आईआईटी गुवहाटी ने विकसित किया उन्नत ऊर्जा-भंडारण उपकरणों के लिए हाइड्रोजेल आधारित इलेक्ट्रोड्स

By इंडिया साइंस वायर | Aug 27, 2021

एनर्जी स्टोर करने वाली डिवाइसों की क्षमताएं बढ़ाने की दिशा में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के शोधार्थियों को एक बड़ी सफलता मिली है। शोधकर्ताओं ने हाइड्रोजेल आधारित इलेक्ट्रोड्स विकसित किए हैं जो ऊर्जा संचित करने वाले उपकरणों की कुशलता बढ़ाने में उपयोगी हो सकते हैं। हाइड्रोजेल असल में इंटरकनेक्टेड मैटीरियल्स का एक छिद्रयुक्त ढांचा होता है जिसके छिद्रों में जमा पानी बाहर नहीं निकल सकता। हाइड्रोजेल के निर्माण में शोधकर्ताओं ने ग्रेफीन और मैक्सीन नामक दो नैनोशीट्स का इस्तेमाल किया है जो दो भिन्न प्रक्रियओं द्वारा चार्जिंग को संचित करते हैं।

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आईआईटी गुवाहाटी के भौतिकी विभाग में इस शोध का नेतृत्व डॉ. उदय नारायण मैती ने किया। इसमें उन्हें आईआईटी गुवाहाटी के प्रो. शुभ्रादीप घोष और भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंट (बीएआरसी) में भौतिकी समूह की डॉ. एन पद्मा का भी सहयोग मिला। इस परियोजना का लक्ष्य सुपरकैपिसिटर डिवाइसों में एनर्जी स्टोरेज के प्रदर्शन को सुधारना है।


इस शोध की विशिष्टताओं को रेखांकित करते हुए आईआईटी गुवाहाटी में भौतिकी विभाग से जुड़े डॉ. उदय नारायण मैती ने कहा, 'इसका सबसे उल्लेखनीय पहलू इसकी व्यापक सरलता में निहित है। इसकी व्यापकता और रूम टेंपरेचर पर संचालित होने वाली इसकी प्रक्रिया तापमान को लेकर संवेदनशील मैक्सीन नैनोशीट को अपना गुणधर्म बदलने से रोकती है, जिससे डिवाइस का बेहतर प्रदर्शन सुनिश्चित होता है।'

हाइड्रोजेल इलेक्ट्रोड्स में ग्रेफीन और मैक्सीन एक जलीय माध्यम में डूबी धात्विक प्लेटों से स्वयं को एक साथ जोड़ लेती हैं। इसमें सिंगल एटम थिन कार्बन शीट वाली ग्रेफीन भौतिक अवशोषण के माध्यम से चार्जिंग को अपनी सरफेस (तल) पर संग्रहित करती है। वहीं टाइटेनियम कार्बाइड की नैनोशीट्स मैक्सीन अपनी सरफेस पर इलेक्ट्रिकल डबल लेयर मैकेनिज्म (ईएलडीसी) और रासायनिक अभिक्रियाओं दोनों के माध्यम से चार्जिंग को संग्रहित करता है।

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सुपरकैपेसिटर्स में दो इलेक्ट्रोड्स (एनोड और कैथोड) होते हैं। ये इलेक्ट्रोलाइट सॉल्यूशंस में डूबे रहते हैं। इसमें ऊर्जा चार्जिंग के माध्यम से इलेक्ट्रोड्स सरफेस पर संग्रहित होती है। एटॉमिक-थिन शीट जैसे मैटीरियल सुपरकैपेसिटर्स के लिए सबसे उत्तम विकल्प माने जा रहे हैं। इन्हें नैनोशीट्स भी कहा जाता है। हालांकि माइक्रोस्कोपिक अल्ट्रा-स्मॉल नैनोशीट्स को उपयोग योग्य माइक्रोस्कोपिक स्केल के साथ एकीकृत करना बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य है। 


शोधार्थियों ने अपने इस प्रयोग को व्यापक स्तर पर परखा भी है। उन्होंने 10,000 से अधिक बार इसमें चार्जिंग-डिस्चार्जिंग करके उसकी गहन पड़ताल की है, जिसमें प्रदर्शन में मामूली उतार-चढ़ाव ही देखने को मिला। उन्होंने इलेक्ट्रोड मैटीरियल की 1.13 केजी पावर डेन्सिटी का उच्चतम स्तर तक हासिल किया, जो वर्तमान में उपलब्ध लीथियम-आयन बैटरियों की क्षमता से लगभग दोगुना अधिक है। यह शोध हाल में 'इलेक्ट्रोचिमिका एक्टा' और 'कार्बन' में प्रकाशित भी हुआ है। 


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