By अंकित सिंह | Feb 28, 2022
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर पिछले 2 महीने से सरगर्मियां लगातार जारी है। हालांकि, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अब अपने आखिरी चरण में पहुंच चुका है। 7 चरणों में होने वाले विधानसभा चुनाव के सिर्फ दो चरण अब बाकी रह रहे हैं। दो चरणों के लिए चुनाव पूर्वांचल में होने हैं। माना जा रहा है कि पूर्वांचल की सियासत एक बार फिर से उत्तर प्रदेश में किसकी सरकार होगी, यह तय कर सकता है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में पूर्वांचल के काफी मायने हैं। पूर्वांचल में जहां बड़े दल है तो वहीं छोटे दलों का भी दबदबा देखने को मिलता है। आखिरी चरण में ध्रुवीकरण के साथ-साथ जातीय समीकरण भी दिखाई दे सकता है। 3 मार्च को उत्तर प्रदेश में छठे चरण के लिए मतदान होंगे तो 7 मार्च को सातवें चरण के लिए वोट डाले जाएंगे।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो पूर्वांचल में जातीय समीकरण काफी मायने रखता है। यही कारण है कि जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर ही राजनीतिक दलों की ओर से रणनीति तैयार की जाती है। छठे और सातवें चरण में जहां भाजपा की परीक्षा होगी तो वहीं समाजवादी पार्टी पर भी अच्छा प्रदर्शन करने का पूरा दबाव रहेगा। आखरी के दो चरणों में भाजपा के साथ-साथ उसके सहयोगी दल यानी कि निषाद पार्टी और अपना दल की भी अग्नि परीक्षा होगी तो वहीं समाजवादी पार्टी की सहयोगी सुभाषपा और कृष्णा पटेल की पार्टी अपना दल को भी कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। कुल मिलाकर देखें तो उत्तर प्रदेश में छठे और सातवें चरण के चुनाव काफी महत्वपूर्ण हो चुके हैं।
2017 के चुनाव की बात करें तो छठे और सातवें चरण में जिन क्षेत्रों में चुनाव हो रहे हैं वहां की कुल 111 सीटों में से भाजपा ने 72 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसके अलावा उसकी सहयोगी पार्टी भाजपा के पास तीन और अपना दल के पास 4 सीट थी। हालांकि इस बार समीकरण में बदलाव हुआ है। अपना दल तो इस बार भी भाजपा के साथ है लेकिन सुभाषपा समाजवादी पार्टी के साथ है। पिछली दफा सातवें चरण में समाजवादी पार्टी ने सिर्फ 11 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी थी जबकि बसपा के छह प्रत्याशी विधायक बने थे। उत्तर प्रदेश की राजनीति में चौथे या पांचवें चरण से ही हवा का रुख साफ होता दिखाई देने लगता है। लेकिन इस बार कांटे की टक्कर दिखाई दे रही है। हवा का रुख किस ओर है इसका अंदाजा लगा पाना फिलहाल मुश्किल है।