अपने पति की संपत्ति पर किसी महिला का कितना है अधिकार, इसे ऐसे समझिए

By कमलेश पांडे | Sep 13, 2023

मानव सभ्यता के इतिहास में लिंग के आधार पर अधिकारों में भेदभाव संवैधानिक समानता के सिद्धांत के खिलाफ है। फिर भी स्पष्ट नियम-कानून होने के बावजूद महिलाओं के साथ भेदभाव हमारे समाज की एक कड़वी हकीकत है। आप इसकी एक बड़ी वजह अधिकारों को लेकर जागरुकता का अभाव भी मान सकते हैं। यदि आप अधिकारों को लेकर सजग हैं तो हर तरह के भेदभाव को खत्म कर सकते हैं। 


आखिर में एक महिला को उसके पैतृक घर के अलावा ससुराल की संपत्ति में क्या-क्या हक मिले हुए हैं, इसके बारे में भारतीय अदालतों के स्पष्ट ऐतिहासिक फैसले आए हैं। कहना न होगा कि ये सभी निर्णय बहुओं के हक को परिभाषित करने में मील के पत्थर साबित हुए हैं। यूँ तो महिलाओं को पिता की संपत्ति में पुरुषों के बराबर ही अधिकार प्राप्त है, लेकिन अपने पति की संपत्ति में उनका कितना अधिकार होता है, इस बारे में ज्यादातर महिलाओं को जानकारी कम ही होती है। इसलिए यहां पर यह बताना जरूरी है कि पति की मौत होने या तलाक हो जाने पर भी महिलाओं को संपत्ति से जुड़े कई अधिकार प्राप्त होते हैं, जो आड़े वक्त में उनके काम आते हैं।


एक सिविल अधिवक्ता के मुताबिक, पति की कमाई हुई संपत्ति पर उसकी पत्नी के साथ-साथ पति की मां और बच्चों का भी अधिकार होता है। दूसरे शब्दों में, पति की मौत होने पर पत्नी का पति की पैतृक संपत्ति पर अधिकार नहीं होता है। हां, यदि किसी महिला का पति से तलाक हो जाता है तो वह अपने पति से गुजारा भत्ता यानी मेंटेनेंस मांग सकती है।


खास बात यह है कि महिलाओं को उनकी पैतृक संपत्ति यानी पिता की संपत्ति पर पुरुषों के समान ही अधिकार दिए गए हैं। किंतु, देश में अधिकतर महिलाएं अपने पिता की संपत्ति में अपना हिस्सा नहीं लेती हैं। वहीं, महिलाओं को अपने पति और सुसराल की संपत्ति में कितना अधिकार है? इसके बारे में आमतौर पर यह माना जाता है कि पति की संपत्ति पर पूरा हक पत्नी का होता है, जबकि यह बात पूरी तरह से सही नहीं है। भले ही महिलाएं शादी के बाद अपने माता-पिता का घर छोड़कर पति के घर में रहने लगती हैं। ऐसे में कहने के लिए तो वह उनका भी घर हो जाता है, लेकिन इससे पति की संपत्ति पर उन्हें हक नहीं मिलता है, जो एक वैधानिक विडंबना समझा जा सकता है।

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# पति की संपत्ति पर पत्नी का कितना होता है अधिकार, इसे जानिए


अधिकतर लोग यही मानते हैं कि पति की संपत्ति पर पत्नी का पूरा हक होता है, लेकिन यह बात पूरी तरह से सही नहीं है। क्योंकि इस संपत्ति पर पत्नी के अलावा परिवार के बाकी लोगों का भी अधिकार होता है। हां, यदि कोई संपत्ति पति की कमाई हुई है तो उस पर पत्नी के साथ-साथ मां और बच्चों का भी अधिकार होता है। हालांकि, यदि किसी व्यक्ति ने अपनी वसीयत बना रखी है तो उसकी मौत के बाद उसके नामित व्यक्ति यानी नॉमिनी को ही उसकी संपत्ति मिलती है। वह नॉमिनी उसकी पत्नी भी हो सकती है। वहीं यदि किसी शख्स की बिना वसीयत के ही मौत हो जाती है तो उसकी संपत्ति में पत्नी के अलावा मां और बच्चों आदि के बीच में बराबर का बंटवारा होता है।


# पति की पैतृक संपत्ति पर पत्नी का इतना होता है अधिकार, इसलिए निज अधिकार का विवेकसम्मत उपयोग कीजिए


यदि किसी महिला के पति की मौत हो जाती है तो उसके पति की पैतृक संपत्ति पर उसका सीधा अधिकार नहीं होता है। हालांकि, पति की मौत के बाद महिला को ससुराल के घर से निकाला नहीं जा सकता है। जबकि ससुराल वालों को महिला को गुजारा भत्ता यानी मेंटेनेंस देना होता है। वहीं गुजारा भत्ता/मेंटेनेंस की राशि ससुराल वालों की आर्थिक स्थिति के आधार पर न्यायालय/कोर्ट द्वारा तय की जाती है। वहीं, यदि महिला के बच्चे हैं तो उनको पिता के हिस्से की पूरी संपत्ति मिलती है। इसके अलावा, यदि विधवा महिला अपनी दूसरी शादी कर लेती है तो उसे मिलने वाला मेंटेनेंस बंद हो जाएगा।


# तलाक होने पर भी महिला को है संपत्ति पाने के अधिकार


यदि किसी महिला का पति से तलाक हो जाता है तो वह पति से गुजारा भत्ता यानी मेंटेनेंस मांग सकती है। हालांकि यह भी पति और पत्नी दोनों की आर्थिक स्थिति के आधार पर निर्धारित होता है। वहीं, तलाक के मामलों में माहवारी गुजारा भत्ता (मंथली मेंटेनेंस) के अलावा वन टाइम सेटलमेंट का ऑप्शन भी मिलता है। वहीं, तलाक के बाद यदि बच्चे मां के साथ रहते हैं तो पति को उनका भी भरण पोषण देना होगा। बता दें कि तलाक की स्थिति में पत्नी का अपने पति की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता है। हालांकि, महिला के बच्चों का उनके पिता की प्रॉपर्टी पर पूरा अधिकार होता है। वहीं पति-पत्नी की कोई ऐसी संपत्ति है जिसमें वे दोनों मालिक हैं तो उसका बराबर बंटवारा किया जाएगा।


# बहू की स्त्रीधन पर सिर्फ उनका ही होता है अधिकार


हिंदू कानून के हिसाब से स्त्रीधन पर बहू का ही स्वामित्व होता है। दरअसल, विवाह से जुड़े रीति-रिवाजों, उत्सवों-समारोहों के दौरान महिला को जो कुछ भी मिलता है, चाहे वो चल-अचल संपत्ति हो या फिर कोई और गिफ़्ट हो, उस पर महिला का ही अधिकार होता है। कहने का तातपर्य यह कि सगाई, गोदभराई, बारात, मुंह दिखाई या बच्चों के जन्म पर मिले नेग (गिफ्ट) स्त्रीधन के तहत आएंगे। जिस पर महिला का ही स्वामित्व होता है, भले ही वह धन पति या सास-ससुर की कस्टडी में रखा हुआ हो। वहीं, यदि किसी सास के पास अपने बहू का मिला स्त्रीधन है और बिना किसी वसीयत के उसकी मृत्यु हो गई हो तो उस धन पर बहू का ही कानूनी अधिकार है, न कि बेटे या परिवार के किसी अन्य सदस्य का उस पर कोई हक बनता है। इस प्रकार स्त्रीधन पर महिला के स्वामित्व का अधिकार ऐसा स्थायी होता है कि उसे कोई भी नहीं छीन सकता। यहां तक कि यदि वह पति से अलग भी हो जाए तो स्त्रीधन पर उसी का अधिकार होगा। वहीं, यदि किसी विवाहित महिला को उसके स्त्रीधन से वंचित किया जाता है तो ये घरेलू हिंसा के बराबर होगा, जिसके लिए पति और ससुराल वालों को आपराधिक मामले का सामना करना पड़ेगा।


# विवाहित महिला को है गरिमा और आत्मसम्मान के साथ जीने का अधिकार


भारतीय कानून के मुताबिक, एक विवाहित महिला को गरिमा के साथ जीने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है। वह अपने पति जैसे ही लाइफ स्टाइल की हकदार है। यहां पर गरिमा के साथ जीने के अधिकार का तातपर्य है कि वह मानसिक या शारीरिक यातनाओं से मुक्त हो। यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो वो भी घरेलू हिंसा के दायरे में आएगा।


महिला जिस घर को अपने पति के साथ साझा करती है, वह ससुराल का घर कहा जाता है। ये घर चाहे रेंट पर लिया गया हो, या आधिकारिक तौर पर उपलब्ध कराया गया हो या फिर पति के स्वामित्व वाला हो या रिश्तेदारों के स्वामित्व वाला, महिला के लिए वह ससुराल वाला घर यानी मैट्रिमोनियल होम है। जहां हिंदू अडॉप्शंस ऐंड मैंटिनेंस ऐक्ट, 1956 (हिंदू दत्तक और भरण-पोषण कानून) के तहत हिंदू पत्नी को अपने मैट्रिमोनियल घर में रहने का अधिकार है, भले ही उसके पास उसका स्वामित्व न हो। भले ही वह एक पैतृक घर हो, संयुक्त परिवार (जॉइंट फैमिली) वाला हो, स्वअर्जित हो या फिर किराए का ही घर क्यों न हो। हालांकि, अगर ससुराल वालों की स्व-अर्जित संपत्ति है तो उनकी सहमति के बिना विवाहित महिला उसमें नहीं रह सकती, क्योंकि इस संपत्ति को शेयर्ड प्रॉपर्टी यानी साझा संपत्ति के तौर पर नहीं लिया जा सकता है।


इससे स्पष्ट है कि महिला को अपने मैट्रिमोनियल होम में रहने का अधिकार है, लेकिन ये हक तभी तक है जबतक कि उसके पति के साथ वैवाहिक संबंध बने रहते हैं। हालांकि, पति से अलग होने के बाद भी पत्नी उसके लाइफस्टाइल के हिसाब से जीने के लिए भरण-पोषण की अधिकारी है। वहीं, पति से पैदा हुई संतानों पर भी ये लागू होता है। वैवाहिक रिश्तों में खटास के बावजूद पति अपनी पत्नी और बच्चों के रहने, खाने, कपड़े, पढ़ाई-लिखाई, इलाज वगैरह की जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं हो सकता। उसे इसके लिए भरण-पोषण देना होता है।


# साझे के घर पर महिला के अधिकार पर आये हैं ये-ये ऐतिहासिक फैसले


पहला, साझे के घर में बहू को रहने का अधिकार है या नहीं, इसे लेकर दिसंबर 2006 में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने फैसला दिया था। तरुणा बत्रा केस में जस्टिस एस. बी. सिन्हा और मार्कंडेय काटजू की बेंच ने कहा था कि एक पत्नी के पास केवल अपने पति की संपत्ति पर अधिकार होता है, वह साझे के घर में रहने के अधिकार का दावा नहीं कर सकती। हालांकि, अक्टूबर 2020 में जस्टिस अशोक भूषण की अगुआई वाली तीन जजों की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने 2006 के फैसले को पलट दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा की शिकार महिला को ससुराल के साझे घर में रहने का कानूनी अधिकार है।


दूसरा, मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने 'साझे के घर' का दायरा बढ़ाया। इसी साल में सुप्रीम कोर्ट ने साझे वाले घर यानी शेयर्ड हाउसहोल्ड की व्याख्या करते हुए महिला के उसमें रहने के अधिकार पर ऐतिहासिक फैसला दिया। फैसले में शीर्ष अदालत ने 'साझे के घर में रहने के अधिकार' की व्यापक व्याख्या की, जो इससे जुड़े मामलों में नजीर साबित होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में डोमेस्टिक ऐक्ट के तहत 'शेयर्ड हाउसहोल्ड' यानी 'साझे वाले घर' में क्या-क्या आएंगे, इसकी स्पष्ट व्याख्या की। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि महिला के पास साझे वाले घर में रहने का अधिकार है। वह महिला चाहे जिस भी धर्म से ताल्लुक रखती हो, वह चाहे मां हो, बेटी हो, बहन हो, पत्नी हो, सास हो, बहू हो या फिर घरेलू रिश्ते के तहत आने वाली किसी भी श्रेणी से ताल्लुक रखती हो, उसे साझे वाले घर में रहने का अधिकार है। उसे उस घर से नहीं निकाला जा सकता।


जस्टिस एम. आर. शाह और जस्टिस बी. वी. नागरत्ना की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि यदि कोई महिला शादी के बाद पढ़ाई, रोजगार, नौकरी या अन्य किसी वाजिब वजह से पति के साथ किसी दूसरी जगह पर रहने का फैसला करती है तब भी साझे वाले घर में उसके रहने का अधिकार बना रहेगा। इस तरह यदि महिला अपने पति के साथ किसी दूसरे शहर में रह रही है तो उसे अपने पति के घर में रहने का पूरा अधिकार तो है ही, दूसरे शहर या जगह के साझे वाले घर में भी रहने का अधिकार है। डोमेस्टिक वॉयलेंस ऐक्ट का सेक्शन 17 (1) उसे ये अधिकार देता है।


सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में उदाहरण देते हुए कहा, 'कोई महिला शादी के बाद नौकरी या रोजगार के सिलसिले में अपने पति के साथ विदेश भी जाना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में शादी के बाद महिला के पास साझे वाले घर में रहने का मौका नहीं मिलेगा। अगर किसी वजह से उसे विदेश से लौटना पड़ा तो उसके पास अपने पति के साझे वाले घर में रहने का अधिकार होगा। भले ही उस घर पर उसके पति या उसके पति का स्वामित्व न हो। ऐसी स्थिति में सास-ससुर महिला को साझे घर से बाहर नहीं निकाल सकते।'


# यदि महिला के पति की मौत हो गई तो ये ये होंगे उसके अधिकार


छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अगस्त 2022 में हिंदू विधवा के भरण-पोषण के मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। जिसमें उसने कहा कि यदि हिंदू विधवा अपनी आय या अन्य संपत्ति से जीवन जीने में असमर्थ है तो वह अपने ससुर से भरण-पोषण का दावा कर सकती है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यदि पति की मौत के बाद ससुर अपनी बहू को घर से निकाल देता है या महिला अलग रहती है तो वह कानूनी रूप से भरण-पोषण का हकदार होगी। यहां तक कि हिंदू विधवा यदि दूसरी शादी भी कर लेती है तो उसे अपने पहले पति की संपत्ति पर पूरा अधिकार होगा। इस बारे में कर्नाटक हाई कोर्ट ने फैसला दिया था कि विधवा के दोबारा शादी करने से उसके मृत पति की संपत्ति पर अधिकार खत्म नहीं हो जाता। 


हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 के तहत जब बिना वसीयत किए ही किसी विधवा की मृत्यु हो जाती है तो ऐसी स्थिति में बेटे और बेटी समेत उसके वारिस या अवैध संबंधों से जन्मी संतान भी उसकी पैतृक संपत्ति में हिस्सेदार होती है। यह फैसला गुजरात हाईकोर्ट ने जून 2022 में सुनाया था। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 के तहत, एक हिंदू विधवा को अपने दूसरे पति से जमीन विरासत में मिल सकती है। साथ ही पहली शादी से पैदा हुए उसके बच्चे भी दूसरे पति की जमीन के वारिस हो सकते हैं।


# बहू को 'साझे के घर में रहने का अधिकार' कब नहीं होगा लागू


अदालतों ने समय-समय पर 'साझे के घर में रहने के अधिकार' को लेकर अपवाद भी स्पष्ट आदेश किए हैं कि किस किस तरह के मामलों में ये लागू नहीं होगा।


पहला, माननीय सर्वोच्च न्यायालय यानी सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2022 में घरेलू हिंसा से जुड़े एक मामले में आदेश दिया कि अगर बुजुर्ग सास-ससुर को बहू प्रताड़ित करती है तो वे अपने घर को उससे खाली करा सकते हैं। दरअसल, बुजुर्ग माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों को भरण-पोषण और संरक्षण के लिए बने "द मैंटिनेंस ऐंड वेल्फेयर ऑफ पैरेंट्स ऐंड सीनियर सिटिजंस ऐक्ट, 2007" के तहत एक बुजुर्ग ने अपनी बहू के खिलाफ सताने और प्रताड़ित करने की शिकायत की थी। साथ ही बुजुर्ग ने अपनी बहू को अपने घर से बाहर निकालने की मांग की थी।


ततपश्चात, इस मामले में एसडीएम ने बुजुर्ग के पक्ष में फैसला देते हुए बहू को तीस दिन के भीतर घर खाली करने का आदेश दिया। जिसके खिलाफ बहू हाई कोर्ट पहुंच गई। हालांकि हाई कोर्ट से भी उसे राहत नहीं मिली। उसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट पहुंची, लेकिन वहां से भी उसे राहत नहीं मिली। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि बहू को ससुर का घर खाली करना पड़ेगा। 


जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस अभय एस. ओका की बेंच ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल बहू की याचिका पर 24 जनवरी 2022 को फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान ससुर ने ये प्रस्ताव दिया कि चाहे तो उसकी बहू दूसरे फ्लैट में रह सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने उस प्रस्ताव को बेहतर बताते हुए आदेश दिया कि बहू अपनी बेटी के साथ दूसरे फ्लैट में रहेगी और सास-ससुर की जिंदगी में दखल नहीं देगी। इतना ही नहीं, जिस फ्लैट में बहू रहेगी, उस पर किसी तीसरे पक्ष के लिए कोई कानूनी अधिकार भी सृजित नहीं करेगी।


दूसरा, मार्च 2022 में दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक आदेश में स्पष्ट कहा कि बुजुर्ग सास-ससुर के साथ दुर्व्यवहार करने वाली महिला को उनके घर में रहने का अधिकार नहीं है। यदि ऐसी स्थिति उतपन्न होती है तो सास-ससुर अपनी बहू को घर खाली करने के लिए कह सकते हैं। क्योंकि कानूनन उन्हें भी सुकून पूर्वक जीने का अधिकार है। गौरतलब है कि घरेलू हिंसा के एक मामले में ट्रायल कोर्ट ने आदेश दिया था कि महिला अपने मैट्रिमोनियल हाउस में नहीं रह सकती। जिसके बाद महिला ने उसे हाई कोर्ट में चुनौती दी। हालांकि दिल्ली हाई कोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए दो टूक कहा कि इस मामले में महिला के सास-ससुर बुजुर्ग हैं, जिन्हें सुकून के साथ जीने का अधिकार है। चूंकि उनके बेटे और बहू के बीच उतपन्न वैवाहिक विवाद की वजह से घर में कलह का वातावरण उतपन्न हो जाता है, जिससे उनका सुकून प्रभावित होता है, जबकि उनका सुकून नहीं छीना जाना चाहिए। हालांकि, कोर्ट ने महिला को राहत देते हुए ससुर से ये हलफनामा भी भरवाया कि जबतक उसके बेटे के साथ महिला की शादी मान्य है तब तक उसके रहने के लिए उन्हें कोई वैकल्पिक व्यवस्था करनी होगी, जो उचित बात है।


- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

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