By अभिनय आकाश | Nov 23, 2024
एक दो दिन पहले तक लग रहा था कि महाराष्ट्र की लड़ाई बहुत नजदीक होगी। वहीं एक दो हफ्ते पहले तक तो लग रहा था कि प्रदेश में महाविकास अघाड़ी महाराष्ट्र में सरकार बना लेगी। लेकिन 20 तारीख को वोटिंग के बाद कई सर्वे आए कभी महायुति को आगे दिखाया गया। लेकिन जब नतीजे आएं तो सभी की आंखें चकाचौंध से भर उठी। बीजेपी ने अभी तक महाराष्ट्र में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन में से एक है। ऐसे में आइए आपको बताते हैं कि महाराष्ट्र में बीजेपी ने ऐसा क्या किया है कि उसे प्रदेश में इतनी बड़ी ग्रोथ मिल गई है। महाराष्ट्र चुनाव में बीजेपी और आरएसएस के बीच बेहतर तालमेल देखने को मिला। जिसका लाभ महायुति को इस बार के चुनाव में देखने को मिला। जानकारों का कहना है कि जिस तरह से इसी साल लोकसभा चुनाव के बाद नतीजे बीजेपी के लिए चौंकाने वाले आए थे। उससे जो नैरेटिव सेट हुआ उसे बदलने के लिए आरएसएस ने खुद मोर्चा संभाल लिया था। आरएसएस ने बीजेपी के लिए पूरा जोर लगाया था। कहा जा रहा है कि इसी वजह से महाराष्ट्र में वोटिंग प्रतिशत में इजाफा हुआ। आपको बताते हैं कि संघ ने महाराष्ट्र में पर्दे के पीछे रहकर कैसे काम किया।
विपक्ष के नैरेटिव को तोड़ने के लिए संघ ने 13 अलग अलग ग्रुप बनाए
जहां से आरएसएस की उत्पत्ति हुई और इसका मुख्यालय भी जहां स्थित है वहां कैडरों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वे एक राजनीतिक और सांस्कृतिक बाजीगर क्यों बने हुए हैं। अपने वैचारिक राजनीतिक पक्ष में हवा के रुख को मोड़ने के लिए रणनीतियों के साथ हिंदुत्व के ताने बाने को सहजता से बुनने में माहिर माना जाता है। मुंबई के औद्योगिक केंद्रों से लेकर विदर्भ के कृषि क्षेत्रों तक, आरएसएस कार्यकर्ताओं की जमीनी स्तर की लामबंदी ने हिंदू वोटों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। संघ के संगठन और बीजेपी के बड़े नेता लगातार बैठके कर रहे थे। संघ के साथ वीएचपी, वनवासी कल्याण आश्रम, भारतीय मजदूर संघ के साथ भी बड़े बीजेपी नेताओं की बैठक हो रही थी। हाल ही में विपक्ष की तरफ से स्थापित जातिगत रेखाओं को तोड़कर एक नया चुनावी गणित तैयार किया है। विपक्ष के नरेटिव को तोड़ने के लिए संघ ने 13 अलग अलग ग्रुप बनाए। इनका काम ग्राउंड पर जाना और सोशल मीडिया पर विपक्ष के नैरेटिव को काउंटर करना था। संघ ने महाराष्ट्र की सभी विधानसभा सीटों पर घर घर जाकर कैंपेन किया। संविधान खतरे में है वाले नैरेटिव की काट घर घर संविधान से दिया गया। आरएसएस ने घर-घर पहुंच सुनिश्चित करने के लिए हमारे सजग रहो मंत्र के साथ, संघ के नेटवर्क ने बूथ स्तर पर चुपचाप काम किया।
मराठा, आदिवासी और दलित समाज नेताओं को प्रचार में लगाया
आरएसएस की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि हम विशेष रूप से विदर्भ, कोंकण, मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र जैसे क्षेत्रों में बिखरे हुए समुदायों को सफलतापूर्वक एकजुट कर सकते हैं, जहां जातिगत वफादारी अक्सर मतदान के पैटर्न को निर्धारित करती है। हिंदुत्व के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके और सड़कों पर दिखाई देने वाली मुस्लिम आक्रामकता के बारे में चिंताओं को संबोधित करके, संघ ने मध्यम वर्ग के भीतर बढ़ती नापसंदगी का फायदा उठाया। यह मौन एकजुटता महत्वपूर्ण 4-5 प्रतिशत वोट स्विंग में बदल गई, जिससे भाजपा का आधार उसके पारंपरिक समर्थन आधार और गढ़ों से आगे बढ़ गया। संघ ने मराठा, आदिवासी और दलित समाज नेताओं को प्रचार में लगाया। सोशल मीडिया पर कैंपेनिंग के लिए इंफ्ल्यूएंशर को अलग से टीम बनाई। संघ की इस मेहनत का असर आज नतीजों के रूप में सामने हैं।
मराठा वोटों में बिखराव का भी मिला फायदा
हरियाणा चुनाव के नतीजों के विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि कैसे ग्रामीण और शहरी इलाकों में आरएसएस की पैठ ने शासन और जमीनी स्तर की चिंताओं, कुछ परस्पर विरोधी जातियों के बीच की खाई को सफलतापूर्वक पाट दिया और भाजपा को अपने राजनीतिक परिणामों को आकार देने में मदद की। बेरोजगारी, जातिगत गतिशीलता या सांस्कृतिक पहचान से लेकर क्षेत्रीय असंतोष को भुनाने की संगठन की क्षमता ने इसे भाजपा के लाभ के लिए मतदाता-भावना को प्रभावित करने की अनुमति दी है। इसका व्यवस्थित और कैडर-संचालित दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करता है कि मुद्दों को न केवल उठाया जाए बल्कि उनका समाधान भी किया जाए। इसी तरह, महाराष्ट्र में संघ ने राजनीतिक रूप से जटिल राज्य में रणनीतियों को पुन: व्यवस्थित करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है। भाजपा की गठबंधन चुनौतियों के साथ-साथ शिवसेना और राकांपा के भीतर विभाजन के बावजूद, संघ का जमीनी कार्य मतदाताओं को एकजुट करने में सहायक रहा है। मराठा वोटों में बिखराव का भी महायुति और बीजेपी को फायदा मिला।
जनता के असल मुद्दों पर किया फोकस
मुंबई जैसे औद्योगिक क्षेत्रों सहित शहरी क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर, बेरोजगारी के मुद्दों, आर्थिक स्थिरता और कानून व्यवस्था के आसपास मध्यम वर्ग की चिंताओं पर जोर दिया। कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की शिवसेना द्वारा अपनाए गए उद्योग-विरोधी और व्यापार-विरोधी रुख ने वास्तव में शहरी मतदाताओं को निराश किया था। इसके विपरीत, मुंबई पेरिफेरल रोड परियोजना और अन्य विकास जैसी पहल, जबकि लाडली बहना जैसी लक्षित नीतियां महिलाओं और शहरी गरीबों जैसे मुद्दे को टच करना लोगों को भा गया।
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