क्या पाकिस्तान का भविष्य सिर्फ और सिर्फ आतंकवाद है। क्या पाकिस्तान अपने ही लोगों की सुरक्षा करने में नाकाम हो चुका है? ऐसे सवाल एक घटना के बाद उठने लगे हैं, जिसने पूरी दुनिया को हैरान करके रख दिया है। उत्तर पश्चिम पाकिस्तान के खैबर पख्तूनवा प्रांत में विदेशी राजनयिकों के काफिले पर जोरदार आतंकी हमला हुआ है। आतंकियों ने काफिले के सबसे आगे चल रहे स्कॉउट पुलिस वाहन को निशाना बनाया। इस बर्बर हमले में एक पुलिसकर्मी शहीद हो गया और तीन घायल हो गए। ये हमला उस वक्त हुआ जब राजनयिक कार्यक्रम से लौट रहे थे। आतंकियों का निशाना पाकिस्तान का सुरक्षा तंत्र था। लेकिन हैरान करने वाली बात है कि ये सब उस देश में हो रहा है, जो आतंकवाद का सबसे बड़ा समर्थक है। पाकिस्तान में आतंकवाद कोई नई बात नहीं है। दशकों से ये देश आतंकवादियों का सुरक्षित पनाहगार बना हुआ है।
दरअसल, पाकिस्तान में आतंकवादी खुदको सरकार से भी ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं। पाकिस्तान की धरती पर आतंकी संगठनों की जड़े इतनी गहरे हैं कि लोग भी वहां खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं। अब तो वहां विदेशी राजनयिक भी महफूज नहीं है।पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि यह धमाका रिमोट के जरिए किया गया और काफिला इस्लामाबाद से स्वात जिले के खूबसूरत पहाड़ी इलाके मालम जब्बा की ओर जा रहा था। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि सभी राजनयिक सुरक्षित हैं। काफिले में रूस, वियतनाम, बोस्निया एवं हर्जेगोविना, इथियोपिया, रवांडा, जिम्बाब्वे, इंडोनेशिया, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान और पुर्तगाल के राजनयिक शामिल थे। पुलिस अधिकारी ने कहा, सभी राजनयिक पूरी तरह सुरक्षित हैं। विस्फोटक उपकरण से सुरक्षा ड्यूटी पर तैनात पुलिस के काफिले को निशाना बनाया गया। अस्पताल के अधिकारियों ने बताया कि तीनों घायल पुलिसकर्मियों की हालत गंभीर है।
खैबर पख्तूनख्वा के मुख्यमंत्री अली अमीन गंदापुर ने विस्फोट की निंदा की और कहा कि हम आतंक के खिलाफ युद्ध में अपने बहादुर पुलिस बल के अतुलनीय बलिदान के लिए उन्हें सलाम करते हैं। उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। स्वात जिला 2009 में उग्रवाद के दौर में तालिबान उग्रवाद का गढ़ बना रहा। जिले में बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान के बाद उग्रवादियों को खदेड़ दिया गया और अधिकांश उग्रवादी पड़ोसी अफगानिस्तान भाग गए। उग्रवाद के दौरान स्थानीय लोगों का देश के अन्य हिस्सों में पलायन हुआ था, हालांकि, पांच महीने के अभियान के बाद, लोग स्वात जिले में अपने मूल क्षेत्रों में लौट आए।