नयी दिल्ली। भारत के वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने की महत्वाकांक्षा की अपेक्षा देश का मोबाइल विनिर्माण काफी पीछे है। इसलिए अब देश को इस दिशा में ‘बड़ा सोचने’ की जरूरत है। उसे विनिर्माण स्तर को बढ़ाने, उच्च प्रौद्योगिकी वाले फोन के विनिर्माण और निर्यात को प्रोत्साहन पर ध्यान देना होगा। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमएआई) की एक रपट में यह बात कही गई है। आईएएमएआई ने ‘मेक इन इंडिया 2.0 (मोबाइल विनिर्माण पर फिर ध्यान)’ नाम से यह रपट जारी की है।
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रपट में कहा गया है कि वैश्विक मोबाइल हैंडसेट बाजार का आकार 487 अरब डॉलर (करीब 32 लाख करोड़ रुपये) का है। इस मांग को अभी मुख्य तौर पर चीन, वियतनाम, दक्षिण कोरिया और ताइवान पूरा कर रहे हैं। भारत की हिस्सेदारी इसमें लगभग नगण्य है। रपट में कहा गया है कि भारत की विनिर्माण क्षमता की कुछ सीमाएं हैं। वहीं आपूर्ति श्रृंखला के मामले में भारत पीछे है।
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रपट के अनुसार भारत ने कई पहल की हैं जिसकी वजह से कुछ कंपनियों ने यहां असेंबलिंग संयंत्र स्थापित किए हैं। लेकिन उसे चरणबद्ध तरीके से विनिर्माण कार्यक्रम को लागू करना होगा। इतना ही नहीं वेंडर और आपूर्तिकर्ताओं के लिए एक व्यापक वातावरण तैयार करना होगा ताकि कलपुर्जे बनाने वाली बड़ी कंपनियां यहां आएं जबकि असेंबलिंग इकाइयां यहां से कहीं न जाएं।