By नीरज कुमार दुबे | Jan 21, 2024
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह भारत-मालदीव संबंधों, विदेश मंत्री जयशंकर की ईरान यात्रा, लाल सागर में हूतियों पर हो रहे एक्शन, इजराइल-हमास संघर्ष, रूस-यूक्रेन युद्ध में ताजा अपडेट और ताइवान में संपन्न चुनावों से जुड़े मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ चर्चा की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-
प्रश्न-1. भारत-मालदीव के संबंधों में जारी तनाव को कैसे देखते हैं आप? मालदीव ने अब तो भारतीय सैनिकों को देश छोड़ने के लिए डेडलाइन भी तय कर दी है।
उत्तर- देखा जाये तो इस सबका कारण घरेलू राजनीति तो है ही साथ ही मालदीव पर जो विदेशी कर्ज है उसमें से 20 प्रतिशत से ज्यादा अकेले चीन का है इसलिए वह देश इस समय पूरी तरह चीन के दबाव में काम कर रहा है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की मांग है कि भारत मार्च के मध्य तक देश में तैनात अपने सैनिकों को वापस बुला ले। उन्होंने कहा कि वैसे वहां हमारे सैनिकों की संख्या मात्र 88 है। इससे स्पष्ट होता है कि वह वहां किसी तरह का खतरा नहीं हैं बल्कि भारत ने मालदीव के सैन्य बलों की मदद के लिए जो प्रशिक्षण ढांचा स्थापित किया था उसमें मदद के लिए वहां पर सैनिक तैनात हैं। उन्होंने कहा कि हमारे ये सैनिक द्विपक्षीय संबंधों के तहत 2010 से मालदीव में तैनात हैं। वहां पर तैनात हमारे सैनिकों के कार्यों में मालदीव के सैनिकों को युद्ध और टोही का प्रशिक्षण देना शामिल है। इसके अलावा हमारे सैनिक सुदूर द्वीपों के निवासियों के लिए मानवीय सहायता और चिकित्सा व्यवस्था में भी मदद प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा कि मालदीव को दो सैन्य ध्रुव एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर भारत की ओर से उपहार के रूप में मालदीव को दिये गये थे इसलिए उन्हें सैन्य उपस्थिति के रूप में चित्रित करना गलत है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि राष्ट्रपति मुइज्जू को व्यापक रूप से चीन समर्थक नेता के रूप में देखा जाता है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वहां की मुख्य विपक्षी पार्टी एमडीपी का संसद में बहुमत है। मालदीव की संसद का सत्र अगले माह शुरू होना है और पूरी उम्मीद है कि विपक्ष उन्हें ऐसा कोई भी काम करने से रोकेगा जो भारत के विरोध में हो। उन्होंने कहा कि इसके अलावा राजधानी माले की जनता ने मेयर चुनाव में मुइज्जू की पार्टी को हार का मुंह दिखाकर राष्ट्रपति को यह साफ कर दिया है कि उनके मन में भले चीन का पहला स्थान हो लेकिन जनता के मन में भारत का ही पहला स्थान है। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा समय की कसौटी पर जांचा, परखा और खरा मित्र साबित हुआ है। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि मालदीव के विपक्ष ने ठान लिया है कि संसद में अब राष्ट्रपति की राह में बाधा खड़ी की जायेगी ताकि वह भारत विरोधी कदम नहीं उठा सकें। उन्होंने कहा कि मुइज्जू की धमकियों से भारत बेपरवाह इसलिए भी नजर आ रहा है क्योंकि वहां जो चाल चली जानी थी संभवतः वह चल दी गयी है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि फरवरी 2021 में हस्ताक्षरित यूटीएफ हार्बर प्रोजेक्ट समझौते के तहत भारत को मालदीव की राजधानी माले के पास उथुरु थिलाफाल्हू में एक बंदरगाह और गोदी का विकास और रखरखाव करना था। इस समझौते को लेकर तमाम तरह की अफवाहें फैलाई गयीं और स्थानीय मीडिया के एक वर्ग ने भी दावा किया कि यह परियोजना अंततः वहां एक भारतीय नौसैनिक अड्डे के निर्माण को बढ़ावा देगी। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर फैलाये जाने वाले दुष्प्रचार से प्रेरित होकर वहां के मंत्रियों ने भारत के साथ एक राजनयिक विवाद शुरू कर दिया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लक्षद्वीप यात्रा के बारे में अपमानजनक टिप्पणियां कीं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि देखा जाये तो हिंद महासागर में अपनी रणनीतिक स्थिति के कारण चीन मालदीव में अपना प्रभाव बढ़ाने में रुचि रखता है क्योंकि ये द्वीप राष्ट्र सबसे व्यस्त समुद्री व्यापार राजमार्गों में से एक पर स्थित है, जहां से चीन का लगभग 80 प्रतिशत तेल आयात गुजरता है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति मुइज्जू की यात्रा के दौरान मालदीव और चीन ने 20 महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। चीन ने साथ ही माले को 130 मिलियन डॉलर की मदद दी है जिसे विकास परियोजनाओं पर खर्च किया जाएगा लेकिन मालदीव को यह याद रखने की जरूरत है कि चीन कुछ भी बिना अपने स्वार्थ के नहीं करता। उन्होंने कहा कि मालदीव को श्रीलंका और नेपाल के हश्र को याद रखना चाहिए।
प्रश्न-2. विदेश मंत्री जयशंकर की ईरान यात्रा का उद्देश्य क्या रहा?
उत्तर- पहले हमें यह देखना होगा कि यह यात्रा किस पृष्ठभूमि में हुई। उन्होंने कहा कि ईरान पहुँचने से पहले जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से बात की। इस बातचीत के एक दिन बाद ही खबर आई कि अमेरिका और ब्रिटेन ने यमन में हूतियों के खिलाफ हमले कर दिये हैं। उन्होंने कहा कि इसके बाद जयशंकर तेहरान पहुँचे और वहां उनकी मुलाकात ईरानी नेताओं के साथ होने के तुरंत बाद खबर आई कि ईरान ने सीरिया, इराक और पाकिस्तान में हमला कर दिया है। उन्होंने कहा कि इन मुलाकातों और हमलों की घटनाओं के बीच कोई संयोग है या संबंध है या नहीं यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता लेकिन इससे यह जरूर प्रदर्शित होता है कि भारत वैश्विक मामलों में एक अहम भूमिका निभा रहा है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा यह भी देखना होगा कि पश्चिम एशिया में इजराइल-हमास और ईरान आपस में उलझे हुए हैं लेकिन भारत के संबंध इजराइल, फिलस्तीन और ईरान के साथ अच्छे हैं इसलिए संभव है कि इस बात के प्रयास किये जा रहे हों कि भारत अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके पश्चिम एशिया के संघर्ष को खत्म करवाये।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा भारत और ईरान अपने ऐतिहासिक संबंधों को हमेशा मजबूत बनाये रखने के लिए कदम उठाते रहे हैं। उन्होंने कहा कि जयशंकर ने ईरान के समकक्ष होसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन से मुलाकात की और उनकी चर्चा रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह और उत्तर-दक्षिण कनेक्टिविटी परियोजना में भारत की भागीदारी के लिए दीर्घकालिक रूपरेखा पर केंद्रित थी। जयशंकर ने ईरान के राष्ट्रपति डॉ. इब्राहिम रईसी से भी मुलाकात की और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की शुभकामनाएं प्रेषित कीं। उन्होंने कहा कि इस बातचीत के बारे में बताया गया है कि द्विपक्षीय चर्चा चाबहार बंदरगाह और आईएनएसटीसी कनेक्टिविटी परियोजना के साथ भारत की भागीदारी के लिए दीर्घकालिक ढांचे पर केंद्रित थी। जयशंकर ने क्षेत्र में समुद्री नौवहन के खतरों के बारे में भी बात की और जोर देकर कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि इस मुद्दे को “तेजी से समाधान किया जाए”। उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट रूप से इजरायल-हमास टकराव के बीच ईरान समर्थित यमन के हूती विद्रोहियों द्वारा लाल सागर में व्यापारिक जहाजों को निशाना बनाने का संदर्भ था।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारत लाल सागर में उभरती स्थिति पर करीब से नजर रख रहा है। उन्होंने कहा कि जयशंकर ने ईरानी विदेश मंत्री के साथ बैठक के बाद कहा था कि एजेंडे में अन्य मुद्दे गाजा स्थिति, अफगानिस्तान, यूक्रेन और ब्रिक्स सहयोग थे। बाद में, उन्होंने ईरानी राष्ट्रपति रईसी से मुलाकात की और उन्हें ईरानी मंत्रियों के साथ अपनी “सार्थक चर्चा” से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि जयशंकर ने ईरान में सड़क और शहरी विकास मंत्री मेहरदाद बज्रपाश से मुलाकात करके अपने कार्यक्रम की शुरुआत की थी। मुलाकात के दौरान दोनों पक्षों ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह पर दीर्घकालिक सहयोग ढांचा स्थापित करने पर विस्तृत और “सार्थक” चर्चा की। जयशंकर ने बज्रपाश के साथ अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (आईएनएसटीसी) पर भी विचारों का आदान-प्रदान किया। उन्होंने कहा कि ऊर्जा संपन्न ईरान के दक्षिणी तट पर सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित, चाबहार बंदरगाह संपर्क और व्यापार संबंधों को बढ़ावा देने के लिए भारत और ईरान द्वारा विकसित किया जा रहा है। भारत क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए चाबहार बंदरगाह परियोजना पर जोर दे रहा है, खासकर अफगानिस्तान से इसके संपर्क के लिए। उन्होंने कहा कि ताशकंद में 2021 में एक संपर्क (कनेक्टिविटी) सम्मेलन में जयशंकर ने चाबहार बंदरगाह को अफगानिस्तान सहित एक प्रमुख क्षेत्रीय पारगमन केंद्र के रूप में पेश किया था। उन्होंने कहा कि चाबहार बंदरगाह को आईएनएसटीसी परियोजना के लिए एक प्रमुख केंद्र के रूप में भी देखा जाता है।
प्रश्न-3. लाल सागर में हूतियों पर पश्चिमी देश जो कार्रवाई कर रहे हैं क्या उससे एक नये युद्ध का खतरा पैदा हो गया है? क्या इससे इजराइल-हमास संघर्ष में भी नया मोड़ आने की संभावना है?
उत्तर- ऐसा लगता है कि अमेरिका और उसके सहयोगी देश अब रुकने वाले नहीं हैं क्योंकि उन्होंने हूतियों के आतंक को पूरी तरह खत्म करने का मन बना लिया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने हूतियों के खिलाफ नये हमले शुरू कर दिये हैं क्योंकि क्षेत्र के समुद्री मार्गों में बढ़ते तनाव ने वैश्विक व्यापार को बाधित कर दिया है। उन्होंने कहा कि आपूर्ति बाधाएँ मुद्रास्फीति को फिर से बढ़ा सकती हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिकी सेना ने कहा है कि हूतियों द्वारा लाल सागर में फायरिंग के लिए जहाज रोधी मिसाइलों को तैयार किया जा रहा था जोकि बड़ा खतरा हो सकती थी। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने इस हमले को विफल कर दिया है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि देखा जाये तो नवंबर से लाल सागर में और उसके आसपास जहाजों पर ईरान और उसके सहयोगी हूतियों के हमलों ने एशिया और यूरोप के बीच व्यापार को धीमा कर दिया है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा गाजा में इज़राइल और हमास आतंकवादियों के बीच युद्ध फैलते जाने से विश्व की प्रमुख शक्तियां चिंतित हो गई हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह इजराइल ने गाजा में अपने टैंकों को फिर से उतार दिया है उससे यह भी प्रदर्शित हो गया है कि इजराइल रुकने वाला नहीं है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से विश्व की बड़ी शक्तियां संघर्षविराम करवा पाने में विफल साबित हो रही हैं वह दर्शा रहा है कि ये प्रयास बेमन से ही किये जा रहे हैं।
प्रश्न-4. रूस-यूक्रेन युद्ध में ताजा अपडेट क्या है? रूस ने यूक्रेन पर अचानक से बमबारी क्यों बढ़ा दी है?
उत्तर- रूस-यूक्रेन युद्ध को चलते हुए 700 दिन होने वाले हैं जोकि एक नया रिकॉर्ड है। उन्होंने कहा कि ताजा अपडेट यह है कि यूक्रेन हवाई यात्रा को बहाल करने के लिए विभिन्न भागीदारों के साथ बातचीत कर रहा है। उन्होंने कहा कि दो वर्षों से हवाई यात्रा के निलंबित होने के चलते लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि जहां तक नये हमलों की बात है तो यूक्रेन की ओर से बताया गया है कि हमलों के "नए चरण" के हिस्से के रूप में यूक्रेनी ड्रोन ने सेंट पीटर्सबर्ग में एक तेल टर्मिनल पर हमला किया।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा रूस के रक्षा मंत्रालय ने बताया है कि रूसी सेना ने यूक्रेन के पूर्वी डोनेट्स्क क्षेत्र की एक बस्ती वेसेले पर नियंत्रण कर लिया है। उन्होंने कहा कि हालांकि मंत्रालय ने इस संबंध में ज्यादा विवरण नहीं दिया है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की इस सप्ताह आर्थिक मदद लेने के लिए दावोस शिखर सम्मेलन में पहुँचे जहां उन्हें अच्छा समर्थन मिला। उन्होंने कहा कि कई देशों के मंत्रियों ने इस सम्मेलन में कहा कि यूक्रेन में रूस की जीत यूरोप के लिए अच्छी नहीं होगी। इसको देखते हुए ऐसा लगता है कि यूरोपीय देशों की ओर से यूक्रेन को और मदद दी जायेगी।
प्रश्न-5. ताइवान में हुए चुनाव चीन के लिए कितना बड़ा झटका हैं?
उत्तर- ताइवान में संपन्न चुनाव चीन के लिए झटके के समान हैं क्योंकि एक तो बीजिंग की ओर से इन चुनावों में बाधा डालने के कई प्रयास किये गये दूसरा ताइवान में ऐसा राष्ट्रपति आ गया है जोकि चीन के एकदम खिलाफ है। उन्होंने कहा कि इन चुनावों पर चीन की जो प्रतिक्रिया सामने आई है वह भी दर्शा रही है कि बीजिंग सदमे में है। उन्होंने कहा कि ताइवान की सत्तारुढ़ डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) जिसे बीजिंग "अलगाववादियों" के रूप में नापसंद करता है, उसकी राष्ट्रपति पद बरकरार रखने में सफलता के बावजूद, चीन की सत्तारुढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की प्रतिक्रिया निराशाजनक रही है। इसलिए चुनाव परिणाम आने के बाद चीन ने ताइवान को धमकाने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने बताया है कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने ताइवान के वायु क्षेत्र में 24 विमान और पांच नौसेना जहाज भेजे थे, जो नवंबर के बाद पहली घुसपैठ थी।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वैसे ताइवान नवनिर्वाचित राष्ट्रपति की जीत का जश्न मना रहा है और वहां के युवा लोकतंत्र का आनंद उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि चीन भले कितने भी दावे करता रहे लेकिन ताइवान पर कब्जे की किसी भी कोशिश का उसे मुंहतोड़ जवाब मिल सकता है। उन्होंने कहा कि रूस-यूक्रेन का उदाहरण सामने है। रूस ने सोचा था कि युद्ध को एक सप्ताह में खत्म करके यूक्रेन को अपना बना लेगा लेकिन यूक्रेन ने रूस को दो साल से संघर्ष में फंसा रखा है। उन्होंने कहा कि संघर्ष में फंसे होने के चलते रूस की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है। चीन की अर्थव्यवस्था तो पहले ही मंदी के बुरे दौर से गुजर रही है। ऐसे में उसके लिए ताइवान पर हमला कर पाना बहुत मुश्किल होगा।