भारत के पास तिब्बत के रूप में है ऐसा ब्रह्मास्त्र, चीन की सारी चालबाजियों को पल भर में कर देगा परास्त

By अशोक मधुप | May 10, 2024

चीन आजकल परेशान है। बताया जा रहा है कि वह भारत के रवैये से डरा हुआ है। दुश्मन का डरा होना और परेशान रहना ज्यादा बेहतर है। इससे वह अपनी समस्या सुलझाने में लगेगा। अपने दुश्मन देशों को तंग नहीं करेगा। उन पर दबाव–धौंस नहीं दिखाएगा। कभी चीन का व्यवहार हमें परेशानी कर रहा है। वह सीमापर घुसपैंठ करता। क्षेत्र के अंदर आए भारत के भाग में जमता और सौदेबाजी करता। किंतु अब ये बदलता  भारत है। बकौल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब भारत दुश्मन को उसके घर में घुसकर मार रहा है। परिणाम है कि आज चीन की आंखों में आंखे डालकर बात की जा रही है। सूचनाएं हैं कि चीन भारत की ब्रह्मोस से डरा हुआ है जब से भारत का शक्तिशाली ब्रह्मोस मिसाइल चीन के करीब तैनात की हैं और चीन के दुश्मन फिलीपींस को दी हैं, तबसे चीन दहशत में हैं। चीन ब्रह्मोस का काट नहीं निकाल पा रहा है। वह जानता है कि उसके सारे हथियार भी एक बार फायर की गई ब्रहमोस को नहीं रोक सकते।


ब्रह्मोस की काट निकालने के लिए चीन फिलीपींस को डराने के की कोशिश में जुटा है। चीन ने फिलीपींस के बेहद करीब अपने ड्रोन को भेजा है ताकि फिलीपींस डर जाए। लेकिन चीन का ये कदम बताता है कि असली डर फिलीपींस को नहीं बल्कि चीन को है क्योंकि अब साउथ चाइना सी के बिल्कुल करीब अमेरिकी सेनाएं भी आ गई हैं। भारत पहले ही चीन के शत्रु देश वियतनाम की पीपुल्स नेवी को अपना आधुनिक युद्धपोत आईएनएस कृपाण का हस्तांतरण कर चुका है। इस युद्ध पोत पर आधुनिक मिसाइल तैनात हैं। दरअसल अब तक चीन भारत को घेरने में लगा था। वह भारत के दुश्मन देशों को आधुनिक अस्त्र−शस्त्र  की आपूर्ति करने में लगा था। अब ऐसा उसके साथ हो रहा है तो वह परेशान है। चीन भारत में अशांति फैलाने वाले नक्सलाइड, मिजों एव अन्य आंतकियों को आधुनिक शस्त्रों की आपूर्ति करता रहा है। सूचनाएं रही हैं कि उन्हे प्रशिक्षण भी दे रहा है। ऐसे में समय की मांग है कि भारत अब चीन के विरूद्ध चल रहे तिब्बत के पूर्ण स्वतंत्रता के आंदोलन का खुलकर समर्थन करें। जरूरत पड़ने पर तिब्बती के आजादी के आंदोलन के लड़ाकों को शस्त्र के साथ प्रशिक्षण भी दे।


भारत की नहीं चीन के रवैये से दुनिया के लगभग सभी देश परेशान हैं।इसी कारण फिलीपींस और अमेरिकी सेना का साझा युद्धाभ्यास हाल में शुरू हुआ। इस मिलिट्री ड्रील में जापान की सेनाएं भी शामिल हो रही हैं। 16000 हजार सैनिक साझा युद्धभ्यास में शामिल हैं। सबसे बड़ी बात कि फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया के सैनिक भी कुछ दिन में इस ज्वाइंट एक्सरसाइज से रहेंगे। मतलब पांच देश चीन को घेरने के लिए एक साथ  होंगे। इस ड्रील में समुद्री और हवाई हमलों का अभ्यास किया जाएगा। भारत के ब्रह्मोस देने के बाद से चीन परेशान है। अभी तो ब्रह्मोस तैनात भी नही हुई होंगी कि चीन परेशान है। वह फिलीपींस पर द्रोण उड़ाकर उसे धमका रहा है। सवाल है कि क्या ड्रोन के जरिए चीन ब्रह्मोस के बारे में जानकारी जुटाना चाहता है। सवाल तो ये भी है कि क्या चीन उस ठिकाने का पता लगाना चाहता है, जहां फिलीपींस ब्रह्मोस को तैनात करेगी। चीन ने ड्रोन के अलावा समंदर में मिलिट्री ड्रील के जरिए भी फिलीपींस को आंख दिखाने की कोशिश की है। चीन की नौसेना ने साउथ चाइना सी में लड़ाकू विमानों और युद्धपोत से मिसाइलें दागकर फिलीपींस को डराने की कोशिश की।

  

दो दिन के अंदर चीन के ये ये कदम बताते हैं कि चीन ब्रह्मोस मिसाइल की तैनाती से भयभीत है। चीन के टेंशन इस बात की है कि अब भारत चीन सीमा के साथ चीन-फिलीपींस सीमा पर भी ब्रह्मोस तैनात होगा। अब तो चीन के एक और दुश्मन और पड़ोसी वियतनाम ने भी ब्रह्मोस में दिलचस्पी दिखाई है, जो चीन के लिए खतरे की घंटी है। 


फिलीपींस में भारत की ब्रह्मोस मिसाइल पहुंच गई है और वहां की सैना उसकी तैनाती करेगी। फिलीपींस में अमेरिका ने अपनी नई टायफून मिसाइल प्रणाली तैनात कर रखी है। फिलीपींस में अमेरिका को चार बेस का एक्सेस मिला हुआ है। चीन के करीब जापान पर भी अमेरिका का बेस है। ऑस्ट्रेलिया-सिंगापुर में अमेरिका ने अपना बेस बना रखा है। थाईलैंड और साउथ कोरिया में अमेरिकी सेनाएं तैनात हैं। चीन के करीब गुआम में भी अमेरिका का बेस है। इन जगहों से वक्त पड़ने पर कभी भी अमेरिका चीन पर हमला कर सकता है। चाइना सी के बिल्कुल करीब अमेरिकी सेनाएं भी आ गई हैं। चीनी सेना के प्रवक्ता ने फिलीपीन्स को ब्रह्मोस देने पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि दोनों देशों के बीच सुरक्षा सहयोग में इस बात का ख्याल रखा जाए कि इससे किसी तीसरे पक्ष के हितों को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल वू कियान ने कहा कि ‘चीन हमेशा मानता है कि दो देशों के बीच रक्षा और सुरक्षा सहयोग से किसी तीसरे पक्ष के हितों को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए और क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को खतरा नहीं होना चाहिए। कर्नल वू कियान ने कहा कि एशिया-प्रशांत में अमेरिका की ओर से बैलिस्टिक मिसाइलों की तैनाती का हम कड़ा विरोध करते हैं। अमेरिका का यह कदम क्षेत्रीय देशों की सुरक्षा को गंभीर रूप से खतरे में डालते हुए क्षेत्रीय शांति को खतरा पैदा करता है।


आज चीन को याद आ रहा है कि दो देशों के रक्षा सहयोग से तीसरे को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए, किंतु जब वह खुद ऐसा करता है, तब उसे कुछ याद नहीं आता। लंबे समय से वह पाकिस्तान को आधुनिकतम युद्धक शस्त्र देने में लगा हुआ है। वह नहीं जानता कि पाकिस्तान इन शस्त्रों का प्रयोग किस देश के विरूद्ध करेगा। वह अच्छी तरह से जानता और समझता है। किंतु अपने हित में उसे कुछ याद नहीं आता। अब उसके दुश्मन देश भारत, अमेरिका और फ्रांस आदि ऐसा ही कर रहे हैं तो उसे याद आ रहा है तीसरे राष्ट्र को नुकसान न पहुंचे।


भारत फिलीपीन्स को ही ब्रह्मोस मिसाइल नहीं दे रहा। वियतनाम भी इस मिसाइल को खरीदने में रूचि दिखा रहा है। यह तो है कि वियतनाम भी खरीदता है तो भारत उसे ब्रह्मोस देगा। प्रथम वरीयता पर देगा। भारत अपना आधुनिकतम युद्धपोत खुखरी वियतनाम को पहले ही उपहार में दे चुका है। ये आधुनिक युद्धास्त्रों से सज्जित युद्धपोत है। भारत की ये कार्रवाई दक्षिण चीन सागर में चीन के बढ़ते आक्रामक रवैये को लेकर चिंताओं के बीच यह भारत और वियतनाम में बढ़ती रणनीतिक साझेदारी को दर्शाता है। अधिकारियों ने कहा भी कि भारत ने पहली बार किसी मित्रवत देश को कोई सेवारत पोत उपहार में दिया है। भारतीय नौसेना ने कहा कि पोत पूरी ‘‘हथियार प्रणाली’’ के साथ वियतनाम पीपुल्स नेवी (वीपीएन) को सौंपा गया है। आईएनएस कृपाण, 1991 में सेवा में शामिल किए के बाद से भारतीय नौसेना के पूर्वी बेड़े का एक अभिन्न अंग रहा और पिछले 32 वर्षों में कई ऑपरेशन में भाग लिया। लगभग 12 अधिकारियों और 100 नाविकों द्वारा संचालित, जहाज 90 मीटर लंबा और 10.45 मीटर चौड़ा है।

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भारत जैसे का तैसा की नीति पर चल चुका है। अब वह कमजोर भी नही है। दुश्मन से आंख में आंख डालकर बात कर रहा है। ऐसे में अब चीन में घाव पर पूरी ताकत से हथौड़ा मारने का समय आ गया। चीन की बड़ी कमजारी है तिब्बत। तिब्बत पर उसने कब्जा किया हुआ है। तिब्बत की अस्थाई सरकार के धर्मशाला नगर में चल रही है। भारत के रूख के कारण तिब्बती अभी तक शांतिपूवर्क आदोलन कर रहे हैं। भारत ने तिब्बत की आजादी की लड़ाई का कभी समर्थन नहीं किया। अब समय आ गया है कि भारत इस आंदोलन का समर्थन करें। तिब्बत  सरकार को मान्यता दें। तिब्बती आंदोलनकारी को शस्त्र और युद्ध प्रशिक्षण दे। जब तक दुश्मन को उसके घर में ही नही घेरा जाएगा, तक तक वह नही मानने वाला। घर में घिर कर वह अपने में उलझ जाएगा और दूसरों को तंग करना बंद कर देगा। चीन सरकार वहां बसे उइगुर मुसलमानों पर बेइतहां जुल्म करने में लगी है। मुस्लिम देश चुप हैं। भारत अपने परिचित मुस्लिम देश और संगठनों से उइगुर मुसलमान की आजादी और कल्याण के लिए आवाज बुलंद कराएं।


- अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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