By प्रह्लाद सबनानी | Jun 18, 2021
विश्व में दरअसल औद्योगिक विकास के चक्र ने ही पर्यावरण को सबसे अधिक क्षति पहुंचाते हुए प्रदूषण को फैलाया है। आज के विकसित देशों के बीच विकास की ऐसी अंधी प्रतियोगिता चल पड़ी है जिसके चलते विभिन्न देश प्रकृति का जरूरत से ज्यादा दोहन कर रहे हैं। इसके कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है एवं यह हमें वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, भूमि प्रदूषण एवं प्रकाश प्रदूषण के रूप में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। वहीं दूसरी ओर पृथ्वी पर जनसंख्या का विस्फोट, औद्योगीकरण एवं शहरीकरण की असंतुलित गति एवं प्रकृति के हरे भरे क्षेत्रों का समापन कुछ ऐसे कारक हैं जो प्रदूषण की समस्या को दिन-ब-दिन गम्भीर बनाते जा रहे हैं। प्रदूषण से आशय पर्यावरण में दूषक पदार्थों के प्रवेश के कारण प्राकृतिक संतुलन में पैदा होने वाले दोष से है। प्रदूषण न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि जीव-जन्तुओं के लिए भी हानिकारक है। विकास की दौड़ में आज का मानव इतना अंधा हो गया है कि वह अपनी सुख-सुविधाओं के लिए कुछ भी करने को तैयार है। प्रदूषण के कारण सारी पृथ्वी ही दूषित हो रही है एवं अब तो निकट भविष्य में मानव सभ्यता का अंत दिखाई दे रहा है।
प्रदूषण मुख्यतः पांच क्षेत्रों में फैलता है यथा- जल, वायु, भूमि, ध्वनि एवं प्रकाश। जल प्रदूषण से पानी में अवांछित तथा घातक तत्वों की उपस्थिति से पानी दूषित हो जाता है, जिससे कि वह पीने योग्य नहीं रहता। जल प्रदूषण के लिए मुख्यतः जिम्मेदार कारक हैं सफाई तथा सीवर का उचित प्रबंधन न होना, विभिन्न औद्योगिक इकाइयों द्वारा अपने कचरे तथा गंदे पानी का नदियों एवं नहरों में विसर्जन, मानव मल का नदियों एवं नहरों आदि में विसर्जन, कृषि कार्यों में उपयोग होने वाले जहरीले रसायनों तथा खादों का पानी में घुलना, नदियों में कूड़े-कचरे, मानव-शवों और पारम्परिक प्रथाओं का पालन करते हुए उपयोग में आने वाली प्रत्येक घरेलू सामग्री का समीप के जल स्रोत में विसर्जन, गंदे नालों एवं सीवरों के पानी का नदियों मे छोड़ा जाना। साथ ही कच्चा पेट्रोल, कुंओं से निकालते समय समुद्र में मिल जाता है जिससे जल प्रदूषित होता है एवं कुछ कीटनाशक पदार्थ जैसे डीडीटी, बीएचसी आदि के छिड़काव से जल प्रदूषित हो जाता है तथा समुद्री जानवरों एवं मछलियों आदि को हानि पहुंचाता है। अंतत: पूरी खाद्य श्रृंखला ही प्रभावित हो जाती है।
आज वायु प्रदूषण ने भी हमारे पर्यावरण को बहुत हानि पहुंचाई है। जल प्रदूषण के साथ ही वायु प्रदूषण भी मानव के सम्मुख एक चुनौती बन गया है। माना कि आज मानव विकास के मार्ग पर अग्रसर है परंतु वहीं बड़े-बड़े कल-कारखानों की चिमनियों से लगातार उठने वाला धुआं, रेल व नाना प्रकार के डीजल व पेट्रोल से चलने वाले वाहनों के पाइपों से और इंजनों से निकलने वाली गैसें तथा धुआं, जलाने वाला हाइकोक, ए.सी., इन्वर्टर, जनरेटर आदि से कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, सल्फ्यूरिक एसिड, नाइट्रिक एसिड प्रति क्षण वायुमंडल में घुलते रहते हैं। वस्तुतः वायु प्रदूषण सर्वव्यापक हो चुका है।
भूमि प्रदूषण जमीन पर जहरीले, अवांछित और अनुपयोगी पदार्थों के भूमि में विसर्जित करने से होता है क्योंकि इससे भूमि का निम्नीकरण होता है तथा मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित होती है। लोगों की भूमि के प्रति बढ़ती लापरवाही के कारण भूमि प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है। कृषि में उर्वरकों, रसायनों तथा कीटनाशकों का अधिक प्रयोग होने लगा है, औद्योगिक इकाईयों, खानों तथा खदानों द्वारा निकले ठोस कचरे एवं भवनों, सड़कों आदि के निर्माण में ठोस कचरे का ठीक से विसर्जन नहीं किया जा रहा है, कागज तथा चीनी मिलों से निकलने वाले पदार्थ मिट्टी द्वारा अवशोषित नहीं हो पा रहे हैं, प्लास्टिक की थैलियों का अधिक उपयोग एवं इन्हें जमीन में दबा दिया जाता है, घरों, होटलों और औद्योगिक इकाईयों द्वारा निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों का निपटान नहीं किया जा रहा है, जिसमें प्लास्टिक, कपड़े, लकड़ी, धातु, कांच, सेरामिक, सीमेंट आदि सम्मिलित हैं। उक्त कारणों के चलते भूमि प्रदूषण भी तेजी से फैल रहा है।
हालात ऐसे हो गए कि अब महानगरों में ही नहीं बल्कि गांवों तक में लोग ध्वनि विस्तारकों का प्रयोग करने लगे हैं। बच्चे के जन्म की खुशी, शादी-पार्टी सभी में डी.जे. एक आवश्यकता समझी जाने लगी है। गांवों में मोटर साइकिल व वाहनों की चिल्ल-पों महानगरों के शोर से भी अधिक नजर आने लगी है। औद्योगिक संस्थानों की मशीनों के कोलाहल ने ध्वनि प्रदूषण को जन्म दिया है। इससे मानव की श्रवण-शक्ति का ह्रास होता है। ध्वनि प्रदूषण का मस्तिष्क पर भी घातक प्रभाव पड़ता है।
बढ़ती बिजली की जरूरत और काम के लिए अधिक प्रकाश की व्यवस्था, प्रकाश प्रदूषण का कारण बन सकती है। गाड़ियों की बढ़ती संख्या एवं इनके द्वारा हाई वोल्ट के बल्ब का इस्तेमाल, किसी कार्यक्रम में जरूरत से ज्यादा डेकोरेशन, एक कमरे में अधिक बल्बों का उपयोग आदि कारणों से प्रकाश प्रदूषण फैल रहा है।
प्रदूषण के कारण भारत ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि भूमि प्रदूषण की वजह से प्रतिवर्ष विश्व में 1.20 करोड़ हेक्टेयर कृषि उपजाऊ भूमि गैर-उपजाऊ भूमि में परिवर्तित हो जाती है। दुनिया में 400 करोड़ हेक्टेयर जमीन डिग्रेड हो चुकी है। एशिया एवं अफ़्रीका की लगभग 40 प्रतिशत आबादी ऐसे क्षेत्रों में रह रही है, जहां मरुस्थलीकरण का खतरा लगातार बना हुआ है। भारत की जमीन का एक तिहाई हिस्सा, अर्थात 9.7 करोड़ से 10 करोड़ हेक्टेयर के बीच जमीन डिग्रेडेड हो गई है। जमीन के डिग्रेड होने से जमीन की जैविक एवं आर्थिक उत्पादकता कम होने लगती है। जमीन के डीग्रेडेशन की वजह से भारत को 4600 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुकसान प्रतिवर्ष हो रहा है। एक अन्य अनुसंधान प्रतिवेदन के अनुसार, यदि वायु प्रदूषण के चलते वातावरण में 4 डिग्री सेल्सियस से तापमान बढ़ जाये तो भारत के तटीय किनारों के आसपास रह रहे लगभग 5.5 करोड़ लोगों के घर समुद्र में समा जाएंगे।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जारी एक अन्य प्रतिवेदन के अनुसार, पिछले 20 वर्षों के दौरान प्रदूषण के चलते जलवायु सम्बंधी आपदाओं के कारण भारत को 7,950 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ है। जलवायु सम्बंधी आपदाओं के चलते वर्ष 1998-2017 के दौरान, पूरे विश्व में 290,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ है। बाढ़ एवं समुद्री तूफान, बार-बार घटित होने वाली दो मुख्य आपदाएं पाईं गईं हैं। उक्त अवधि के दौरान, उक्त आपदाओं के कारण 13 लाख लोगों ने अपनी जान गवाईं।
जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण एवं प्रकाश प्रदूषण उक्त वर्णित नुकसानों के अतिरिक्त आज मानव, पशु, पक्षी एवं जलचरों के स्वास्थ्य को भी सीधे ही बहुत प्रभावित कर रहा है। ऋतुचक्र का परिवर्तन, कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा का बढ़ना एवं हिमखंड का पिघलना आदि समस्यायें भी दृष्टिगोचर हैं। जिसके फलस्वरूप सुनामी, बाढ़, सूखा, अतिवृष्टि या अनावृष्टि जैसे दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। यदि थोड़ा-सा भी प्रयास उचित दिशा में किया जाये तो उक्त वर्णित पांचों प्रकार के प्रदूषण से बचा जा सकता है। सर्वप्रथम तो पांचों प्रकार के प्रदूषणों के संदर्भ में उक्त वर्णित कारणों को दूर करने के प्रयास किए जाने चाहिए। इसके साथ ही सर्वप्रथम, द्रुत गति से बढ़ रही जनसंख्या पर रोक लगानी होगी, जरूरी हो तो इस संबंध में जनसंख्या नियंत्रण कानून भी बनाया जाना चाहिए। दूसरे, जंगलों व पहाड़ों की सुरक्षा पर ध्यान दिया जाना अब आवश्यक हो गया है। पहाड़ों पर रहने वाले लोगों को मैदानी इलाकों में विस्थापित किया जाना चाहिए क्योंकि पहाड़ों पर रहने वाले लोग कई बार घरेलू ईंधन के लिए जंगलों से लकड़ी काटकर इस्तेमाल करते हैं जिससे पूरे के पूरे जंगल स्वाहा हो जाते हैं। इससे पहाड़ व जंगलों का कटाव रुकेगा। खनिज संसाधनों का दोहन उतना ही किया जाय जितना हमारे लिए आवश्यकता है, न कि लालच में सीमाओं को लांघकर, अत्यधिक दोहन हो।
-प्रह्लाद सबनानी
सेवानिवृत्त उप-महाप्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक