Lok Sabha polls पर Artificial intelligence कैसे डाल सकती है असर? डीपफेक, वॉयस क्लोनिंग के जरिए मतदाताओं को रिझाने की कोशिश

By अभिनय आकाश | Mar 21, 2024

31 मार्च 2023 को अमेरिकी की गैंड ज्यूरी ने डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ आरोप तय कर दिए थे। इसके बाद ही एक वीडियो वायरल हो गया जिसमें राष्ट्रपति जो बाइडेन और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस व्हाइट हाउस में इस घटना का जश्न मनाते दिखाए गए थे। इस वीडियो को अगर गौर से देखने पर कमला हैरिस के हाथों में छह ऊंगलियां नजर आई। हाथ का ऊपरी हिस्सा भी गायब नजर आया। दरअसल, उस दिन राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति दोनों ही व्हाइट हाउस में मौजूद नहीं थे। ये फेक तस्वीरें लाखों लोगों को भेजी गई। आप कह रहे होंगे विदेशी बात है हमें इससे क्या। लेकिन दुनिया के सबसे बड़े चुनावी उत्सव का बिगुल बजते ही राजनीति पार्टियों की ओर से बड़े स्तर पर सोशल मीडिया का प्रयोग तो हो ही रहा है। इसके साथ ही इस बार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी बड़ा फैक्टर साबित होने जा रहा है। लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर चुनौतियां भी कम नहीं है। फेक न्यूज और गलत जानकारी भी इस तकनीक के जरिए तेजी से फैल सकती है। डीपफेक भी एक तरह से एआई का ही रूप है। इंटरनेट पर कई ऐसे टूल्स मौजूद हैं जिनकी मदद से किसी की भी आवाज और हाव भाव का क्लोन तैयार किया जा सकता है। फर्जी ऑडियो या वीडियो बनाया जा सकता है। अपनी सहूलियत के हिसाब से किसी की भी इमेज बनाने या बिगाड़ने में इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर राजनीति में किसी खास उम्मीदवार या पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए एआई को लगाया जाए तो एआई विरोधी पक्ष को कमजोर करने के लिए टारगेटेड ग्रुप के बीच उसी तरह के संदेश भेजना शुरू कर देगा। इसके साथ ही ऐसे तरीके भी अपनाए जा सकते हैं जिसके बारे में इंसानी दिमाग सोच भी नहीं सकता। 

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रैलियां और रोड शो में भी प्रयोग

जैसे-जैसे लोकसभा चुनावों के लिए युद्ध का मैदान गर्म होता जा रहा है, राजनीतिक दलों को अपने शस्त्रागार में एक नया हथियार मिल गया है: फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और एक्स जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर सामग्री साझा करना जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के माध्यम से उत्पन्न होते हैं या तो अपने स्वयं के प्रचार के लिए। उम्मीदवार या विरोधियों का उपहास करते हैं और मतदाताओं को लक्षित वैयक्तिकृत संदेश भेजते हैं। विशेषज्ञों का मानना ​​है कि इस चुनाव में एआई का उपयोग अभूतपूर्व पैमाने पर किया जाएगा -और संभवतः 2014 के चुनावों में सोशल मीडिया की तरह एक निर्णायक कारक होगा - हालांकि मतदाताओं की राय बनाने में विघटनकारी तकनीक का प्रभाव देखा जाना बाकी है।

ध्रुवीकरण के लिए हो सकता है इस्तेमाल

अमेरिका में सीनेट की खुफिया और नियम समिति के सदस्य सीनेटर वेनेट ने व्हाट्सअप और फेसबुक के मालिकाना हक वाली कंपनी मेटा से पूछा है कि भारत के चुनावों में डीपफेक के इस्तेमाल से सोशल मीडिया में फर्जी और झूठी सामग्री के प्रसार को रोकने के लिए उनकी क्या तैयारी है? इससे साफ है कि AI के सप्लीमेंट्स से सोशल मीडिया में ऑडियो-विडियो और डिजिटल कंटेंट का प्रसार करने के साथ पार्टियां इसका ध्रुवीकरण के लिए इस्तेमाल कर सकती है। वहीं, मेटा ने भारत में आम चुनावों के दौरान किसी भी गलत सूचना और AI कंटेंट के दुरुपयोग पर रोक लगाने का संकल्प लिया है। 

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कैसे किया जा रहा है प्रयोग

चुनाव में वट्सऐप जैसे 'मेसेजिंग' मंच और सोशल मीडिया 'एन्फ्लूएंसर्स' का सहारा तो लिया ही जाएगा, AI से ज्यादा लोगों तक पहुंचने का प्रयास भी होगा। चुनाव में प्रमुख पार्टियों को पूरे देश में प्रचार करना पड़ता है। दक्षिण भारत जैसे राज्यों में जव उत्तर भारत के नेता प्रचार करते हैं तो उनके भाषणों को अलग-अलग भाषाओं में बदलने के लिए AI का इस्तेमाल किया जाएगा। पाकिस्तान में हाल ही में आम चुनाव संपन्न हुए है और पड़ोसी देश में भी आम चुनाव में एआई का इस्तेमाल देखने को भी मिला था।

एआई पर लगाम लगाने का आह्वान

विशेषज्ञों ने मतदाताओं की धारणा को प्रभावित करने के लिए एआई-जनित सामग्री के संभावित उपयोग के प्रति सावधानी बरती है और चुनाव आयोग से इस तकनीक के उपयोग से निपटने के लिए अपने प्रयासों को तेज करने का आह्वान किया है। ऐसी चीज़ों को वायरल होने के लिए कुछ घंटे काफी हैं और जब तक आप इसका पता लगाएंगे, तब तक नुकसान हो चुका होगा। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वॉच के प्रमुख अनिल वर्मा का कहना है कि प्लेटफ़ॉर्म में रियल टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम नहीं होती है, और जब तक ऐसा नहीं होता है, तब तक ऐसी सामग्री को शामिल करना बहुत मुश्किल होगा। कंपनियों ने AI-जनरेटेड वीडियो को लेबल करने और वॉटरमार्क करने जैसी तकनीकों को पेश करने की बात कही है। लेकिन हमारी आबादी के आकार और राजनीतिक दलों द्वारा इस तरह की सामग्री को आगे बढ़ाने के लिए व्हाट्सएप का उपयोग करने से यह बहुत मुश्किल होगा। चुनौती ने तकनीकी कंपनियों  एआई-जेनरेटेड कनटेंट का प्रसार करने वाले सबसे बड़े मंच को पैचवर्क समाधान खोजने के लिए मजबूर कर दिया है। हाल के एक ब्लॉग पोस्ट में मेटा ने कहा कि वैश्विक स्तर पर विज्ञापनदाताओं को यह खुलासा करने की आवश्यकता होगी कि वे राजनीतिक या सामाजिक मुद्दे वाले विज्ञापन को बनाने या बदलने के लिए एआई या डिजिटल तरीकों का उपयोग कब करते हैं। कंपनी ने कहा कि वह गूगल, ओपनएआई, माइक्रोसॉफ्ट, एडोब, मिडजर्नी और शटरस्टॉक से एआई-जनरेटेड छवियों को लेबल करने के लिए टूल बना रही है, जिन्हें उपयोगकर्ता फेसबुक, इंस्टाग्राम और थ्रेड्स पर पोस्ट करते हैं। गूगल ने हाल ही में कहा था कि वह चुनाव से संबंधित प्रश्नों पर अपने AI चैटबॉट जेमिनी की प्रतिक्रियाओं को सीमित करेगा। यूट्यूब ने कहा कि जब एआई टूल का उपयोग करके यथार्थवादी दिखने वाली सामग्री बनाई जाती है तो रचनाकारों को दर्शकों को इसका खुलासा करना होगा।

सोशल मीडिया को रेगुलेट करने की नीति

केएन गोविन्दाचार्य की अर्जी के बाद अक्टूबर 2013 में चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया को रेगुलेट करने के लिए नीति बनाई थी। उन नियमों के अनुसार एआई के इस्तेमाल के नियमन के तीन पहलू हैं। पहला-कंटेंट की सत्यता, दूसरा-एआई के इस्तेमाल का खर्च, तीसरा-चुनाव सामग्री का नियमों के अनुसार अनुमोदन। सरकार ने देश में एआई के इस्तेमाल के लिए अनुमोदन के नियम बनाए थे, जिन्हें बाद में वापस ले लिया गया।

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