारत या अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, आस्ट्रेलिया जैसे सहयोगी देशों के लिए ठीक नहीं है।
हालांकि एक बात अच्छी है कि ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की है कि लंदन में भारतीय उच्चायोग पर कोई भी प्रत्यक्ष हमला ‘‘पूरी तरह से अस्वीकार्य’’ है। सोशल मीडिया चैनलों पर खालिस्तानी चरमपंथियों द्वारा भारत विरोधी दुष्प्रचार के बीच ब्रिटिश सरकार का यह बयान सामने आया है। ब्रिटेन के विदेश मंत्री जेम्स क्लेवरली ने ट्विटर पर घोषणा की कि देश में भारत के राजनयिक मिशन के कर्मचारियों की सुरक्षा सर्वोपरि है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में भारतीय राजनयिक मिशन को निशाना बनाये जाने और ब्रिटेन में भारतीय उच्चायुक्त विक्रम दोरईस्वामी और बर्मिंघम में भारत के महावाणिज्यदूत डॉ. शशांक विक्रम की तस्वीरों के साथ कुछ धमकी भरे पोस्टर ऑनलाइन सामने के बीच क्लेवरली ने कहा, ‘‘लंदन में भारतीय उच्चायोग पर कोई भी प्रत्यक्ष हमला पूरी तरह से अस्वीकार्य है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमने विक्रम दोरईस्वामी और भारत सरकार को स्पष्ट कर दिया है कि उच्चायोग में कर्मचारियों की सुरक्षा सर्वोपरि है।’’
इसके अलावा, कनाडा ने सोशल मीडिया पर प्रसारित हो रहे पोस्टरों में भारतीय अधिकारियों का नाम होने पर भारत को उसके राजनयिकों की सुरक्षा को लेकर आश्वस्त किया है और खालिस्तान की एक रैली से पहले प्रसारित हो रही ‘‘प्रचारात्मक सामग्री’’ को ‘‘अस्वीकार्य’’ बताया है। कनाडा की विदेश मंत्री मिलानी जॉली का यह बयान तब आया है जब एक दिन पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारत ने कनाडा, ब्रिटेन तथा अमेरिका जैसे अपने साझेदार देशों को ‘‘चरमपंथी खालिस्तानी विचारधारा’’ को तवज्जो न देने के लिए कहा है क्योंकि यह उनके रिश्तों के लिए ‘‘सही नहीं’’ है। राजनयिकों की सुरक्षा के लिए कनाडा की प्रतिबद्धता पर जोर देते हुए जॉली ने वियना संधि के प्रति देश के अनुपालन का उल्लेख किया।
इसके साथ ही अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने ट्वीट किया, ‘‘अमेरिका शनिवार को सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास में तोड़फोड़ और आगजनी के प्रयास की कड़ी निंदा करता है। अमेरिका में राजनयिक केंद्रों या विदेशी राजनयिकों के खिलाफ हिंसा एक अपराध है।’’