Shaurya Path: Israel-Hamas, Russia-Ukraine, Pakistan Elections, Red Sea और India-Maldives से जुड़े मुद्दों पर Brigadier Tripathi से वार्ता

By नीरज कुमार दुबे | Feb 11, 2024

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह इजराइल-हमास संघर्ष, रूस-यूक्रेन युद्ध, लाल सागर में हूतियों के बढ़ते हमलों, पाकिस्तान चुनाव और भारत-मालदीव संबंधों से जुड़े मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ चर्चा की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-


प्रश्न-1. इजराइल ने कहा है कि हमास की कैद में कई बंधक मारे जा चुके हैं, क्या इससे यह संघर्ष नई दिशा लेगा? अब इजराइल ने हमास का संघर्षविराम प्रस्ताव भी ठुकरा दिया है इससे क्या संदेश मिलता है? 


उत्तर- इजराइल ने संघर्षविराम का प्रस्ताव इसलिए ठुकराया है क्योंकि प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू इस लड़ाई में निर्णायक जीत हासिल करने की पूरी तैयारी कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू द्वारा हमास की संघर्षविराम शर्तों को अस्वीकार करने और दक्षिणी गाजा शहर में हमले बढ़ाने का संकल्प व्यक्त करने के बाद गाजा पट्टी के राफा में इजरायली हवाई हमलों में 13 लोग मारे गए। उन्होंने कहा कि बहुत से लोग राफा में भाग कर आये हैं इसलिए संभव है कि यहां आतंकवादियों की संभावित मौजूदगी को देखते हुए इजराइल आने वाले दिनों में अपने हमले और तेज करे।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि खास बात यह है कि बीच में इजराइल को पश्चिमी देशों से जो सहयोग नहीं मिल रहा था वह अब मिलने लगा है। उन्होंने कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने गाजा में इजरायल की सैन्य कार्रवाई की सराहना की है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि अमेरिका युद्ध में संघर्षविराम के लिये इजराइल तथा हमास पर लगातार दबाव डालने का काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि बाइडन इस क्षेत्र के हालात पर लगातार निगाह रखे हुए हैं और इजराइल के समर्थन में अन्य देशों को भी इकट्ठा करने के लिए अपने विदेश मंत्री को लगातार विभिन्न देशों के दौरों पर भेज रहे हैं। उन्होंने कहा कि बाइडन ने साफ कह दिया है कि मेरा मानना है कि गाजा पट्टी में हो रही कार्रवाई चरम पर है।

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस समय हालात यह हैं कि गाजा पट्टी की आधी से अधिक आबादी राफा में आ गई है जो मिस्र से लगता एक शहर है जिसकी ज्यादातर सीमा प्रतिबंधित है और मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए मुख्य प्रवेश बिंदु है। उन्होंने कहा कि मिस्र ने चेतावनी दी है कि यहां कोई भी जमीनी कार्रवाई या सीमा पार बड़े पैमाने पर विस्थापन की घटना इजरायल के साथ उसकी 40 साल पुरानी शांति संधि को कमजोर कर देगी। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि इजराइल को किसी संधि की चिंता नहीं है क्योंकि उसे बदला लेना है। उन्होंने कहा कि जबसे यह खबर आई है कि हमास की कैद में जो इजराइली हैं उनमें से कई और को मार दिया गया है तबसे घरेलू स्तर पर भी इजराइल की सरकार पर और तीव्र कार्रवाई करने का दबाव पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि अगर अब तक के हालात पर गौर करें तो इजराइल की चार महीने से जारी हवाई और जमीनी हमलों में 27,000 से अधिक फलस्तीनी लोग मारे गए हैं। उन्होंने कहा कि इजराइल के हमलों ने अधिकांश लोगों को उनके घरों को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया और एक चौथाई आबादी को भुखमरी की ओर धकेल दिया है।


प्रश्न-2. रूस से लड़ रहा यूक्रेन अब आपसी संघर्ष में ही उलझ गया है क्योंकि सुनने में आ रहा है कि शीर्ष सैन्य अधिकारियों पर राष्ट्रपति जेलेंस्की ने तमाम तरह के आरोप लगाये हैं और अब उन्हें हटाने की फिराक में भी हैं?


उत्तर- यह सही बात है कि यूक्रेन की सेना इस समय रूस से उलझने की बजाय आपस में ही उलझी हुई है और जिस तरह के आरोप यूक्रेन के सैन्य अफसरों पर लगे हैं उससे निचले स्तर तक जवानों में निराशा फैली है। उन्होंने कहा कि खासकर युद्ध के समय यदि किसी सेना के जवान निराश हो जायें तो यह उस देश के लिए ठीक नहीं है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यूक्रेन के राष्ट्रपति ने देश के सशस्त्र बलों के कमांडर-इन-चीफ वलेरी ज़ालुज़नी को बर्खास्त कर दिया है। उन्होंने कहा कि यह राष्ट्रपति और जनरल ज़ालुज़नी के बीच दरार को प्रदर्शित करता है, जिन्होंने संघर्ष शुरू होने के बाद से यूक्रेन के युद्ध प्रयासों का नेतृत्व किया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ने अब जनरल ऑलेक्ज़ेंडर सिरस्की को कमान सौंपी है लेकिन युद्ध के बीच में सैन्य कमांडर बदलना सैन्य रणनीति के लिहाज से सही कदम नहीं है। उन्होंने कहा कि फरवरी 2022 में रूस के आक्रमण के बाद से यह यूक्रेन के सैन्य नेतृत्व में सबसे बड़ा बदलाव है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने कहा है कि सैन्य कमान में नवीनता लाने के लिए ऐसा किया गया है। उन्होंने कहा कि जनरल ज़ालुज़नी "टीम में बने रह सकते हैं"। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो जनरल ज़ालुज़नी एक लोकप्रिय जनरल हैं जिस पर यूक्रेनी सैनिक और जनता भरोसा करते हैं और कुछ हद तक वह एक राष्ट्रीय नायक रहे हैं। उन्होंने कहा कि यही नहीं, जनरल ज़ालुज़नी की हालिया अनुमोदन रेटिंग ज़ेलेंस्की की तुलना में अधिक रही है। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि जेलेंस्की को जनरल ज़ालुज़नी की लोकप्रियता देखकर अपनी कुर्सी को खतरा महसूस हो रहा हो इसलिए उन्होंने उन्हें पद से हटा दिया। उन्होंने कहा कि लेकिन यूक्रेन की जनता और जवानों की जो भावना नजर आ रही है वह जेलेंस्की को भारी पड़ सकती है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यूक्रेन के विपक्षी सांसदों ने भी इस बदलाव की आलोचना की है। कीव के मेयर विटाली क्लिट्स्को ने इस निर्णय पर अप्रसन्नता जताते हुए यूक्रेन की सेवा के लिए जनरल ज़ालुज़नी को धन्यवाद दिया है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा पूर्व राष्ट्रपति पेट्रो पोरोशेंको के नेतृत्व वाली विपक्षी पार्टी के सांसद ओलेक्सी होन्चारेंको ने कहा है कि यह कदम राष्ट्रपति द्वारा की गयी एक बड़ी गलती थी। उन्होंने कहा कि इससे देश को खतरा होगा और हम सभी को इस गलती की कीमत चुकानी पड़ेगी। उन्होंने कहा कि एक अन्य विपक्षी सांसद वैलेन्टिन नैलिवाइचेंको ने कहा है कि युद्ध के दौरान सैन्य नेतृत्व का हमें समर्थन करना चाहिए, आलोचना नहीं करनी चाहिए, बल्कि हर संभव तरीके से मदद करनी चाहिए लेकिन खुद सरकार ने ऐसा नहीं किया।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यूक्रेन के नए सेना प्रमुख जनरल सिरस्की के पास रक्षात्मक और आक्रामक युद्ध दोनों का अनुभव है। उन्होंने 2022 में रूस के पूर्ण पैमाने पर आक्रमण की शुरुआत में यूक्रेन की राजधानी कीव की रक्षा का नेतृत्व किया था। इसके बाद उन्होंने गर्मियों में खार्किव में यूक्रेन के आश्चर्यजनक और सफल जवाबी हमले की योजना बनाई और तब से पूर्वी यूक्रेन में सैन्य अभियानों के प्रमुख के रूप में काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह सब देख कर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन खुश हो रहे हैं। उन्हें दिख रहा है कि एक ओर तो यूक्रेन को अब उतनी विदेशी मदद नहीं मिल पा रही है तथा दूसरी तरफ अब वह आपस में ही उलझ रहा है जिससे रूस के लिए जीत अब ज्यादा दूर नहीं रह गयी है।


प्रश्न-3. लाल सागर में हूतियों के हमले फिर बढ़ रहे हैं। ऐसा लगता है कि पश्चिमी देशों की कार्रवाई का उन पर कोई असर नहीं हुआ है। इस सबसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार बाधित हो रहा है। इसे कैसे देखते हैं आप?


उत्तर- लाल सागर में हूतियों के हमले बढ़ना पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। अमेरिका ने अपने सहयोगी देशों के साथ मिलकर हूतियों पर हमले भी किये लेकिन थोड़े विराम के बाद वह फिर से अपनी कारगुजारियों को करने लग गये। उन्होंने कहा कि लाल सागर मार्ग में जारी व्यवधान से अंतरराष्ट्रीय व्यापार में शामिल कंपनियों की माल ढुलाई और अन्य संबंधित लागत (एफएंडएफ) 25 से 30 प्रतिशत तक बढ़ने की आशंका है। 


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इंडरा ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि इस व्यवधान के चलते कार्यशील पूंजी चक्र 15-20 दिनों तक बढ़ने का अनुमान है। इसका असर कृषि और कपड़ा जैसे क्षेत्रों पर अधिक हो सकता है। उन्होंने कहा कि कार्यशील पूंजी चक्र का मतलब आपूर्तिकर्ताओं को किए गए भुगतान और बिक्री से मिलने वाले राजस्व के बीच की अवधि से है। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नकदी प्रवाह पर दबाव हालांकि बड़ी कंपनियों के लिए मध्यम है, लेकिन फिर भी उधारी में और वृद्धि होगी। खासतौर से लोहा और इस्पात, ऑटो और ऑटो कलपुर्जा, रसायन तथा कपड़ा जैसे क्षेत्रों में ऐसा खासतौर से देखने को मिल सकता है। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो कम मूल्यवर्धन वाली संस्थाओं के लिए यह चुनौतीपूर्ण वक्त है, क्योंकि उनका मार्जिन भी कम है। हालांकि, बड़ी कंपनियों के पास ऐसी वृद्धिशील लागत को समायोजित करने के लिए पर्याप्त गुंजाइश है। उन्होंने कहा कि मध्यम आकार की कंपनियों के लिए लागत और आपूर्ति, दोनों रूप में दोहरी चुनौती है।


प्रश्न-4. पाकिस्तान में धमाकों के बीच हुए चुनाव को कैसे देखते हैं आप?


उत्तर- पाकिस्तान से जो खबरें आ रही हैं वह दर्शा रही हैं कि चारों ओर धमाके हो रहे हैं। इन धमाकों के चलते अधिकांश मतदाता अपने घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं और जो मतदान केंद्र पर जा भी रहे हैं उन्हें वहां मौजूद सुरक्षाकर्मी एक खास पार्टी को वोट देने के लिए धमका रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह सब दर्शाता है कि लोकतंत्र के नाम पर सिर्फ दिखावा किया जा रहा है। वहां सेना पहले ही तय कर चुकी है कि कौन प्रधानमंत्री होगा और कौन किस विभाग का मंत्री होगा। वहां चुनाव के नाम पर सिर्फ और सिर्फ दिखावा ही किया जा रहा है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि आप पाकिस्तान का इतिहास उठा कर देखेंगे तो पाएंगे कि उसके गठन के बाद से वहां 43 सालों में 23 प्रधानमंत्री हुए हैं और 33 साल सेना का राज रहा है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा जिन 43 सालों में सरकार ने शासन किया उस दौरान भी सेना की पसंद का प्रधानमंत्री ही पाकिस्तान में रहा है। उन्होंने कहा कि सेना के अधिकारी भारत विरोधी भावनाएं भड़का कर और भारत विरोधी अभियान चला कर अपना स्वार्थ सिद्ध करते रहे। उन्होंने कहा कि सेना का भारी भरकम बजट रख कर पाकिस्तानी सेना के अधिकारी जम कर भ्रष्टाचार करते रहे और विदेशों में अपनी काफी संपत्तियां बना लीं। उन्होंने कहा कि कौन भूल सकता है जब परवेज मुशर्रफ ने निर्वाचित सरकार का तख्ता पलट किया था तो वह सीईओ के साथ ही सेनाध्यक्ष भी बन गये। उन्होंने कहा कि यह पहली बार था कि किसी देश का सीईओ था जैसे कि पाकिस्तान कोई देश नहीं बल्कि एक कंपनी हो। उन्होंने कहा कि आज पाकिस्तान पर जितना कर्ज है उतना तो हमारा इस साल का जम्मू-कश्मीर का बजट है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यह चुनाव कैसे निष्पक्ष हो सकते हैं जब एक व्यापक रूप से लोकप्रिय नेता और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को चुनाव लड़ने से ही रोक दिया गया है। उन्होंने कहा कि इमरान खान के समर्थन में जिस तरह जनता सड़कों पर उतरी थी और सेना के अधिकारियों के घरों पर ही हमले किये गये थे उसके बाद लोगों पर अत्याचार बढ़े हैं जिससे डर कर लोग मुंह नहीं खोल रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह डर ही था कि इमरान खान की पार्टी के कई नेताओं ने राजनीति से ही तौबा कर ली तो कई नेता पार्टी ही छोड़ कर चले गये। उन्होंने कहा कि विपक्ष को दबा कर वहां जिस तरह का चुनाव कराया जा रहा है उसका कोई मतलब नहीं है। उन्होंने कहा कि वैश्विक समुदाय देख रहा है कि एक भगोड़े नेता नवाज शरीफ को वापस लाकर उनके खिलाफ मुकदमे समाप्त किये गये और प्रधानमंत्री पद पर रहे इमरान खान की सरकार जबरन गिरा कर उन्हें सलाखों के पीछे धकेल दिया गया और गंभीर प्रकृति के मुकदमे उनके खिलाफ थोप कर उन्हें चुनाव लड़ने से वंचित कर दिया गया। उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि इस चुनाव के बाद पाकिस्तान की किसी प्रकार की विश्वसनीयता बढ़ेगी।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि मतदान में एक साल की देरी हुई जिससे आम लोगों की भी चुनावों के प्रति रुचि खत्म हो चुकी है। उन्होंने कहा कि दुनिया देख रही है कि यह संभवतः एकमात्र ऐसा देश है जहां 76 साल के इतिहास में किसी भी लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित प्रधानमंत्री ने कभी भी कार्यकाल पूरा नहीं किया है। उन्होंने कहा कि दशकों से आतंकवाद का पनाहगाह रहा यह देश अब खुद भी आतंकवाद और अलगाववाद से जूझ रहा है जिसका लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर काफी असर पड़ा है। चुनाव प्रचार से लेकर मतदान तक यही सब देखने को मिला। उन्होंने कहा कि ऐसे चुनावों का क्या मतलब है जहां घोषित आतंकवादी अपना दल बना कर चुनाव लड़ रहे हैं?


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि 74 वर्षीय पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को यदि चौथा कार्यकाल मिलता है तो यह उनकी ऐतिहासिक वापसी होगी क्योंकि इससे पहले वह भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में रहे और लंबे समय तक विदेशों में वर्षों के आत्म-निर्वासन में भी रहे। उन्होंने कहा कि यह भी देखना होगा कि प्रधानमंत्री पद के एक और उम्मीदवार बिलावल भुट्टो जरदारी क्या नवाज शरीफ के साथ जुड़ते हैं या फिर वह उनके प्रतिद्वंद्वी के रूप में सामने रहते हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की अधिकांश आबादी में निराशा की भावना है क्योंकि वह बेहद गरीबी के दौर में जी रहे हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को बांग्लादेश से सीख लेनी चाहिए जहां सेना प्रभावी भूमिका में तो है लेकिन नीतियां सरकार ही बनाती है और उन नीतियों की बदौलत बांग्लादेश आज एक सफल राष्ट्र है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पाकिस्तान की मतदाता सूची को देखेंगे तो पाएंगे कि अधिकांश वोटर युवा हैं। उन्होंने कहा कि यह युवा भारत से दुश्मनी नहीं चाहते बल्कि पूछ रहे हैं कि हम भारत से अलग क्यों हुए? उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी युवा भी आगे बढ़ना चाहता है लेकिन इसके मौके उन्हें पाकिस्तान में दिख नहीं रहे हैं साथ ही वहां कोई ऐसा नेता भी नहीं बचा है जो उनका मार्गदर्शन कर सके और यह विश्वास दिला सके कि वह पाकिस्तान को आगे बढ़ायेगा। उन्होंने कहा कि युवाओं की पसंद इमरान खान थे जिन्होंने देश को क्रिकेट विश्व कप दिलाया और परिवारवादी राजनीति से मुक्ति दिलाई लेकिन उन्हें सलाखों के पीछे डाल दिया गया है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में सुदूर क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि राजधानी इस्लामाबाद में भी चुनाव के प्रति लोगों की अरुचि दिखी जो दर्शाता है कि यह चुनाव सिर्फ एक खानापूर्ति भर है।


प्रश्न-5. भारत से तनावपूर्ण संबंधों के बीच मालदीव श्रीलंका के आगे मदद का हाथ फैला रहा है। चीनी चाल में वह पहले ही फंस चुका है। इस बीच मालदीव के राष्ट्रपति ने दावा किया है कि भारत के सभी सैनिकों को 10 मई से पहले वापस भेज दिया जायेगा। भारत-मालदीव के संबंधों के इस तनावपूर्ण दौर को कैसे देखते हैं आप?


उत्तर- मालदीव के पास अपना कुछ नहीं है उसे सब बाहर से ही मंगाना पड़ता है इसलिए वह कभी इस देश तो कभी उस देश के पास जाता है। दरअसल मालदीव की इस स्थिति के लिए राष्ट्रपति मुइज्जू जिम्मेदार हैं क्योंकि जिस एक जगह भारत से उन्हें सब कुछ मिल रहा था उससे वह संबंध बिगाड़ने पर तुले हैं। उन्होंने कहा कि जहां तक भारत-मालदीव संबंधों में ताजा अपडेट की बात है तो वह यह है कि भारत ने कहा है कि वह मालदीव में तीन विमानन मंचों का संचालन करने वाले अपने सैन्यकर्मियों के स्थान पर ‘सक्षम’ भारतीय तकनीकी कर्मियों को नियुक्त करेगा। इसके साथ ही भारत ने साफ किया है कि वह द्वीपीय देश का एक महत्वपूर्ण विकास भागीदार बना हुआ है। उन्होंने कहा कि मालदीव में तैनात सैन्यकर्मियों के मुद्दे का समाधान करने के लिए उच्चस्तरीय कोर समूह की दूसरी बैठक के बाद मालदीव के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि भारत 10 मई तक दो चरणों में अपने सैन्यकर्मियों के स्थान पर दूसरे कर्मियों को तैनात करेगा। मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने कहा था कि भारतीय सैन्य कर्मियों के पहले समूह को 10 मार्च से पहले वापस भेज दिया जाएगा और शेष कर्मियों को 10 मई से पहले वापस भेजा जाएगा। उन्होंने कहा कि कोर समूह की दूसरी बैठक दो फरवरी को दिल्ली में हुई थी। उन्होंने कहा कि पिछले साल दिसंबर में दुबई में आयोजित सीओपी28 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुइज्जू के बीच एक बैठक के बाद दोनों पक्षों ने कोर ग्रुप गठित करने का निर्णय लिया था। उन्होंने कहा कि वर्तमान में लगभग 80 भारतीय सैन्यकर्मी मालदीव में हैं जो मुख्य रूप से दो हेलीकॉप्टर और एक विमान संचालित करने में सहयोग करते हैं। इन हेलीकॉप्टर और विमान से सैकड़ों चिकित्सा निकासी और मानवीय मिशन को अंजाम दिया गया है। उन्होंने कहा कि भारत ने कहा है कि मालदीव को विकास सहायता के लिए बजटीय आवंटन के तहत निश्चित राशि आवंटित की गई थी और इसे संशोधित किया जा सकता है। वित्त वर्ष 2023-24 में मालदीव के लिए बजटीय आवंटन 400 करोड़ रुपये था, लेकिन संशोधित अनुमान से पता चला कि परिव्यय 770.90 करोड़ रुपये हो गया, जो प्रारंभिक राशि से लगभग दोगुना है। उन्होंने कहा कि भारत की ओर से वित्त वर्ष 2024-25 के अंतरिम बजट में मालदीव को विकास सहायता के रूप में 600 करोड़ रुपये की राशि की व्यवस्था की गई है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक मुइज्जू के लिए निजी राहत की बात है तो उनको राहत प्रदान करते हुए संसद के स्थायी आदेशों में हालिया संशोधन को टालने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया है। उन्होंने कहा कि इस संशोधन से विपक्षी सांसदों के लिए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पर महाभियोग चलाना आसान हो गया था। उन्होंने कहा कि मालदीव के संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव के लिए संसद के दो-तिहाई सदस्यों के मत की आवश्यकता होती है। हालांकि, संसद ने हाल ही में अपने स्थायी आदेशों में संशोधन किया था ताकि इसके लिए आवश्यक वोटों की संख्या कम करके महाभियोग प्रस्ताव पेश करना आसान हो सके। उन्होंने कहा कि मालदीव के अटॉर्नी जनरल कार्यालय ने 28 जनवरी को संशोधन पर उच्चतम न्यायालय में मामला दायर किया था। इसमें अदालत द्वारा अंतिम फैसला सुनाए जाने तक संशोधन को टालने की मांग की गई थी।

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