By अंकित सिंह | Jan 27, 2022
2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे जिस दिन आने वाले थे उसी के आसपास योगी आदित्यनाथ को विदेश दौरे पर जाना था। हालांकि, एन मौके पर उनके पासपोर्ट को प्रधानमंत्री कार्यालय ने वापस कर दिया और योगी से कहा गया कि चुनाव के परिणाम आने हैं, ऐसे में आपका रहना बेहद जरूरी है। इसी के बाद यह लगने लगा कि गोरखपुर से पांच बार सांसद रहे योगी आदित्यनाथ को कोई बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। हालांकि तब तक उत्तर प्रदेश चुनाव के नतीजे नहीं आए थे। योगी आदित्यनाथ ने 2017 के चुनाव प्रचार में पूरा दमखम लगाया था। लेकिन मुख्यमंत्री की रेस में वह कहीं भी नहीं थे। उत्तर प्रदेश चुनाव के नतीजे आए तो भाजपा ने एकतरफा प्रचंड बहुमत हासिल किया। लेकिन पार्टी के समक्ष एक बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो चुकी थी। समस्या थी कि आखिर उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए? यह समस्या इसलिए भी बड़ी थी क्योंकि जातीय समीकरण को भी साधना था और विकास कार्य को भी तेज करना था। राज्य की राजनीतिक फिजाओं में मुख्यमंत्री की रेस में कई बड़े नाम चल रहे थे। तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी मुख्यमंत्री की रेस में थे। हालांकि उनकी ओर से लगातार इस बात को खारिज किया जा रहा था। मुख्यमंत्री की रेस में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य का भी नाम था जो बड़े ओबीसी नेता के तौर पर अपनी पहचान बना चुके हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे करीबी नेताओं में से एक मनोज सिन्हा भी मुख्यमंत्री की रेस में थे। कहा यह भी जाता है कि मनोज सिन्हा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के लिए अपनी तैयारियां भी शुरू कर दी थी। हालांकि 17 मार्च 2017 को अचानक मुख्यमंत्री पद को लेकर दिल्ली में आलाकमान सक्रिय हो गया। उस वक्त योगी आदित्यनाथ अपने परंपरागत क्षेत्र गोरखपुर लौट चुके थे। अचानक योगी आदित्यनाथ को दिल्ली से फोन किया गया और उन्हें बुलाया जाता है। असमर्थता जताने के बाद योगी आदित्यनाथ के लिए चार्टर्ड प्लेन भेजा जाता है और उन्हें दिल्ली बुला लिया जाता है। दिल्ली आने के बाद योगी आदित्यनाथ को निर्देश दिया जाता है कि आपको उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेनी है और आपको तुरंत लखनऊ जाना है। लखनऊ में योगी आदित्यनाथ को नेता विधायक दल चुना जाता है और 19 मार्च को शपथ ग्रहण भी होता है। उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व के फायर ब्रांड नेता के तौर पर अपनी अलग पहचान बना चुके योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद कहीं से भी नहीं थी। कई राजनीतिक विश्लेषक तो यह भी कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने हिंदुत्व की राजनीति को जिंदा तो रखा वही उत्तर प्रदेश में जाति की राजनीति को भी कम करने की कोशिश की।
राजनीतिक विश्लेषकों ने दावा किया कि योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाने में सबसे ज्यादा मददगार साबित होंगे। इसके साथ ही उनकी जाति को लेकर किसी को दिक्कत नहीं होगी क्योंकि एक योगी की कोई जाति नहीं होती। एक बार फिर से 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा योगी आदित्यनाथ के ही चेहरे पर उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने जा रही है। योगी आदित्यनाथ को भाजपा ने गोरखपुर शहर से उम्मीदवार बनाया है। मुख्यमंत्री बनने से पहले योगी आदित्यनाथ को पूर्वांचल का बड़ा चेहरा माना जाता था। उनकी छवि कट्टर हिंदूवादी नेता की थी। साथ ही साथ वह हिंदुत्व के मुद्दे को प्रखरता से उठाते भी थे और विरोधी दलों पर जमकर प्रहार भी करते थे। योगी आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी के स्थापना भी की थी। हिंदू युवा वाहिनी संगठन हिंदू युवाओं का सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रवादी समूह है। सात सितंबर 2008 को सांसद योगी आदित्यनाथ पर आजमगढ़ में जानलेवा हिंसक हमला हुआ था। वह बाल बाल बचगए थे।
योगी आदित्यनाथ का परिचय
भारत की राजनीति में एक अहम मुकाम हासिल कर चुके उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जन्म 5 जून 1972 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में हुआ था। इनके पिता आनंद सिंह बिष्ट और माता का नाम सावित्री देवी है। आदित्यनाथ का परिवार राजपूत था। योगी आदित्यनाथ का नाम तब अजय कुमार बिष्ट था। योगी आदित्यनाथ ने 1989 में ऋषिकेश के भरत मंदिर इंटर कॉलेज से 12वीं पास की थी और 1992 में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय से गणित में बीएससी भी किया है। उन्होंने 1990 के दशक के आसपास अयोध्या राम मंदिर आंदोलन में शामिल होने के लिए अपना घर छोड़ दिया। उस समय के आसपास, वह गोरखनाथ मठ के प्रमुख महंत अवैद्यनाथ के शिष्य भी बन गए। उन्होंने महंत अवैद्यनाथ से दीक्षा ली और 1994 में सन्यासी बन गए। महंत अवैद्यनाथ के निधन के बाद योगी को गोरखनाथ मंदिर का मुख्य महंत भी बना दिया गया।
राजनीति में कैसे आए
योगी आदित्यनाथ के गुरु अवैध नाथ ने 1998 में राजनीति से संयास ले लिया। अवैद्यनाथ भाजपा से जुड़े हुए थे। इसके अलावा वह राम मंदिर आंदोलन में भी काफी सक्रिय थे। अवैद्यनाथ ने योगी आदित्यनाथ को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। 1998 में योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक पारी शुरू हुई। भाजपा ने उन्हें गोरखपुर से चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया। योगी आदित्यनाथ की उस वक्त उम्र सिर्फ 26 साल की थी जब वह पहली दफा चुनाव जीतकर सांसद बने थे। इसके बाद से योगी आदित्यनाथ लगातार पांच बार लोकसभा में गोरखपुर का प्रतिनिधित्व करते रहे। योगी आदित्यनाथ के जीत का भी मार्जिन लगातार बढ़ता जा रहा था। 1998 से लेकर मार्च 2017 तक वह गोरखपुर के सांसद रहे। उसके बाद उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।