By अंकित सिंह | Nov 23, 2023
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे हिंदी पट्टी राज्यों में चुनाव को लेकर जितनी चर्चा है, उसकी तुलना में तेलंगाना चुनाव पर चर्चा बेहद ही कम हो रही है। 2 जून 2014 को आंध्र प्रदेश से अलग गठित तेलंगाना फिलहाल राज्य में तीसरी विधानसभा चुनाव का सामना कर रहा है। पहले और दूसरे चुनाव में टीआरएस यानी कि तेलंगाना राष्ट्र समिति को जीत मिली थी। फिलहाल यह नाम भारत राष्ट्र समिति हो गया है और इसके मुखिया तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव हैं जिन्होंने तेलंगाना की लड़ाई में एक अहम भूमिका निभाई है।
तेलंगाना के वर्तमान विधानसभा चुनाव को देखें तो कहीं ना कहीं मुकाबला त्रिकोणीय नजर आ रहा है जहां बीआरएस, कांग्रेस और बीजेपी की उपस्थिति मजबूत दिखाई दे रही है। फिर भी कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुख्य मुकाबला बीआरस और कांग्रेस के बीच है। वहीं, भाजपा अपनी पकड़ को यहां मजबूत करने की उम्मीद कर रही है। दिलचस्प बात यह भी है कि आंध्र प्रदेश में राजनीतिक दबदबा रखने वाली तेलुगू देशम पार्टी और वाईएसआर कांग्रेस का तेलंगाना में दखल न के बराबर है। जब तेलंगाना और आंध्र प्रदेश का विभाजन नहीं हुआ था तब राज्य में कांग्रेस और टीडीपी ने कई दफा शासन किया था। बावजूद इसके तेलंगाना में टीडीपी का कुछ दिखाई नहीं दे रहा है।
तेलंगाना में सत्तारूढ़ बीआरएस को एंटी-इन्कंबेंसी का सामना करना पड़ रहा है। इसकी वजह से उसे कांग्रेस से जबरदस्त चुनौती मिल रही है। वहीं कर्नाटक में अपने किला को गवाने के बाद भाजपा दक्षिण भारत में तेलंगाना से कुछ उम्मीद कर रही है। 30 नवंबर के मतदान और 3 दिसंबर के नतीजे के बाद ही तेलंगाना की राजनीतिक छवि साफ होगी। लेकिन इतना तो तय है कि मुख्यमंत्री केसीआर के विरुद्ध में लोगों के बीच एक असंतोष की भावना है। भाजपा और कांग्रेस उसे भूनाने की कोशिश में है। पिछले दो चुनाव में केसीआर को लेकर जो सहानुभूति दिखाई दे रही थी फिलहाल वह बदल चुकी है। सहानुभूति की जगह अब अहम मुद्दों की बात हो रही है। तेलंगाना की लड़ाई अब वादों की प्रतियोगिता में सिमटती जा रही है।
केसीआर परिवार लगातार कांग्रेस पर तेलंगाना के लोगों की भावनाओं का दोहन करने और नरसंहार का आरोप लगाता रहा है। 1969 में तेलंगाना की अलग मांग को लेकर जो आंदोलन हुआ था उसको रोकने के लिए पुलिस ने फायरिंग की थी जिसमें 369 युवा मौत के मुंह में समा गए थे। इस वक्त प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी और इसी बहाने केसीआर परिवार कांग्रेस पर आरोप लगता है। हालांकि पूर्व गृह मंत्री और गांधी परिवार के बेहद करीबी पी चिदंबरम ने तेलंगाना की जनता से माफी मांग कर एक सहानुभूति पैदा करने की कोशिश की। दूसरी ओर राहुल गांधी ने भी तेलंगाना गठन का श्रेय सोनिया गांधी को देकर राज्य की जनता को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया।
अगर देखा जाए तो राहुल गांधी लगातार अपने चुनावी ताकत दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी की स्थिति मजबूत होती दिखाई दे रही है जिसमें राहुल और प्रियंका भी दम लगा रहे हैं। तेलंगाना में राहुल सीधे तौर पर केसीआर को चुनौती दे रहे हैं और बीआरएस को बीजेपी की बी टीम बता रहे हैं। कांग्रेस की ओर से तेलंगाना में कई गारंटी के वादे किए गए हैं। तेलंगाना के करीबी राज्य कर्नाटक में कांग्रेस को मिली जीत से राज्य में पार्टी के लिए कहीं ना कहीं एक अच्छा माहौल भी बना है।