By अभिनय आकाश | Jul 24, 2023
मणिपुर मुद्दे पर सदन में विपक्ष के विरोध के दौरान राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को आप सांसद संजय सिंह को मानसून सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित कर दिया। सांसद को उनके अनियंत्रित व्यवहार के लिए सत्र से निलंबित कर दिया गया था। सदन के नेता पीयूष गोयल ने उन्हें निलंबित करने का प्रस्ताव पेश किया, जिसे सदन ने ध्वनि मत से स्वीकार कर लिया। प्रस्ताव पेश होने से पहले, राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सिंह को उनके अनियंत्रित व्यवहार के लिए नामित किया और उन्हें चेतावनी दी। सभापति जगदीप धनखड़ उन्हें बार-बार अपनी सीट पर बैठने के लिए कह रहे थे। लेकिन इसके बावजूद संजय सिंह जोर-जोर से बोल रहे थे। सभापति के बार-बार बोलने पर जब संजय सिंह अपनी सीट पर नहीं गए तो सभापति ने कहा कि आई टेक द नेम ऑफ संजय सिंह।
क्या है लोकसभा का नियम 374
नियम 374 (ए) कहता है, ‘नियम 373 और 374 में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी किसी सदस्य द्वारा अध्यक्ष के आसन के निकट आकर अथवा सभा में नारे लगाकर या अन्य प्रकार से सभा की कार्यवाही में बाधा डालकर लगातार और जानबूझकर सभा के नियमों का दुरुपयोग करते हुए घोर अव्यवस्था उत्पन्न किए जाने की स्थिति में अध्यक्ष द्वारा सदस्य का नाम लिए जाने पर वह सभा की सेवा से लगातार पांच बैठकों के लिए या सत्र की शेष अवधि के लिए, जो भी कम हो, स्वत: निलंबित हो जाएगा।
राज्यसभा के नियम 256 के तहत सांसदों का निलंबन
यदि सभापति आवश्यक समझे तो वह उस सदस्य को निलंबित कर सकता है, जो सभापीठ के अधिकार की अपेक्षा करे या जो बार-बार और जानबूझकर राज्य सभा के कार्य में बाधा डालकर राज्य सभा के नियमों का दुरूपयोग करे। सभापति सदस्य को राज्य सभा की सेवा से ऐसी अवधि तक निलम्बित कर सकता है जबतक कि सत्र का अवसान नहीं होता या सत्र के कुछ दिनों तक भी ये लागू रह सकता है। निलंबन होते ही राज्यसभा सदस्य को तुरंत सदन से बाहर जाना होगा।
पहले कब-कब हुआ निलंबन
1989 में सबसे बड़ी निलंबन कार्रवाई हुई थी। 1989 में राजीव गांधी सरकार के दौरान सांसद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या पर ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट को संसद में रखे जाने पर हंगामा कर रहे थे। जिसके बाद विपक्ष के 63 सांसदों को हंगामा करने पर निलंबित किया गया था।
अगस्त 2013 में मानसून सत्र के दौरान कार्यवाही में रुकावट पैदा करने के लिए 12 सांसदों को निलंबित किया था। लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने नियम 374 ए के तहत सांसदों को पांच दिन के लिए निलंबित कर दिया था।
फरवरी 2014 में लोकसभा के शीतकाल सत्र में 17 सांसदों को 374 (ए) के तहत निलंबित किया गया था।
अगस्त 2015 में कांग्रेस के 25 सदस्यों को काली पट्टी बांधने एवं कार्यवाही बाधित करने पर निलंबित किया था।
मार्च 2020 में कांग्रेस के सात सांसदों को निलंबित किया गया।
पीठासीन अधिकारियों के पास क्या अधिकार हैं?
सांसदों को संसदीय शिष्टाचार के कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है। उदाहरण के लिए लोकसभा की नियम पुस्तिका यह निर्दिष्ट करती है कि सांसदों को दूसरों के भाषण को बाधित नहीं करना है, शांति बनाए रखना है और बहस के दौरान टिप्पणी करने या टिप्पणी करने से कार्यवाही में बाधा नहीं डालनी है। विरोध के नए रूपों के कारण 1989 में इन नियमों को अद्यतन किया गया। अब सदन में नारेबाजी, तख्तियां दिखाना, विरोध में दस्तावेजों को फाड़ने और सदन में कैसेट या टेप रिकॉर्डर बजाने जैसी चीजों की मनाही है। राज्यसभा में भी ऐसे ही नियम हैं। कार्यवाही को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए, नियम पुस्तिका दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों को कुछ समान शक्तियां भी देती है। प्रत्येक सदन का पीठासीन अधिकारी सांसद को घोर उच्छृंखल आचरण के लिए विधायी कक्ष से हटने का निर्देश दे सकता है। इसके बाद सांसद को शेष दिन सदन की कार्यवाही से अनुपस्थित रहना पड़ता है।