Gyan Ganga: डुबकी लगाते समय श्रीकृष्णजी के गले में अचानक माला कैसे पड़ गयी थी?

By आरएन तिवारी | Apr 28, 2023

सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे !

तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयंनुम:॥ 


प्रभासाक्षी के श्रद्धेय पाठकों ! भागवत-कथा, स्वर्ग के अमृत से भी अधिक श्रेयस्कर है। 


भागवत-कथा श्रवण करने वाले जन-मानस में भगवान श्री कृष्ण की छवि अंकित हो जाती है। यह कथा “पुनाति भुवन त्रयम” तीनों लोकों को पवित्र कर देती है। तो आइए ! इस कथामृत सरोवर में अवगाहन करें और जन्म-मृत्यु के चक्कर से मुक्ति पाकर अपने इस मानव जीवन को सफल बनाएँ।


मित्रों ! पूर्व प्रसंग में हम सबने देखा कि अलौकिक लीला करते हुए भगवान ने कुब्जा पर कृपा कर उसे एक सुंदर नवयुवती बना दिया, आगे चलकर कंस के द्वारा आयोजित धनुष भंग किया। कुवलयापीड़, चाणुर आदि पहलवानों का उद्धार करने के बाद आततायी कंस का वध किया। 

 

आइए ! अब आगे के प्रसंग में चलते हैं--- कंस के वध के पश्चात भगवान श्रीकृष्ण उद्धव जी के साथ मथुरा में विचरण कर रहे हैं। उद्धव जी कौन हैं? आइए ! थोड़ा जान लें। शुकदेव जी कहते हैं—


वृष्णिनां प्रवरो मंत्री कृष्णस्य दयित: सखा। 

शिष्यो बृहस्पते: साक्षात उद्धवो बुद्धि सत्तम: ॥   


उद्धव जी वृष्णि वंशियों में प्रधान, बृहस्पति के शिष्य और परम बुद्धिमान भगवान श्रीकृष्ण के प्यारे सखा तथा मंत्री थे। तो दोनों यहाँ मथुरा पूरी में विचरण कर रहे थे और उधर व्रज में राधिका और गोपियाँ कृष्ण के वियोग में अश्रुपात कर रही हैं। एक दिन कृष्ण की याद बहुत व्यथित कर दी। राधा संग गोपियों ने पत्ते का एक दोना बनाया, दोने में एक माला रखी और अपने प्रेम की आंसुओं से उस दोने को भर दिया और उसे यमुना में बहा दिया। देखिए ! यह एक संकेत है— कन्हैया प्रेम की धारा में बह कर तो देखो। ये कहने को तो दो हैं लेकिन वास्तव में दो---ना । अर्थात एक ही हैं।


श्याम श्याम रटत-रटत राधा जी श्याम भई।


दूसरे दिन कृष्ण उद्धव के साथ यमुना में स्नान कर रहे थे। यमुना की धारा में बहते-बहते वह दोना आया। कृष्ण डुबकी लगाकर जैसे ही बाहर आए, दोना उनके सिर पर उलट गया और वह माला कृष्ण के गले में पड़ गई। उस दोने में राधा और गोपियों के प्रेमाश्रु देखकर श्रीकृष्ण के नेत्र में भी आँसू झरने लगे। भगवान ने गीता में कही हुई अपनी बात सही साबित कर दी।

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ये यथा मां प्रपद्यन्ते तान तथैव भजाम्यहम। 


भगवान ने भी प्रेम के आंसुओं के बदले प्रेमाश्रु दिया। देखिए ! भगवान पहली बार रोए हैं। उनकी जिंदगी में बड़ी-बड़ी मुश्किलें बड़े-बड़े संकट आए लेकिन वे कभी रोए नहीं सदा मुसकुराते रहे। लेकिन आज वे गोपियों की भक्ति से भाव-विभोर होकर रोने लगते हैं और उद्धव जी से कहने लगते हैं-----


हे उधो ! मोहि व्रज बिसरत नाहीं 

हंस सुता की सुंदर गगरी और कुंजन की छाहीं ॥ 

हे उधो ! मोहि व्रज बिसरत नाहीं------- 


उद्धव ने पूछा--- प्रभो ! आप तो जगतगुरु हैं साक्षात परब्रह्म परमेश्वर हैं, आपकी आँखों में आँसू? आपके उपदेश से तो बड़ों-बड़ों के विषाद मिट जाते हैं। 


प्रभु ने कहा— उद्धव जी ! ये हमारे आँसू हमारी वजह से नहीं। मुझमें हम और हमारा है ही नहीं। ये आँसू जिनकी वजह से निकल रहे हैं उन्हे जाकर समझाइए। 


इत्त्युक्त उद्धवो राजन संदेशम भर्तुरादृत: । 

आदाय रथमारुह्य प्रययौ नंदगोकुलम ॥ 


वही उद्धव जी गोपियों को भगवान का संदेश सुनाने के लिए व्रज में जाते हैं। द्वैत वाद अद्वैत वाद और तत्व ज्ञान का उपदेश देते हैं, ब्रह्म और जीव की व्याख्या करते हैं। गोपियों ने उद्धवजी के तत्वज्ञान को ठुकरा दिया और कहा—

 

हे उधो ! मन ना भए दस बीस 

एक जो था सो गयो श्याम संग को अवराधे ईस । 

हे उधो ! मन ना भए दस बीस। 

 

गोपियाँ कहती हैं, उद्धव जी ! हमारे पास कोई दस-बीस मन नहीं है। एक ही मन है जो गोविंद के पद पंकज में लगा हुआ है। अब हम आपके द्वारा बताए गए ब्रह्म यानी ईश्वर की आराधना किस मन से करें ?  गोपियों ने प्रेम के सामने ज्ञान को बौना बताया। गोपियाँ कहती हैं—  

 

उधो ! हम प्रेमी हैं प्रेम करना जानते हैं।  

दुर्योधन के मेवा त्यागी साग विदुर घर खाई 

हे उधो बड़ो है प्रेम सगाई ॥ 

कन्हैया के वियोग में व्याकुल होकर गोपियाँ लोक-भाषा में गा उठती हैं---

जब से कन्हैया गइलें गोकुल बिसारि हो दीहलें।

हे ऊधो कवन रे जोगीनीया जोगवा साघेली हे राम।

बटिया जोहत राधा सूखि गइले तना आधा।

हे ऊधो पतिया बाचत छतिया फाटेला हो राम।

तोहरा बिना बिना वृन्दावन लागता रे सूना सूना।

हे ऊधो, कवन रे सवतिया मतिया मारेली हो राम।

देखिए ! उद्धव जी गोपियों को तत्व ज्ञान समझाने गए थे, और प्रेम की परिभाषा समझकर लौट आए।  

एवं सभाजितो गोपै: कृष्ण भक्त्या नराधिप।  

उद्धव: पुनरागच्छन मथुराम कृष्ण पालिता ॥ 


शेष अगले प्रसंग में ----    

श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।


- आरएन तिवारी

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