मिशन शक्ति ने गर्वित भी किया और हमारे रक्षा क्षेत्र को आत्मनिर्भर भी बनाया

By कमलेश पांडे | Mar 30, 2019

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के वैज्ञानिकों के ‘मिशन शक्ति’ की सफलता ने भारत को एक अंतरिक्ष शक्ति में तब्दील कर दिया है। अब दुनिया भी यह मान गई कि डिफेंस सिस्टम में भारत एक अग्रणी और आत्मनिर्भर देश बन चुका है। यहां के वैज्ञानिक भी वैश्विक तकनीकी चुनौतियों का मुकाबला करने में सक्षम हैं। अब चाहे दोस्त हों या फिर दुश्मन, अंतरिक्ष में कोई भी भारत के खिलाफ जुर्रत नहीं कर पायेगा। कहना न होगा कि जिस तरह से सीमित साधनों में भी लक्षित लक्ष्य को पाने की दक्षता उन्होंने हासिल की है, उससे आम भारतीयों का मस्तक ऊंचा उठा है।

 

पिछले दिनों यह दिखा कि हम कुछ ही सेंटीमीटर की सटीकता के साथ लंबी दूरी के उपग्रहों पर भी प्रहार कर सकते हैं। क्योंकि महज 180 सेकंड में एंटी सेटेलाइट वेपन का प्रयोग कर सेटेलाइट को मार गिरा कर वैज्ञानिकों ने भारत को डिफेन्स सिस्टम में अग्रणी एवं आत्मनिर्भर बना दिया है, जिससे विश्व में अमेरिका, रूस एवं चीन के बाद भारत अब चौथा स्पेस पवार बन गया है। 

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वास्तव में, मिशन शक्ति अपनी क्षमताओं के प्रदर्शन का सवाल है। क्योंकि जब भी आप अपनी क्षमताओं को प्रदर्शित करते हैं तो आपको उसका लाभ भी मिलता है। लिहाजा, आज इसका फायदा यह हुआ कि हमने दुनिया को बता दिया कि भारत के पास स्पेस में सैटलाइट को इंटरसेप्ट करने की क्षमता है, जिससे अंतरिक्ष में अब कोई भी किसी प्रकार का जुर्रत न करे। इससे न तो आपके दोस्त और न ही आपके दुश्मन, स्पेस में भारत से टकराएंगे। 

 

बेशक, जैसे हम परमाणु ताकत का इस्तेमाल सिर्फ शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए करेंगे। उसी तरह से यह परीक्षण हथियारों को कोई होड़ नहीं है, बल्कि ऐंटी-सैटलाइट गतिविधि एक प्रतिरोधात्मक (डेटरेंट) क्षमता है और डेटरेंस क्षमताओं से किसी भी तरह की हथियारों की होड़ नहीं शुरू होती। क्योंकि लोगों को अब पता चल चुका है कि परमाणु हथियार सिर्फ प्रतिरोधात्मक क्षमताओं के लिए ही ठीक हैं। गौरतलब है कि 1958 में डीआरडीओ की स्थापना से देश की सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में किये गये प्रयासों और उपलब्धियों के लिये हम 130 करोड़ भारतियों को व समुन्दर पार रह रहे भारतीयों का गर्व से सीना चौड़ा हो गया है।

 

देखा जाए तो डीआरडीओ के लिए यह एक तकनीकी सफलता है। एक ऐसी अति महत्वपूर्ण तकनीकी कामयाबी, जो वास्तव में अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक बड़ी छलांग कही जा रही है। स्वदेशी के अलावा विदेशी मीडिया में भी यही चर्चा है, जिससे भारत का महत्व बढ़ा है। कहना न होगा कि उपग्रह-रोधी मिसाइल के सफल परीक्षण के साथ भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान ने बुलंदियों का एक और नया आयाम तय किया है। वैसे भी अंतरिक्ष में भारत के अनेक उपग्रह तैनात हैं, जो दूरसंचार, आपदा प्रबंधन, मौसम, कृषि और नेविगेशन आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। 

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विशेष कर लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों को इंटरसेप्ट करने और रणनीतिक मिसाइलों की बेहतर शुद्धता के लिहाज से यह तकनीक काफी अहम है। क्योंकि भारत का यह मिशन पूरी तरह से स्वदेशी था। अमूमन, अंतरिक्ष के कार्यक्रम को जारी रखने के लिए इस तरह के अनुसंधान प्रशिक्षणों को जरूरी माना जाता है।

 

बता दें कि डीआरडीओ और इसरो के संयुक्त कार्यक्रम 'मिशन शक्ति' के तहत यह उपग्रह-रोधी परीक्षण ओडिशा के बालासोर स्थित डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्रक्षेपण परिसर से किया गया। जिसमें प्रयुक्त उपग्रह भारत का ही अप्रयुक्त उपग्रह था। उसको मार गिराने के लिए डीआरडीओ के बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस इंटरसेप्टर का प्रयोग किया गया, जो इस समय चल रहे हमारे बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम का ही हिस्सा है। हमारे देश के वैज्ञानिकों ने इस बात का भी ख्याल रखा कि उपग्रह को नष्ट करने के बाद अंतरिक्ष में कचरा न फैले। इसे सुनिश्चित करने के लिए ही यह परीक्षण निम्न कक्षा में किया गया। उल्लेखनीय है कि इस विस्फोट के बाद जो कुछ कचरा बिखरा है, वह क्षय के बाद पृथ्वी पर गिर जाएगा।

 

दरअसल, उपग्रह-रोधी मिसाइल सिस्टम का उद्देश्य शत्रु के उपग्रहों को नष्ट करने के अलावा शत्रु देश के अपनी फौज से संचार संपर्क को बाधित करना भी है। इससे शत्रु को अपनी फौजों की तैनाती और मिसाइलों के बारे में सूचनाएं प्राप्त करने से भी रोका जा सकेगा। वैसे तो चीन द्वारा वर्ष 2007 में किए गए एंटी-सैटेलाइट मिसाइल टेस्ट के बाद ही भारत ने इस क्षेत्र में अपनी सक्रियता दिखाई और अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने के लिए कतिपय ठोस कदम उठाए, जिससे हमें यह महत्वपूर्ण मुकाम हासिल हुआ है। 

 

हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि तत्कालीन यूपीए सरकार ने उस समय कहा था कि एंटी-सैटेलाइट मिसाइल की चीन की क्षमता भारत के लिए एक गंभीर चुनौती और खतरा दोनों है, जिसके मद्देनजर हम अपनी अलग टेक्नोलॉजी विकसित करने के लिए आवश्यक कदम उठा रहे हैं। तब तत्कालीन रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार वीके सारस्वत ने भी कहा था कि बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम के तहत हमारे पास वह सारी तकनीक है, जिसके सहारे उपग्रहों की रक्षा करने या भविष्य की अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए सिस्टम खड़ा किया जा सकता है। और, आज खुशी की बात यह है कि परवर्ती सरकार भी देश के इरादे के साथ डटी रही और हमारे वैज्ञानिकों ने उस मुकाम को पा लिया, जिस पर हमें गर्व है।

 

-कमलेश पांडे

(वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार)

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