By अनुराग गुप्ता | Feb 22, 2021
नयी दिल्ली। बांग्लादेश के उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को अंग्रेजी से बांग्ला में अदालती आदेशों और निर्णयों का अनुवाद करने वाले सॉफ्टवेयर 'अमार वाशा' की शुरुआत की। आपको बता दें कि अमार वाशा सॉफ्टवेयर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित है। इस सॉफ्टवेयर को भारत की एक संस्था के साथ मिलकर विकसित किया गया है। जिसका नाम 'एक स्टेप' फाउंडेशन है।
अंग्रेजी समाचार पत्र 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' में छपी रिपोर्ट के मुताबिक बांग्लादेश में भारत के उच्चायुक्त विक्रम दोराईस्वामी ने बताया कि भारत में डिजाइन किये गये इस अनूठे अनुवाद सॉफ्टवेयर को बांग्लादेश के साथ साझा करना हमारी अद्वितीय शक्तियों की पहचान है। केवल भारत और बांग्लादेश ही ऐसे बांग्ला सॉफ्टवेयर पर एक साथ काम कर सकते थे। उन्होंने कहा कि बांग्ला हमारी साझा विरासत है। आपको बता दें कि बांग्ला भाषा भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में मान्यता प्राप्त 22 भाषाओं में से एक है।
भारत में भी होता है इस्तेमाल !
साल 2019 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भारत के उच्चतम न्यायालय से अपने आदेशों को भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने को कहा था। क्योंकि अधिकतर भारतीय अदालत के आदेशों को समझ नहीं पाते थे और इसकी असल वजह अंग्रेजी भाषा होती थी। ऐसे में नवंबर 2019 से उच्चतम न्यायालय में अनुवाद सॉफ्टवेयर 'सुवास' का इस्तेमाल किया जा रहा है।
'एक स्टेप' फाउंडेशन के विवेक राघवन ने बताया कि यह एक लर्निंग सॉफ्टवेयर है। एक पेज का अनुवाद करने में इसे 15 सेकंड का समय लगता है। उन्होंने बताया कि यह मशीन लर्निंग सॉफ्टवेयर है, इसीलिए यह दो बार एक तरह की गलती नहीं करता है।
विक्रम दोराईस्वामी ने बताया कि नवंबर 2020 में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस सिलसिले में मदद मांगी थी। जिसके बाद 'एक स्टेप' फाउंडेशन ने बांग्लादेश के लिए एक अनुकूलित सॉफ्टवेयर विकसित किया। आपको बता दें कि 'अमार वाशा' सॉफ्टवेयर का उद्धाटन बांग्लादेश के प्रधान न्यायाधीश सैय्यद महमूद हुसैन, कानून मंत्री अनिसुल हक और विभागीय सचिव मोहम्मद गुलाम सरवर एवं बांग्लादेश में भारत के उच्चायुक्त विक्रम दोराईस्वामी द्वारा किया गया।
कौन केस में किया गया पहला अनुवाद
'अमार वाशा' सॉफ्टवेयर के माध्यम से जिस पहले फैसले का अनुवाद किया गया वह पूर्वी पाकिस्तान उच्च न्यायालय के 1969 का फैसला था, जिसमें शेख मुजीबुर रहमान को बरी कर दिया गया था। इस मामले का अनुवाद महज 3 मिनट के भीतर पूरा हो गया।