By नीरज कुमार दुबे | Apr 03, 2025
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह बांग्लादेश-चीन संबंधों, नेपाल के हालात, रूस-यूक्रेन युद्ध और ईरान-अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव से जुड़े मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ बातचीत की। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-
प्रश्न-1. बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने चीन से बांग्लादेश में अपना आर्थिक प्रभाव बढ़ाने की अपील करते हुए कहा है कि भारत के पूर्वोत्तर राज्यों का चारों ओर से जमीन से घिरा होना इस संबंध में एक अवसर साबित हो सकता है। ऐसे में जबकि चीन की नजर पूर्वोत्तर क्षेत्र पर पहले ही लगी रहती है तब बांग्लादेश की ओर से दिये गये इस प्रस्ताव को कैसे देखते हैं आप?
उत्तर- मोहम्मद यूनुस एक वायरल क्लिप में यह कहते दिखाई देते हैं कि उनका देश महासागर (बंगाल की खाड़ी) का एकमात्र संरक्षक है क्योंकि भारत के पूर्वोत्तर राज्य चारों ओर से जमीन से घिरे हैं और उनके पास समुद्र तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है। उन्होंने कहा कि यूनुस आगे कहते हैं कि इससे ‘‘बड़ी संभावनाएं’’ खुलेंगी और चीन को बांग्लादेश में अपना आर्थिक प्रभाव बढ़ाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यूनुस ने ये टिप्पणियां चीन की अपनी चार दिवसीय यात्रा के दौरान कीं। उन्होंने कहा कि यह बहुत गंभीर मुद्दा है और यह राष्ट्र की सुरक्षा से संबंधित है। उन्होंने कहा कि वह चीन के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए हमारे देश के क्षेत्रों का उल्लेख कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि निश्चित ही भारत सरकार इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनायेगी। लेकिन मुझे लगता है कि चीन के प्रभाव में रहने के दौरान जब नेपाल जिस तरह भारत विरोधी बातें कर रहा था तब भी भारत ने बड़ा धैर्य और संयम दिखाते हुए नेपाल को अक्ल आने का इंतजार किया था वैसा ही बांग्लादेश के मुद्दे पर भी सरकार रुख अपना सकती है। उन्होंने कहा कि पड़ोसी देशों के साथ बयानबाजी में उलझने से दिक्कतें बढ़ती हैं और आगे संबंध बेहतर होने की संभावनाएं क्षीण हो जाती हैं। पाकिस्तान इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने साथ ही कहा कि इस मुद्दे पर असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा का बयान काफी अच्छा आया है जिसमें उन्होंने ‘चिकन्स नेक’ के अलावा पूर्वोत्तर को शेष भारत से जोड़ने वाले वैकल्पिक मार्गों की खोज को प्राथमिकता देने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि वैसे यह चिंताजनक बात है कि भारत को घेरने के लिए बांग्लादेश चीन को आमंत्रित कर रहा है। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश सरकार का यह रवैया हमारे पूर्वोत्तर क्षेत्र की सुरक्षा के लिए बहुत खतरनाक है। हालांकि उन्होंने कहा कि नयी दिल्ली को यूनुस के बयानों से घबराना नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि उनके बयानों से इस वास्तविकता में कोई बदलाव नहीं आता कि भारत आज क्या है और वह क्या करने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि भारत अपनी सुरक्षा चिंताओं की रक्षा करने में पूरी तरह सक्षम है। उन्होंने साथ ही कहा कि द्विपक्षीय संबंधों के संदर्भ में भारत के प्रति बांग्लादेश की नीति में किसी बड़े बदलाव का कोई संकेत नजर नहीं आ रहा है क्योंकि नयी दिल्ली ने यूनुस के चीन दौरे और वहां की गयी टिप्पणियों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। उन्होंने कहा कि देखना होगा कि बिस्मटेक सम्मेलन के दौरान क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मोहम्मद यूनुस के बीच द्विपक्षीय मुलाकात होती है या नहीं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वैसे इसमें कोई दो राय नहीं कि जिस तरह बांग्लादेश पहले खुद भारत विरोध पर उतरा, उसके बाद भारत के दुश्मन नंबर एक पाकिस्तान के साथ करीबी संबंध बनाये और अब चीन के पाले में जा रहा है उस पर दिल्ली चुपचाप नहीं बैठी रहेगी। समय आने पर ऐसे लोगों का सही ईलाज किया ही जायेगा। उन्होंने कहा कि वैसे भारत के कुछ पड़ोसी देश जैसे- श्रीलंका, मालदीव और नेपाल आदि चीन के करीब जाकर और भारत विरोधी रुख अपना कर खुद का नुकसान करा चुके हैं और उन्हें अब संभवतः सही और गलत का अहसास हो चुका है। संभव है बांग्लादेश में भी जल्द ही सुधार हो। उन्होंने कहा कि वैसे भी बांग्लादेश का इतिहास रहा है कि जब-जब वहां कट्टरपंथी तत्व सत्ता में रहे हैं तब-तब उस देश के भारत के साथ संबंध खराब ही रहे हैं।
प्रश्न-2. नेपाल में राजशाही के समर्थन में और सरकार के विरोध में बढ़ते प्रदर्शन क्या दर्शा रहे हैं? यह सही है कि वहां सरकारें सफल नहीं हो पा रही हैं लेकिन पूर्व में राजशाही भी सफल नहीं हुई थी। नेपाल का भविष्य किस ओर जा रहा है?
उत्तर- नेपाल में कम्युनिस्ट शासन पूरी तरह विफल हो चुका है इसलिए जनता सड़कों पर है। उन्होंने कहा कि नेपाल में महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी चरम पर है और ऐसी स्थिति राजतंत्र के रहते हुए कभी नहीं आई थी। उन्होंने कहा कि इसके अलावा जिस तरह नेपाली संस्कृति और वहां के रहन-सहन को बदला जा रहा है उससे भी नेपालवासी चिंतित हैं। उन्होंने कहा कि भले नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली कह रहे हैं कि पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र शाह ने सामाजिक सौहार्द में खलल डालने और सामाजिक विभाजन पैदा करने की कोशिश की, लेकिन सच्चाई यह है कि पिछले 17 सालों में नेपाल की हर सरकार जनता की आकांक्षा पूरी करने में विफल रही। उन्होंने कहा कि जहां तक नेपाल के भविष्य का सवाल है तो वह वहां के शासक नहीं बल्कि जनता ही तय करेगी।
प्रश्न-3. रूस-यूक्रेन युद्ध में अब जमीनी हालात क्या हैं और संघर्षविराम की क्या संभावना है? साथ ही अमेरिकी मीडिया की उस खबर के बारे में आपका क्या कहना है जिसमें कहा गया है कि भारत ने रूस को तकनीक भेजकर उसकी मदद की?
उत्तर- संघर्षविराम की जहां तक बात है तो इसमें अभी देरी नजर आ रही है क्योंकि रूस और यूक्रेन दोनों में ही एक समानता देखने को मिल रही है कि वह डोनाल्ड ट्रंप के प्रस्तावों पर बहुत धीरे धीरे काम कर रहे हैं और किसी जल्दबाजी में नहीं दिख रहे। उन्होंने कहा कि जहां तक युद्ध क्षेत्र की बात है तो रूस तेजी से आगे बढ़ता जा रहा है और अमेरिका यूक्रेन की जिस खनिज संपदा पर अपनी नजर बनाये हुए है उस पर भी पुतिन की सेना कब्जा करती जा रही है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हालांकि वोलोदिमीर जेलेंस्की ने "बिना शर्त युद्ध विराम" में शामिल होने के लिए यूक्रेन की तत्परता की घोषणा कर दी है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा एक और बयान देखने को मिला है कि चीन यूक्रेन में युद्ध को समाप्त करने में "रचनात्मक भूमिका" निभाने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि चीन का यह बयान ऐसे समय आया है जबकि वह रूस को उसके "हितों" की रक्षा करने में सहायता कर रहा है। उन्होंने कहा कि चीनी विदेश मंत्री इस समय मास्को में हैं और अपने रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव के साथ चर्चा करने के अलावा राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी मिलने वाले हैं। उन्होंने कहा कि इसके अलावा अमेरिका में रूस के नये राजदूत भी राष्ट्रपति ट्रंप और रूस-यूक्रेन युद्ध के लिए अमेरिकी वार्ताकार से मुलाकात करने वाले हैं। उन्होंने कहा कि एकाध दिनों में कई महत्वपूर्ण वार्ताएं होनी हैं जिनसे कुछ ना कुछ निकल कर आयेगा ही। उन्होंने कहा कि वैसे एक बात तो है कि ट्रंप जिस तरह शुरू में दावा कर रहे थे कि वह 24 घंटे में रूस-यूक्रेन युद्ध को बंद करा देंगे उसके बारे में उन्हें पता चल गया होगा कि यह मामला कितना जटिल है और आसानी से सुलझने वाला नहीं है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कह रहे हैं कि उन्हें उम्मीद है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए समझौते के "अपने हिस्से को पूरा करेंगे"। उन्होंने कहा कि ट्रंप ने साथ ही कहा कि मैं यह सुनिश्चित करना चाहता हूं कि रूस योजना का पालन करे। उन्होंने कहा कि जहां तक एचएएल की ओर से रूस को तकनीक देने की खबर की बात है तो वह बेबुनियाद है। उन्होंने कहा कि भारत के विदेश मंत्रालय ने न्यूयॉर्क टाइम्स की एक खबर का जोरदार खंडन किया है जिसमें आरोप लगाया गया है कि भारत के सरकारी स्वामित्व वाली हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने रूस को "ब्रिटिश संवेदनशील उपकरण भेजे" हो सकते हैं, जिससे मास्को को यूक्रेन के खिलाफ अपने युद्ध प्रयास को जारी रखने में मदद मिली।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक रूसी सेना की बात है तो इसमें कोई दो राय नहीं कि वह दुनिया में अब सबसे शक्तिशाली हो गयी है क्योंकि उसके पास तीन सालों से लगातार युद्ध लड़ने और जीत की राह पर आगे बढ़ने का अनुभव है। रूसी सेना के पास इस बात का भी अनुभव है कि कैसे उसने नाटो देशों के एक से बढ़कर एक हथियारों से किये गये हमलों को विफल कर दिया। उन्होंने कहा कि पुतिन अब अपनी सेना की क्षमता में और बड़ा इजाफा करने जा रहे हैं क्योंकि उन्होंने एक दशक की सबसे बड़ी भर्ती का ऐलान कर दिया है। उन्होंने कहा कि रूसी सरकार 18 से 30 वर्ष आयु के 1 लाख 60 हजार युवाओं को सेना में शामिल करने जा रही है। उन्होंने कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि रूस की सेना में 23 लाख 90 हजार जवान होने चाहिए। इसमें 15 लाख सक्रिय सैनिक हों इसके लिए वह भर्ती का महा-अभियान चलाएंगे। उन्होंने कहा कि हैरानी की बात यह है कि नई भर्ती का ऐलान ऐसे समय पर हो रहा है जब अमेरिका रूस पर संघर्षविराम के लिए दबाव बना रहा है।
प्रश्न-4. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान पर बमबारी की धमकी दी तो तेहरान ने भी अपनी तैयारी शुरू कर दी है। क्या दोनों के बीच सीधी भिड़ंत हो सकती है?
उत्तर- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इस बयान के बाद ईरान ने नाराजगी जताई है कि अगर ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने की अमेरिकी मांगें नहीं मानता है तो उस पर बमबारी की जाएगी। उन्होंने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा है कि अगर ईरान “कोई समझौता नहीं करता है, तो बमबारी की जाएगी। यह ऐसी बमबारी होगी, जैसी उन्होंने पहले कभी नहीं देखी होगी।” उन्होंने कहा कि ट्रंप की यह ताजा धमकी, जो पहले दी गई किसी भी धमकी से कहीं अधिक स्पष्ट और हिंसक है, तब आई जब उन्होंने ईरान को एक पत्र भेजा, जिसका अभी तक खुलासा नहीं किया गया है, जिसमें उन्होंने अपने परमाणु कार्यक्रम पर बातचीत करने की पेशकश की है। उन्होंने कहा कि बताया जा रहा है कि अधिकारियों ने पुष्टि की है कि ईरान ने अमेरिका को एक जवाब भेजा था, जिसमें कहा गया था कि वह अप्रत्यक्ष बातचीत करने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माइल बघेई ने ट्रंप की धमकी के बारे में कहा, “किसी देश के प्रमुख द्वारा ईरान पर बमबारी करने की स्पष्ट धमकी अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के सार के लिए स्पष्ट विरोधाभास है। उन्होंने कहा कि ईरान ने कहा है कि इस तरह की धमकी संयुक्त राष्ट्र चार्टर का घोर उल्लंघन है और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी सुरक्षा व्यवस्था का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि ईरान ने भी पलटवार में कहा है कि हिंसा आखिर हिंसा ही लाती है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई जो अमेरिका के साथ बातचीत के बारे में संशय में हैं, उन्होंने कहा कि ईरान ट्रंप के शब्दों से "बहुत चिंतित नहीं है"। उन्होंने कहा कि खामेनेई ने कहा है कि हमें लगता है कि इस तरह का नुकसान बाहर से होने की संभावना नहीं है। हालांकि, अगर कोई दुर्भावनापूर्ण कार्य होता है, तो निश्चित रूप से इसका दृढ़ और निर्णायक जवाब दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि इसके अलावा रिवोल्यूशनरी गार्ड के एयरोस्पेस फोर्स के कमांडर ब्रिगेडियर जनरल आमिर अली हाजीजादेह ने कहा है कि कांच के घरों में रहने वाला कोई व्यक्ति किसी पर पत्थर नहीं फेंकता है। उन्होंने कहा कि ईरानी कमांडर ने साथ ही कहा है कि अमेरिकियों के पास इस क्षेत्र में 50,000 सैनिकों के साथ कम से कम 10 बेस हैं, जिसका मतलब है कि वे कांच के घर में बैठे हैं। उन्होंने कहा कि लेकिन साथ ही ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने कूटनीतिक रास्ते भी सुझाये हैं। उन्होंने बताया कि ईरानी विदेश मंत्री का कहना है कि ईरान ने ओमान में मध्यस्थों के माध्यम से अमेरिकी राष्ट्रपति के पत्र का पहले ही जवाब दे दिया है और उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें पता है कि ईरानी पत्र अब अमेरिका तक पहुँच गया है। उन्होंने कहा कि अराघची ने कहा है कि जब तक अमेरिका ईरान को धमकाता रहेगा, तब तक सीधी बातचीत संभव नहीं है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने वार्ता का प्रस्ताव करते हुए अपना मूल पत्र संयुक्त अरब अमीरात के वरिष्ठ राजनयिक दूत अनवर गरगाश के माध्यम से भेजा था। उन्होंने कहा कि मध्यस्थ के रूप में गरगाश को चुनने को इस बात के संकेत के रूप में देखा गया कि पत्र का उद्देश्य वार्ता को एक वास्तविक मौका देना था। उन्होंने कहा कि ट्रंप ने प्रगति के लिए मध्य मई की समयसीमा तय की है, लेकिन अगस्त के मध्य की एक लंबी समयसीमा भी है, जिसके बाद मूल 2015 परमाणु समझौता काफी हद तक समाप्त हो जाएगा। उन्होंने कहा कि ट्रंप ने 2018 में अमेरिका को उस समझौते से बाहर कर दिया था हालांकि इस कदम को व्यापक रूप से एक गलती के रूप में देखा गया क्योंकि इसने ईरान को अपने यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम को गति देने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि साथ ही इस मामले में एक पहलू यह भी है कि ईरान ने यूएई की बजाय अपने पारंपरिक चुने हुए मध्यस्थ ओमान के माध्यम से अपना उत्तर भेजा। उन्होंने कहा कि यह दर्शाता है कि ईरान नहीं चाहता कि यूएई, जिसने इज़राइल के साथ संबंधों को सामान्य कर लिया है वह मध्यस्थ के रूप में कार्य करे।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा तेहरान ने इस बात पर कोई टिप्पणी नहीं की है कि ईरान से समझौते की मांग वाले ट्रंप के पत्र में क्या-क्या मांगें की गयी थीं। उन्होंने कहा कि लेकिन इराक में ईरानी राजदूत मोहम्मद काज़म अल-सादघ ने संकेत दिया है कि अमेरिका परमाणु कार्यक्रम से कहीं अधिक व्यापक वार्ता चाहता है। उन्होंने कहा कि बताया जा रहा है कि पत्र में ईरान समर्थित इराकी पॉपुलर मोबिलाइजेशन फोर्स मिलिशिया को भंग करने की मांग भी की गयी है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा यह भी चर्चा है कि अमेरिकी प्रशासन इस बात पर विभाजित है कि क्या ईरान से केवल यह मांग की जाए कि वह अपने असैन्य परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण के लिए खोले, या फिर यह मांग की जाये कि वह अपने परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह से समाप्त करे या फिर यह मांग की जाये कि मध्य पूर्व में गाजा में हमास और यमन में हौथियों जैसे प्रतिरोध समूहों को वित्तपोषित करने की प्रतिबद्धता से ईरान पीछे हटे। उन्होंने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज ने ईरानी परमाणु कार्यक्रम को “पूरी तरह से खत्म” करने का आह्वान किया है, जिसे तेहरान ने खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा कि इसके विपरीत, राष्ट्रपति ट्रंप के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ ने केवल ईरान के परमाणु कार्यक्रम को प्रतिबंधित करने की बात कही है जिसे ईरान 2015 से ही स्वीकार करने को तैयार है, बशर्ते कि इससे ईरानी अर्थव्यवस्था पर लगे प्रतिबंधों को हटाया जाए।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस तरह दोनों देशों के बीच भले ही सीधे तौर पर नहीं लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर भी जो कूटनीति चल रही है वह किसी भी हमले की संभावना को कम कर रही है। उन्होंने कहा कि संभव है कि ईरान परमाणु हथियार हासिल कर चुका हो ऐसे में उस पर किया गया कोई हमला एक और विश्व युद्ध करवा सकता है।