हरियाणा में पिछड़ रही भाजपा मतदान से ठीक पहले मुश्किल स्थिति से कैसे उबर गयी?

By नीरज कुमार दुबे | Oct 04, 2024

हरियाणा में लगभग सवा नौ साल तक मुख्यमंत्री रहे मनोहर लाल खट्टर के खिलाफ उपजी नाराजगी को भांप कर भाजपा नेतृत्व ने इस साल मार्च में उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा दिया था। खट्टर को लोकसभा चुनाव लड़वा कर और केंद्रीय मंत्री पद सौंप कर दिल्ली की राजनीति में स्थापित करने का प्रयास किया गया लेकिन खट्टर का मन हरियाणा में लगा रहा। भाजपा नेतृत्व को जब यह लगा कि खट्टर का नाम नुकसान पहुँचा रहा है तो पूरे चुनाव प्रचार अभियान से खट्टर का नाम और उनकी तस्वीर गायब कर दी गयी। हमने पाया कि भाजपा की हर चुनावी रैली अथवा जनसभाओं के दौरान मंच पर या उसके आसपास लगने वाले पोस्टरों, बैनरों और होर्डिंगों में खट्टर का नाम और तस्वीर नहीं थी। यही नहीं हरियाणा सरकार की जिन उपलब्धियों के सहारे भाजपा ने चुनाव लड़ा उसमें भी खट्टर की तस्वीर नहीं लगायी गयी। भाजपा ने साधारण लोगों की तस्वीरों का इस्तेमाल चुनाव प्रचार सामग्री में किया। जैसे युवाओं की तस्वीरों के साथ लिखा गया कि बिना खर्ची पर्ची नौकरी दी गयी। किसानों की तस्वीरों के साथ लिखा गया कि 24 फसलों का एमएसपी दे रही हरियाणा सरकार, महिलाओं की तस्वीरों के साथ लिखा गया कि तमाम योजनाओं का लाभ दे रही भाजपा सरकार। इसी प्रकार अन्य उपलब्धियों का बखान करते हुए भी प्रचार सामग्री तैयार करवायी गयी जिसमें आम लोगों की तस्वीरें प्रकाशित की गयी थी।


इसमें कोई दो राय नहीं कि खट्टर से छुटकारा पाकर भाजपा ने हरियाणा में खुद को मुश्किल स्थिति से उबारने में सफलता पाई है। ऐसा लगता है कि यदि भाजपा ने मार्च में खट्टर को हटाने का फैसला नहीं लिया होता तो आज वह चुनावी मुकाबले से पूरी तरह बाहर हो चुकी होती। खट्टर से व्यक्तिगत रूप से लोगों की नाराजगी भाजपा को चुनावों में उसी तरह नुकसान पहुँचा सकती थी जैसे कि राजस्थान विधानसभा के 2018 के चुनावों में देखने को मिला था जब नारे लग रहे थे कि मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं। हमसे बातचीत में भाजपा के भी कई समर्थकों और कार्यकर्ताओं ने माना कि यदि खट्टर को हटाने का फैसला एक साल पहले लिया गया होता तो लोकसभा चुनावों में भी हम सारी सीटें जीत सकते थे।

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इसके अलावा, 15 दिनों पहले जब हमने हरियाणा विधानसभा चुनाव प्रचार की कवरेज की शुरुआत की थी उस समय सब जगह कांग्रेस की हवा ही दिख रही थी लेकिन एक एक दिन बीतने के साथ यह हवा हमें धीमी पड़ती दिखी और अब जब चुनाव प्रचार खत्म हो चुका है तो कहा जा सकता है कि हवा किसी एक के पक्ष में नहीं है बल्कि कांटे का मुकाबला देखने को मिल सकता है। हरियाणा चुनाव के दौरान मुझे दिल्ली नगर निगम का पिछला चुनाव इसलिए याद आ गया क्योंकि उसमें भाजपा का सूपड़ा साफ होने की भविष्यवाणी की गई थी लेकिन जब परिणाम आये तो पार्टी नजदीकी मुकाबले में आम आदमी पार्टी से सिर्फ कुछ सीटों से पिछड़ गई थी। हरियाणा चुनावों में भी जमीनी स्थिति कुछ ऐसी ही दिखी। ऐसा लगता है कि भाजपा को जब इस बात का अहसास हुआ कि वह चुनाव में कांग्रेस से बहुत ज्यादा पीछे नहीं है तो उसने पिछले 10 दिनों में अपनी पूरी ताकत झोंक दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चार जनसभाएं कराई गयीं और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत तमाम मुख्यमंत्रियों को चुनाव प्रचार में उतार दिया गया। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस ने 70 से ज्यादा रैलियां और जनसभाएं कीं। जवाब में भाजपा ने 150 सभाएं और रैलियां कर माहौल को पूरी तरह बदल दिया।


हरियाणा में कांग्रेस ने जमीन तक इस बात को पहुँचाने में सफलता हासिल कर ली थी कि 'कांग्रेस आ रही है, भाजपा जा रही है'। भाजपा ने इस हवा की चाल को धीमा करने के लिए परिवारवाद को मुद्दा बनाया और भूपिंदर सिंह हुड्डा के पिछले शासन की याद दिलाई जिससे माहौल बदलने लगा। भाजपा ने जनता के बीच इस धारणा को मजबूत किया कि अगर कांग्रेस आई तो निश्चित रूप से हुड्डा को कमान सौंपी जाएगी। कांग्रेस नेतृत्व ने भी बार-बार हुड्डा को ही कमान सौंपने के संकेत दिये जिससे फायदा होने की बजाय नुकसान होता दिखा क्योंकि हुड्डा को अपने पिछले कार्यकाल में सिर्फ रोहतक का सीएम माना जाता था और उन पर अपने आलाकमान को खुश रखने के लिए प्रदेश के संसाधनों का दुरुपयोग करने के आरोप भी हैं। कई क्षेत्रों के लोगों का मानना है कि हुड्डा ने सिर्फ रोहतक में काम किया जिससे वहां की जमीनों के रेट ज्यादा हैं और उनके इलाके की जमीनों का रेट बहुत कम है।


इसके अलावा भाजपा ने जिस एकजुटता और रणनीति के साथ हरियाणा में काम किया उससे पार्टी मुकाबले में तेजी से वापसी करती दिखी। रैलियों, सभाओं और डोर टू डोर हुए प्रचार के बाद मिल रहे फीडबैक से भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह दिखा और इस उत्साह को और बढ़ाने के लिए पार्टी ने कोई कसर नहीं छोड़ी इसलिए 3 अक्टूबर शाम पांच बजे चुनाव प्रचार थमने तक भाजपा के प्रदेश के बड़े नेता, दूसरे राज्यों के मंत्री और मुख्यमंत्री तथा केंद्रीय मंत्री जनता के बीच लगातार पहुंचकर भाजपा की सरकार तीसरी बार बनाने की अपील करते दिखे। भाजपा की रैलियों पर नजर डालें तो पता चलता है कि पिछले लगभग एक महीने में प्रमुख नेताओं की 150 से अधिक जनसभाएं हुईं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत तमाम वरिष्ठ नेताओं ने रैलियों और रोड शो के माध्यम से अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाईं और कांग्रेस को अनेक मुद्दों पर सफलतापूर्वक घेरा। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने तो एक दिन में 4 से 5 बड़ी रैलियां कीं। भाजपा के लिए हरियाणा में सघन प्रचार करने वालों में केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव आदि शामिल रहे। हरियाणा भर में कोई शहर या गांव ना छूटे इसके लिए विभिन्न प्रदेशों के प्रवासी नेताओं और कार्यकर्ताओं की ड्यूटी भी लगायी गयी ताकि भाजपा की उपलब्धियों और पार्टी के संकल्प पत्र में किये गये वादों को जन-जन तक पहुँचाया जा सके। इसके अलावा भाजपा की सोशल मीडिया टीम ने विपक्षी नेताओं और उम्मीदवारों के प्रचार और उनके संबोधनों पर बारीकी से निगाह रखी। यदि किसी विपक्षी नेता ने कोई विवादित बयान दिया तो उसको सोशल मीडिया पर वायरल करवाया गया।


बहरहाल, तमाम प्रयासों के जरिये भाजपा मनोहर लाल खट्टर के प्रति नाराजगी से उबर पाने में तो सफल हुई। देखना होगा कि यह सफलता मतों में परिवर्तित होती है या नहीं? लोकसभा चुनावों के बाद हो रहे हरियाणा चुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। यदि भाजपा अपनी सरकार बचा लेती है तो लोकसभा में स्पष्ट बहुमत पाने से चूकी पार्टी का मनोबल बढ़ जायेगा और यदि कांग्रेस चुनाव जीतती है तो राहुल गांधी का कद और स्वीकार्यता राष्ट्रीय राजनीति में और बढ़ जायेगी।


-नीरज कुमार दुबे

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