बढ़ती गरमी में देर से उतरती शाम में सैर के शौक़ीन बंदे बाग़ में अभी टहल रहे हैं। मेरी नज़र थोड़ी दूर खड़ी एक गाय पर पड़ी जो पौधे खा रही है। सामने खड़ा व्यक्ति मोबाइल से फोटो खींच रहा है। जाना पहचाना लगा, मुझे नज़दीक आते देखकर कहने लगा, ‘मैं अभी फेसबुक पर डालता हूं’। चौकीदार अपनी ड्यूटी ज़िम्मेदारी से नहीं कर रहा। सर, फ्रेसबुक पर तो लोग मज़े ही लेंगे, तब तक गाय काफी पौधे चर लेगी, चौकीदार को ढूंढिए आप, मैं भी देखता हूं।
पहले वे फेसबुक ही निपटाने लगे, इस दौरान मैं भाग कर गया कोशिश की तो चौकीदार, मिल गए। वे भी राष्ट्रीय कार्यान्वन परम्परा के अनुसार मोबाइल पर कुछ मनपसंद देख रहे थे, बंद करते करते बोले अभी दो मिनट हुए पूरे बाग़ का चक्कर लगा कर आया हूँ। लगता है किसी सैर करने वाले ने गेट ज्यादा खोल दिया होगा। खैर, उन्होंने गाय को बाग़ से बाहर निकाल दिया। घूमते हुए फेसबुक मैन फिर मिल गए मैंने कहा, सर, गाय को आप ही निकाल बाहर करते। यह वाक्य मुंह से निकल तो गया मगर अगले ही क्षण लगा माहौल के मुताबिक काफी गलत कह दिया।
वे बोले, हम जैसा आदमी गाय बाहर कैसे निकाल सकता है। हम वह्ट्सैप कर सकते हैं, फेसबुक पर डाल सकते हैं, वो हमने ज़िम्मेदारी से किया। हमारे पास इतना महंगा स्मार्ट फ़ोन है, हम इसका भरपूर इस्तेमाल क्यूँ न करें। अगर गाय हमें नुकसान पहुंचाती तो उसका हम कुछ नहीं कर सकते थे। सबको बताना ज़रूरी है कि बाग़ में गाय थी, हमारे यहां जो चाहे जहां चाहे घुस जाता है। अब तो जानवर भी इंसानों की तरह करने लगे हैं। चलो फेसबुक और वह्ट्सैप तो हमने कर ही दिया।
हमें लगा जनाब ने चौदह पंद्रह लोगों समेत अपनी पत्नी को भी वह्ट्सैप किया होगा। बोले, मैं कोई छोटा मोटा आदमी नहीं हूँ। बड़े सरकारी दफ़्तर में ऊंचे पद पर आसीन हूँ। मुझे कोई भी सार्वजनिक कार्य करते हुए अपने सरकारी पद की गरिमा का पूरा ध्यान रखना पड़ता है। पौधे खाती गाय को बाग़ से निकालना हमारी गरिमा के अनुकूल नहीं था। उनकी बात मुझे समझ आ गई, बड़े लोगों की बड़ी बातें, ज़्यादा बड़े लोगों की ज्यादा बड़ी बातें और सबसे बड़े लोगों की केवल बातें ही बातें।
स्मार्ट फोन ईष्ट पूजा का ही रूप है। लोग ब्रह्म मुहर्त में उठकर सम्प्रेषण करना शुरू कर देते हैं और रात के बारह बजे तक ज्ञान और अज्ञान बांटते रहते हैं। व्यक्ति अनंत जंतर, मंतर और अंतर यहां वहां से उठाकर कहां कहां चिपकाता रहता है। नवसम्प्रेषण ने बातचीत की जान ले ली है। आपने सामने बैठकर बतियाना फ़िज़ूल हो गया है। तरक्की की जय हो, नकली बुद्धि की ज्यादा जय हो।
- संतोष उत्सुक