By नीरज कुमार दुबे | Aug 13, 2023
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी सेवानिवृत्त के साथ अंतर सेना संगठन विधेयक, पाकिस्तान के हालात, रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात, अफगानिस्तान-ईरान संबंध और चीन के आर्थिक संकट से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-
प्रश्न-1 संसद ने अंतर सेना संगठन (कमान, नियंत्रण एवं अनुशासन) विधेयक 2023 पारित किया है, इससे सेना और देश को क्या लाभ होगा?
उत्तर- यह सुरक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण विधेयक है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के कानून बनने से अंतर सेना संगठन की दक्षता बढ़ेगी और अनुशासनात्मक कार्यवाही को जल्द निस्तारित किया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि यह विधेयक विभिन्न कमानों के बीच समन्वय के मामले में एक मार्गदर्शक प्रकाश साबित होगा तथा इससे कमान नियंत्रण में सहायता भी मिलेगी।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस विधेयक के कानून बनने से सेनाओं में अनुशासन और काम करने का बेहतर माहौल बन सकेगा। उन्होंने कहा कि अभी तक थलसेना, वायुसेना एवं नौसेना अपने अपने संबंधित अधिनियम शासित होते हैं। किंतु अंतर सेना संगठनों के मामले में कर्मियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई में कठिनाइयां आती हैं। उन्होंने कहा कि रक्षा मंत्री ने बताया है कि सेना के तीनों अंगों से जानकारी लेकर तथा कानून एवं विधि मंत्रालय से परामर्श कर इस विधेयक को तैयार किया गया है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक अंतर सेना संगठनों के प्रमुखों को बेहतर अनुशासनात्मक एवं प्रशासनिक अधिकार प्रदान करता है और इससे वे अपने संगठन में प्रभावी कमान नियंत्रण और अनुशासन ला सकेंगे। उन्होंने कहा कि इससे हमारे सुरक्षा ढांचे को और अधिक मजबूती मिलेगी। उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि यह विधेयक भारत के सैन्य सुधारों की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस विधेयक के कारणों एवं उद्देश्य में कहा गया है कि वर्तमान में भारतीय वायु सेना, थलसेना एवं नौसेना के कार्यरत कर्मी क्रमश: वायुसेना अधिनियम 1950, थलसेना अधिनियम 1950 एवं नौसेना अधिनियम 1957 के तहत काम करते हैं। इसके अनुसार इन तीनों सेनाओं के अधिकारियों के पास यह अधिकार है कि वे अपनी सेवा के कर्मियों के ऊपर अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकें। इसमें कहा गया कि इस समय कई ऐसे अंतर सेना संगठन हैं जिसमें विभिन्न सशस्त्र बलों के कर्मी एक साथ काम करते हैं। वर्तमान में अंतर सेना संगठन के कमांडर चीफ या प्रमुख के पास अन्य सेवाओं के कर्मियों के विरूद्ध अनुशासनात्मक या प्रशासनिक कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है। इसमें कहा गया कि इस विधेयक के तहत अंतर सेना संगठन के कमांडर चीफ या प्रमुख के पास अन्य सेवाओं के कर्मियों के विरूद्ध अनुशासनात्मक या प्रशासनिक कार्रवाई करने का अधिकार दिया गया है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस विधेयक के पारित होने से अब उम्मीद है कि थियेटर कमांड भी जल्द हकीकत बनेगी। उन्होंने कहा कि अभी तक हमारी सेना की रणनीति अपनी सीमाओं की रक्षा करना है। उन्होंने कहा कि भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य से काम कर रहा है जिसमें थिएटर कमान की महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
प्रश्न-2 पाकिस्तान के वर्तमान हालात को आप कैसे देखते हैं? कहने को वहां आम चुनाव होने जा रहे हैं लेकिन प्रमुख विपक्षी नेता को ही चुनाव लड़ने से रोक दिया गया है?
उत्तर- पाकिस्तान के वर्तमान हालात उस देश में अस्थिरता को और बढ़ायेंगे। इसके साथ ही दुनिया को एक बार फिर दिख रहा है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र सिर्फ दिखावे के लिए है। वहां चुनाव होने वाले हैं मगर मुख्य विपक्षी नेता को जेल में डाल दिया गया है और उनकी पार्टी पर तमाम तरह की बंदिशें लगा दी गयी हैं। ऐसे में यह चुनाव एकतरफा और दुनिया की आंखों में धूल झोंकने के लिए ही है। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया देख रही है कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान जोकि बचपन से ही ऐशो आराम की जिंदगी जीने के आदी हैं वह इस समय जेल में बंद हैं और बुनियादी सुविधाओं तक के लिए तरस रहे हैं। उनके साथ ऐसा बर्ताव किया जा रहा है कि जैसे वह आतंकवादी हों।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इमरान खान की जेल के अंदर की दशा तो बुरी है ही साथ ही बाहर उनकी पार्टी की दशा और भी बुरी हो गयी है। इमरान खान को इससे पहले जब हाल ही में गिरफ्तार किया गया था तब पूरे पाकिस्तान में जमकर बवाल हुआ था। बवालियों पर पाकिस्तान सरकार ने ऐसी कार्रवाई की कि इस बार इमरान खान के समर्थन में कोई सड़क पर नहीं निकल रहा है। इमरान खान की पार्टी के कुछ नेता पाकिस्तानी सेना, आईएसआई और सरकार के डर से राजनीति छोड़ चुके हैं तो कुछ ने इमरान की पार्टी पीटीआई से त्यागपत्र दे दिया है। इमरान खान की पार्टी के कई बड़े नेता लंदन भाग गये हैं और वहां बीयर बार में बैठ कर इमरान के समर्थन में सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं या वीडियो जारी कर रहे हैं। इमरान खान को जब सड़कों पर अपनी पार्टी के नेताओं की जरूरत है तो उनके नेता लंदन जाकर बैठ गये हैं और जब सड़कों पर नेता ही नहीं हैं तो कार्यकर्ता भी उतरने से बच रहे हैं। ऐसे में अंधेरी कोठरी में बंद इमरान खान का भविष्य और अंधकारमय ही नजर आ रहा है।
प्रश्न-3 रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात क्या हैं। जेद्दा में शांति वार्ता का कोई हल क्यों नहीं निकला? रूस की ओर से हमलों में की गयी वृद्धि क्या दर्शाती है साथ ही हम यह भी जानना चाहते हैं कि अमेरिका ने साफ कर दिया है कि जी-20 शिखर सम्मेलन में रूस-यूक्रेन युद्ध चर्चा के शीर्ष विषयों में से एक होगा, यह देखते हुए क्या आपको लगता है कि इस सम्मेलन में व्लादिमीर पुतिन आएंगे?
उत्तर- जेद्दा में शांति वार्ता का कोई हल इसलिए नहीं निकला क्योंकि वहां पर एकतरफा बातचीत हो रही थी। जिसकी तरफ से युद्ध शुरू किया गया जब तक उससे बातचीत नहीं की जायेगी तो शांति कैसे स्थापित होगी। ऐसे तो यही लगेगा कि यह शांति वार्ता महज दिखावा थी। हालांकि इस वार्ता के आयोजकों की ओर से जल्द ही वार्ता का दूसरा दौर आयोजित करने की बात कही गयी है। जेद्दा बैठक के दौरान सभी देशों की ओर से जो बिंदु रखे गये उस पर रूस गौर कर रहा है। लेकिन रूस यह भी देख रहा है कि बैठक के दौरान यूक्रेन उन मुद्दों को लेकर अड़ा रहा जिस पर व्लादिमीर पुतिन कभी सहमत ही नहीं होंगे। जैसे यूक्रेन क्रीमिया को वापस चाहता है लेकिन रूस कभी ऐसा नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि रूस की ओर से जिस तरह हमले तेज किये गये हैं उसका कारण यह भी है कि पुतिन यह समझ गये हैं कि यूक्रेन को अब यूरोपीय और पश्चिमी देशों का वैसा समर्थन नहीं मिल पा रहा है जो उसे चाहिए। कहने को सब कह रहे हैं कि हम यूक्रेन के साथ हैं लेकिन जिस तरह यूक्रेन बार-बार हथियारों और पैसों के लिए हाथ फैला रहा है उससे अब नाटो देश थक चुके हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक अमेरिका ने कहा है कि अगले महीने भारत में होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन में रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध चर्चा के शीर्ष विषयों में से एक होगा, तो उस पर मेरा मानना है कि अब तक जी-20 की जितनी बैठकें भारत में हुई हैं, उनमें कहीं ना कहीं यूक्रेन से जुड़ा विषय आया ही है, इसलिए शिखर सम्मेलन में भी यह मुद्दा उठेगा ही। उन्होंने कहा कि वैसे तो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का आना मुश्किल लग रहा है लेकिन उन्हें बैठक में भाग लेने के लिए भारत आना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि पुतिन दिल्ली में होने वाले आयोजन के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से मुलाकात करेंगे तो तमाम मसले हल हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि पुतिन को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उनका साथ देने के लिए चीनी राष्ट्रपति तथा कुछ और देशों के राष्ट्राध्यक्ष भी यहां होंगे साथ ही भारत भी रूस का खास मित्र है इसलिए पुतिन को शांति से जुड़े मुद्दे पर बात करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत महात्मा बुद्ध और महात्मा गांधी की धरती है इसलिए हो सकता है रूस-यूक्रेन युद्ध का संघर्षविराम या युद्ध समाप्ति का फैसला यहीं पर होना लिखा हो।
प्रश्न-4 तालिबान का ईरान के साथ जल को लेकर क्या विवाद है? इस तरह की रिपोर्टें हैं कि तालिबान ईरान के लिए आत्मघाती हमलावर तैयार कर रहा है?
उत्तर- दरअसल जलवायु परिवर्तन के असर से जब पूरी दुनिया प्रभावित है तो अफगानिस्तान कैसे बच सकता है। अफगानिस्तान काफी समय से सूखे का सामना कर रहा है। वहां की सबसे बड़ी नदी है हेलमंद जोकि हिंदू कुश पहाड़ियों से होकर गुजरती है। इस नदी का एक भाग ईरान भी जाता है। ईरान का आरोप है कि जबसे अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान का कब्जा हुआ है तबसे जल समझौते का उल्लंघन किया जा रहा है और ईरानी क्षेत्रों में जल की आपूर्ति कम कर दी गयी है। अफगानिस्तान और ईरान के सीमायी क्षेत्रों को देखेंगे तो वहां पहले से आर्थिक हालात बेहद खराब हैं। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान के गृह युद्ध में फंसे होने के बाद से बड़ी आबादी ईरानी क्षेत्रों में पलायन कर गयी जिससे ईरान के संसाधनों पर दबाव भी पड़ा है। ईरान चाहता है कि उसे और पानी मिले लेकिन तालिबान शासन मना कर रहा है। ईरान के सामने मुश्किल यह है कि एक ओर उसने तालिबान शासन को मान्यता नहीं दे रखी है लेकिन दूसरी तरफ वह पानी के लिए उससे बात भी करना चाहता है। उन्होंने कहा कि इस साल मई में ईरानी राष्ट्रपति ने अफगानिस्तान को जल आपूर्ति समझौते का सम्मान करने या परिणाम भुगतने की जो चेतावनी दी थी उसने दोनों देशों के संबंध को बिगाड़ने का काम किया।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि तालिबानी वैसे भी कार्यालयों में बैठकर काम करने के आदी नहीं हैं। वह तो लड़ाकों को प्रशिक्षण देने या लड़ते रहने के लिए ही बने हैं इसलिए वह भी ऐसे किसी मौके की तलाश में थे जहां दमखम दिखाया जा सके। उन्होंने कहा कि ईरान के राष्ट्रपति की चेतावनी के लगभग एक सप्ताह बाद, सीमा पर झड़प हुई थी जिसमें दो ईरानी गार्ड और एक तालिबानी की मौत हो गई थी। इसके बाद तालिबान ने क्षेत्र में हजारों सैनिक और सैंकड़ों आत्मघाती हमलावर भेजे और ईरान को कह दिया कि वह युद्ध के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो तालिबानी जिस तरह से अपने पड़ोसियों- ईरान और पाकिस्तान से लगातार झगड़ रहे हैं उससे यह क्षेत्र और अस्थिर हो रहा है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अफगानिस्तान की सबसे लंबी हेलमंद नदी का पानी कृषि के लिए महत्वपूर्ण है और सीमा के दोनों ओर लाखों लोग इसका उपयोग करते हैं। ईरान का तर्क है कि तालिबान ने सत्ता में आने के बाद से पानी की आपूर्ति कम कर दी है और सौदेबाजी पर उतर आया है। जबकि तालिबान का कहना है कि यह समस्या केवल सूखे के कारण हुई और अफगानिस्तान समझौते का सम्मान करता है। लेकिन कूटनीति के बावजूद, तालिबान युद्ध के लिए भी तैयार है। विदेशी मीडिया रिपोर्टें बताती हैं कि आत्मघाती हमलावरों को तैयार कर लिया गया है और उनकी तैनाती तक कर दी गयी है। साथ ही इस बात की भी तैयारी है कि यदि ईरान के साथ युद्ध होता है तो कैसे अमेरिका द्वारा छोड़े गए सैंकड़ों सैन्य वाहनों और हथियारों का उपयोग करना है।
प्रश्न-5 रिपोर्टें हैं कि चीन के समक्ष बड़ा आर्थिक संकट आने वाला है क्योंकि पहली बार वह deflation का सामना कर रहा है। यह deflation क्या है और इससे कैसे चीन के भविष्य के मंसूबों पर पानी फिर सकता है?
उत्तर- चीन इस समय आर्थिक संकट का सामना कर रहा है जोकि तेजी से बढ़ने के संकेत हैं। उन्होंने कहा कि निश्चित ही चीन की अर्थव्यवस्था की जो तस्वीर इस समय दिख रही है उससे उसके विस्तारवादी एजेंडे को धक्का लग सकता है। ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जैसे मुद्रास्फीति होती है वैसे ही अपस्फीति होती है। उन्होंने कहा कि हर देश मुद्रास्फीति की एक दर निश्चित तय करके रखता है कि उसे उससे ज्यादा नहीं बढ़ने देना है ताकि महंगाई नियंत्रण में रहे। दरअसल अगर मुद्रास्फीति बिल्कुल नहीं होगी तो उस देश की अर्थव्यवस्था कैसे चलेगी? उन्होंने कहा कि अपस्फीति का मतलब यह है कि लोगों के पास पैसा भले है लेकिन वह उत्पाद नहीं खरीद रहे, लोग उत्पाद नहीं खरीद रहे तो उनकी कीमतें कम हो रही हैं, फैक्ट्रियां उनका उत्पादन घटा रही हैं और रोजगार के अवसरों को कम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि यह स्थिति ज्यादा दिन रहती है तो बड़े से बड़े देश की अर्थव्यवस्था बैठ जाती है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चीन के फैक्ट्री-गेट कीमतों में जुलाई में गिरावट आई, क्योंकि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बाजार में मांग को बढ़ाने के लिए संघर्ष कर रही है और बीजिंग पर अधिक प्रत्यक्ष नीति प्रोत्साहन को जारी करने का दबाव बढ़ता जा रहा है। उन्होंने कहा कि चिंता बढ़ रही है कि चीन कहीं जापान की तरह बहुत धीमी आर्थिक वृद्धि के युग में प्रवेश तो नहीं कर रहा है। उन्होंने कहा कि महामारी के बाद पहली तिमाही में तेज शुरुआत के बाद चीन की अर्थव्यवस्था में रिकवरी धीमी हो गई है क्योंकि देश और विदेश में मांग कमजोर हो गई है और अर्थव्यवस्था को समर्थन देने वाली कई नीतियां गतिविधि को बढ़ाने में विफल रहीं हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चीन का उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) जुलाई में साल-दर-साल 0.3% गिर गया। उन्होंने कहा कि उत्पादक मूल्य सूचकांक (पीपीआई) में भी लगातार 10वें महीने गिरावट आई, जो 4.4% की गिरावट है और यह पूर्वानुमानित 4.1% की गिरावट से भी अधिक है। उन्होंने कहा कि चीन उपभोक्ता कीमतों में साल-दर-साल गिरावट दर्ज करने वाली पहली जी20 अर्थव्यवस्था है और यह कमजोरी चीन के प्रमुख व्यापारिक भागीदारों के बीच व्यापार पर असर के बारे में चिंताओं को बढ़ाती है। उन्होंने कहा कि जुलाई में चीन के निर्यात और आयात दोनों में गिरावट देखी गई है। उन्होंने कहा कि चीन का रियल एस्टेट सेक्टर और बैंकिंग क्षेत्र भी चुनौतियों से जूझ रहा है। उन्होंने कहा कि कम ब्याज दरों के बावजूद, चिंतित उपभोक्ता और कंपनियां पैसा खर्च करने या निवेश करने की बजाय नकदी जमा कर रही हैं। उन्होंने कहा कि इसके अलावा अली बाबा कंपनी के मालिक के साथ चीन ने जो बर्ताव किया उससे चीन के उद्योगपतियों में भी चिंता देखी जा रही है। उन्होंने कहा कि चीन के संदिग्ध रवैये के चलते बहुत से देश उसका निवेश नहीं ले रहे हैं, चीन में विदेशी निवेश लगभग बंद हो चुका है और कई बड़ी कंपनियां चीन को छोड़ चुकी हैं। उन्होंने कहा कि चीन जैसा सस्ता श्रम और बेहतर तकनीक अब कई एशियाई देशों में उपलब्ध है इसलिए लोग चीन को छोड़ रहे हैं जिसका नुकसान चीन को होना ही है।