By अंकित सिंह | Oct 18, 2023
पिछले तीन-चार महीने से देखें तो देश की राजनीति दिलचस्प रही है। ऐसा लगा कि भाजपा के खिलाफ विपक्षी दल पूरी तरीके से एकजुट हो रहे हैं और यह भगवा पार्टी के लिए पूरी तरीके से खतरे की घंटी है। 26 से ज्यादा दलों ने भाजपा के खिलाफ इंडिया गठबंधन बनाया है। इन दलों का दावा है कि वह लोकतंत्र की रक्षा करने और भाजपा को हराने के लिए मिलकर चुनाव लड़ेंगे। पिछले महीने जब उत्तर प्रदेश के घोसी में उपचुनाव हुए थे तब कहा गया था कि इंडिया गठबंधन की यह पहली परीक्षा है। उस परीक्षा में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार की जीत हुई थी और कांग्रेस सहित सभी छोटे दलों ने सपा का समर्थन किया था। इंडिया गठबंधन बनने के बाद इस बात की संभावना जताई जा रही थी कि साल के आखिर में जिन पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं, वहां भी सभी विपक्षी दल मिलकर एक साथ भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे।
मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में चुनाव होने हैं। राजस्थान और तेलंगाना को छोड़ दें तो बाकी राज्यों के लिए मतदान की तारीख में 1 महीने से भी काम का समय बचा है। हालांकि, किसी भी राज्य में विपक्ष एकजुट होकर लड़ता दिखाई नहीं दे रहा है। पूरा का पूरा फोकस अगर राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश पर करें जहां भाजपा मजबूत है, वहां भी विपक्षी एकजुटता दिखाई नहीं दे रही है। हालांकि, इन राज्यों के विधानसभा चुनाव को लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी गठबंधन के लिए लिटमस टेस्ट माना जा रहा था। लेकिन ऐसा लग रहा है कि विपक्षी दल की पर्टियां राज्यों में गठबंधन से कतरा रही हैं। अलग-अलग दलों के नेताओं की ओर से इन राज्यों में साफ तौर पर कहा जा रहा है कि हमारा गठबंधन लोकसभा चुनाव के लिए हुआ है। ऐसे में सवाल यह है कि कि बिना सेमीफाइनल मैच खेले इंडिया गठबंधन सीधे फाइनल मुकाबले में भाजपा को कितनी चुनौती दे पाएगा।
मध्य प्रदेश में देखा जाए तो कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच बातचीत शुरू हुई थी। हालांकि किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले ही यह खत्म हो चुकी है। दोनों राजनीतिक दलों ने अपने-अपने रास्ते अलग कर लिए हैं। इसके बाद दोनों ओर से शब्द बाण भी एक-दूसरे के खिलाफ चलाए जा रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि सपा-कांग्रेस गठबंधन पर ब्रेक लगने से अखिलेश यादव नाराज है। उन्होंने यह तक कह दिया है कि मध्य प्रदेश में अगर यह गठबंधन नहीं हुआ तो भविष्य में प्रदेश स्तर पर गठबंधन नहीं होगा। कमलनाथ ने कहा कि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ का ध्यान लोकसभा चुनाव पर है और अगर यह गठबंधन मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में होता है तो अच्छा होता। कमलनाथ ने कहा कि चुनावी साझेदारी (सहयोगियों के साथ) में कुछ जटिलताएं हैं क्योंकि कांग्रेस को स्थानीय स्थिति पर विचार करना होगा। आप भी वहा अपने दम पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। मध्य प्रदेश में सपा-कांग्रेस गठबंधन नहीं होने के बाद जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी भी कांग्रेस पर आक्रामक हो गई है और इसका सीधा कनेक्शन राजस्थान से है।
राजस्थान में भी इंडिया गठबंधन की कोई बात नहीं हो रही है। कांग्रेस वहां भी अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। आम आदमी पार्टी भी राजस्थान में कई सीटों पर अपनी उम्मीदवार उतार रही है। राजस्थान में देखें तो अभी कांग्रेस और आरएलडी का गठबंधन है। जयंत चौधरी कांग्रेस से राजस्थान में अधिक सीटों की डिमांड कर रहे हैं। यही कारण है कि आरएलडी की ओर से साफ तौर पर कहा जा रहा है कि कांग्रेस को बड़ा दल दिखाना होगा।
छत्तीसगढ़ में भी किसी तरीके का गठबंधन दिखाई नहीं दे रहा है। वहां भी आम आदमी पार्टी अपनी उम्मीदवार उतार रही है। इससे कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। यही कारण है कि कांग्रेस की ओर से आम आदमी पार्टी को भाजपा की भी टीम बताया जा रहा है। फिर सवाल यह उठ रहा है कि अगर आम आदमी पार्टी भाजपा की बी टीम है तो फिर उसे इंडिया गठबंधन में क्यों रखा गया है। बघेल ने आम आदमी पार्टी (आप) पर छत्तीसगढ़ में बी टीम के रूप में काम करने और राज्य में सत्ताधारी दल में सेंध लगाने की कोशिश करने का आरोप लगाया।
कुल मिलाकर देखें तो विपक्षी दलों ने गठबंधन बनाने को लेकर जितनी जल्दी कवायद की, अब वह उस रफ्तार से बढ़ता दिखाई नहीं दे रहा है। मध्य प्रदेश के भोपाल में होने वाले इंडिया गठबंधन की रैली रद्द होने के बाद भी अब तक किसी जगह का चयन नहीं किया गया है। इसके अलावा कई राजनीतिक दल सीट बंटवारे को लेकर निर्णय जल्दी चाहते हैं। लेकिन इस पर भी सहमति नहीं बन पा रही है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि इंडिया गठबंधन का भविष्य क्या रहता है? जनता भी इस चुनाव में इंडिया गठबंधन को परखने की कोशिश कर रही है। यही तो प्रजातंत्र है।