Prajatantra: कैसे आया Dravida Nadu का विचार, कब शुरू हुई मांग, इसके पीछे की क्या है राजनीति?

By अंकित सिंह | Aug 11, 2023

“आज राज्य क्या है? इंडिया शब्द का हम पर कभी कोई प्रभाव नहीं पड़ा। भारत का हम पर कब प्रभाव पड़ा है? मैं एक खुला बयान दे रहा हूं। हम पर ऐसा कोई प्रभाव नहीं पड़ा। मैं कुछ समय पहले की बात कर रहा हूं। हमारा प्रभाव कहां पड़ा? कोई असर नहीं हुआ। भारत उत्तर भारत में कोई जगह है। हम तमिलनाडु से हैं। यदि संभव हो तो हमें एक द्रविड़ नाडु बनाना होगा। हमारी विचार प्रक्रिया उसी दिशा में जा रही थी। यह तमिलनाडु के मंत्री और डीएमके नेता ईवी वेलु का बयान है। वीडियो सोशल मीडिया पर आपको मिल जाएगा जिसे राज्य भाजपा अध्यक्ष के अन्नामलाई द्वारा साझा किया गया है। 

 

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मोदी का वार

मामला संसद में भी पहुंच गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी और विपक्षी एकता पर निशाना साधते हुए कहा कि तमिलनाडु सरकार के एक मंत्री ने दो दिन पहले कहा है कि इंडिया उनके लिए कोई मायने नहीं रखता, उनके मुताबिक तमिलनाडु तो भारत में है ही नहीं। मोदी ने कहा, ‘‘ आज मैं गर्व से कहना चाहता हूं कि तमिलनाडु वो प्रदेश है जहां हमेशा देशभक्ति की धारा निकली है। जिस राज्य ने कामराज, एमजीआर, अब्दुल कलाम दिये। लेकिन आज उस तमिलनाडु से इस प्रकार का स्वर..।’’ वहीं, कांग्रेस पर प्रहार करते हुए केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने दावा किया कि इनके डीएमके के एक साथी ने तमिलनाडु में कहा कि भारत का मतलब मात्र उत्तर भारत है, अगर राहुल गांधी में हिम्मत है तो आकर इसका खंडन करें।  


द्रविड़ नाडु का मामला क्या

द्रमुक सरकार अक्सर केंद्र सरकार की नीतियों से असहमति दिखाती है और केंद्र पर भारत के संघीय ढांचे का पालन नहीं करने का आरोप लगाती थी। इससे पहले नीलगिरि से द्रमुक सांसद ए राजा ने मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की उपस्थिति में कहा कि अगर केंद्र सरकार ने तमिलनाडु को अधिक स्वायत्तता नहीं दी, तो डीएमके एक अलग राज्य की मांग को फिर से उठाने के लिए मजबूर हो सकती है। उन्होंने ट्वीट भी किया, “मुख्यमंत्री अन्ना के रास्ते पर चल रहे हैं, हमें पेरियार के रास्ते पर मत धकेलें। हमें अपना देश मांगने के लिए मजबूर न करें, हमें राज्य की स्वायत्तता दें। तब तक हम आराम नहीं करेंगे।”


द्रविड़ नाडु का विचार?

ई वी रामासामी 'पेरियार' (1879-1973) ने तमिलों की "पहचान और आत्म-सम्मान को बढ़ाने" के लिए आत्म-सम्मान आंदोलन शुरू किया था। उन्होंने तमिल, मलयालम, तेलुगु और कन्नड़ भाषियों को शामिल करते हुए एक स्वतंत्र द्रविड़ मातृभूमि द्रविड़ नाडु की परिकल्पना की और इस लक्ष्य को आगे बढ़ाने के लिए एक राजनीतिक पार्टी, द्रविड़ कज़गम (डीके) की शुरुआत की। 1938 में, पेरियार ने पूरे भारत में हिंदी (सीखने) की अनिवार्य शुरुआत की योजना के खिलाफ "तमिलनाडु तमिलों के लिए" का नारा दिया। दावा किया जाता है कि जस्टिस पार्टी की तरह द्रविड़ार कषगम भी ब्राह्मण विरोधी, कांग्रेस विरोधी और आर्यन विरोधी (उत्तर भारत विरोधी) विचारों पर चलने वाली पार्टी थी। ब्रिटिश राज के दौरान 1917 में साउथ इंडियन लिबरल फेडरेशन नाम की एक पार्टी बनाई गई, जिसे जस्टिस पार्टी के नाम से भी जाना जाता है। 1938 में ही पेरियार ईवी रामासामी के आत्मसम्मान आंदोलन के साथ इसका विलय हुआ। द्रविड़ार कषगम लगातार द्रविड़नाडु की मांग करती रही। 


अन्नादुराई का उदय

मतभेदों की वजह से सीएन अन्नादुराई (टीएन के पूर्व मुख्यमंत्री) पेरियार से अलग हो गए और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) की स्थापना की। इस नए विकास के साथ द्रविड़ नाडु की मांग फीकी पड़ गई। दावा तो यह भी होता है कि पेरियार जहां स्‍वतंत्र द्रविड़ देश की मांग कर रहे थे तो ठीक इसके उलट अन्‍नादुरई की मांग केवल अलग राज्‍य को लेकर ही थी। यही कारण है कि आजादी के बाद मद्रास प्रेसीडेंसी को तमिलनाडु नाम दिए जाने पर अन्नादुरई ने द्रविड़नाडु की मांग को छोड़ दिया था। 1967 में अन्नादुरई तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने थे। 


फीकी पड़ी मांग

1967 के बाद से, जैसे ही द्रमुक और अन्नाद्रमुक के बीच सत्ता हस्तांतरित हुई, उन्होंने मुख्य रूप से तमिल संस्कृति और भाषा के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित किया। राज्य ने 1966 में त्रि-भाषा फार्मूले का विरोध किया, जिसका अर्थ था कि दक्षिण भारतीय राज्यों के स्कूलों में हिंदी पढ़ाई जाएगी। हालांकि, 1980 के दशक में, एक छोटे उग्रवादी संगठन, तमिलनाडु लिबरेशन आर्मी ने द्रविड़ नाडु की मांग को पुनर्जीवित किया, जब भारतीय शांति सेना (आईपीकेएफ) को श्रीलंका भेजा गया था। वक्ता के साथ द्रविड़ नाडु की मांग को धीरे-धीरे शिक्षा और सांस्कृतिक प्रथाओं में अधिक स्वायत्तता की मांग से बदल दिया गया। हालांकि, अब भी समय-समय में डीएमके की ओर से इसकी मांग उठाई जाती है। 

 

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तमिलनाडु के राजनीतिक दल अपने चुनावी घोषणापत्रों में राज्य की स्वायत्तता को सबसे ऊपर रखते हैं और वे अक्सर तर्क देते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था में उनके योगदान की तुलना में उन्हें अपर्याप्त लाभ मिलता है। इसके अलावा जब भी हिन्दी की बात आती है तब-तब राज्य के नेता इसे भारत की 'अखंडता और बहुलवाद' के खिलाफ बताते है। राजनीति में खुद की चमक को बरकरार रखने और केंद्र की सरकार पर दबाव बनाने के लिए क्षेत्रीय दलों की ओर से इस तरह के मुद्दे बार-बार उठाए जाते रहे हैं जिससे लोगों की भावनाओं को अपने पक्ष में किया जा सके। जनता भी बाकी मुद्दों को भूलकर उन राजनेताओं की बातों में आ जाती है। यही तो प्रजातंत्र है।

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