भारतीय हॉकी टीम की दीवार PR Sreejesh पर पेरिस ओलंपिक में पदक दिलाने की फिर रहेगी जिम्मेदारी

By Anoop Prajapati | Jul 04, 2024

टोक्यो में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचने वाली भारतीय हॉकी टीम की नजरें पेरिस में स्वर्ण पर टिकी हैं। जिसमें सबसे अहम जिम्मेदारी टीम के अनुभवी गोलकीपर पीआर श्रीजेश निभायेंगे। श्रीजेश पिछले एक दशक से भारतीय मेंस हॉकी टीम के मजबूत स्तंभ बने हुए हैं। तीन बार के इस ओलंपियन ने कई बार मैदान पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। साल 2006 में श्रीलंका में हुए दक्षिण एशियन गेम्स में डेब्यू करने के बाद से पीआर श्रीजेश भारतीय टीम के नियमित सदस्य हैं। इस दौरान टीम में काफी बदलाव देखने को मिले लेकिन श्रीजेश पर टीम मैनेजमेंट का भरोस कायम रहा।


केरल के एर्नाकुलम जिले के किझक्कम्बलम गांव में किसान परिवार में जन्मे पीआर श्रीजेश शुरुआत में हॉकी में करियर बनाने के बारे में नहीं सोचते थे। लेकिन जब पीआर श्रीजेश युवा थे तो उन्हें एथलेटिक्स ने काफी आकर्षित किया।  तिरुवनंतपुरम में जीवी राजा स्पोर्ट्स स्कूल में, उन्होंने स्प्रिंट, लंबी कूद और वॉलीबॉल में भाग लिया लेकिन अंत में उनके कोचों ने उन्हें हॉकी खेलने के लिए मना लिया। पीआर श्रीजेश की क्षमता को उनके शुरुआती कोच, जयकुमार और रमेश कोलप्पा ने बहुत जल्दी ही पहचान लिया था और उन्होंने इस खिलाड़ी को निखारने का फैसला किया। 


पीआर श्रीजेश ने एक इंटरव्यू में बताया कि “मेरे दोनों कोचों ने मुझे हॉकी सिखाई। उन्होंने मुझे सिखाया कि कैसे ध्यान केंद्रित करना है और अपने खेल को गंभीरता से लेना है। ” इसके अलावा भारतीय टीम के स्टार गोलकीपर ने कहा कि  मुझे अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी सलाह में से एक उनसे ही मिली, उन्होंने मुझसे कहा था कि एक गोलकीपर एक ऐसा काम करता है, जिसका ज्यादा श्रेय उसे नहीं मिलता। लेकिन वह टीम के जीतने और हारने के बीच का अंतर हो सकता है।' उनकी इस बात ने मेरे पूरे करियर में बहुत मदद की।" पीआर श्रीजेश अपनी भावनाओं को काबू में करना अच्छे से जानते हैं और उनकी इस काबिलियत के कारण भारतीय टीम कई खिताब जीतने में सफल रही। पीआर श्रीजेश के करियर में टर्निंग पॉइंट साल 2012 में आया। 


लंदन ओलंपिक में एक खराब अभियान से वापस आने के बाद भारतीय टीम में काफी बदलाव देखने को मिले। उस ओलंपिक में भारतीय टीम को सभी मैचों में हार झेलनी पड़ी थी। कई सीनियर खिलाड़ियों को बाहर करने के साथ ही भारतीय हॉकी टीम मैनेजमेंट ने अगले ओलंपिक के लिए युवा खिलाड़ियों पर भरोसा दिखाने का फैसला किया। टीम ने आने वाले सालों में कुछ यादगार जीत दर्ज की। इस टीम ने 2014 एशियन खेलों में महाद्वीपीय स्वर्ण पदक के लिए भारत के 16 साल पुराने इंतजार को समाप्त किया। इसके अलावा भारतीय हॉकी मेंस टीम ने साल 2015 एफआईएच हॉकी विश्व लीग फाइनल में कांस्य पदक जीता। बता दें कि यह पिछले 33 साल में भारतीय  हॉकी मेंस टीम का पहला इंटरनेशनल खिताब था। 


रियो 2016 ओलंपिक में, भारतीय टीम ने लंदन 2012 के अपने प्रदर्शन में जबरदस्त सुधार करते हुए क्वार्टर फाइनल तक का सफर तय किया। इन जीतों में, पीआर श्रीजेश भारत के लिए स्टार साबित हुए क्योंकि उन्होंने शानदार प्रदर्शन करते हुए बार-बार अपनी टीम को परेशानी से बाहर निकाला। साल 2014 के एशियन गेम्स में, भारत का ये गोलकीपर पाकिस्तान के खिलाफ पेनल्टी शूट- आउट में दीवार की तरह खड़ा था। नीदरलैंड्स के खिलाफ एफआईएच हॉकी वर्ल्ड लीग फाइनल मेडल मैच में, पीआर श्रीजेश अपनी टॉप फॉर्म में थे। उस पूरे मैच में श्रीजेश ने शानदार गोलकीपिंग की और पेनल्टी शूट-आउट में भी उनका प्रदर्शन गजब का था। 


पीआर श्रीजेश उस भारतीय टीम का भी हिस्सा थे जिसने ग्लासगो में 2014 कॉमनवेल्थ गेम्स में रजत पदक जीता था। यही नहीं श्रीजेश ने कुछ समय के लिए भारतीय टीम की कप्तानी भी की, इस दौरान साल 2016 रियो ओलंपिक में भी टीम की कमान उनके हाथ में ही थी। पिछले कुछ सालों से पीआर श्रीजेश एक मेंटॉर की भूमिका भी निभा रहे हैं। कृष्ण पाठक और सूरज करकेरा जैसे युवा कीपरों को वह अपने अनुभव से काफी कुछ सीखा रहे हैं और भविष्य के लिए तैयार कर रहे हैं। पीआर श्रीजेश को साल 2015 में अर्जुन पुरस्कार और 2017 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।

प्रमुख खबरें

भारत की युवा टीम पहले टी20 मैच में जिम्बाब्वे से 13 रन से हारी

Pune में पुलिस भर्ती अभियान के दौरान जमीन पर गिर जाने से हुई युवक की मौत

इस पल का आनंद लेना और परिवार के साथ समय बिताना चाहता हूं: Arshdeep

जम्मू से 6,145 तीर्थयात्रियों का एक और जत्था अमरनाथ यात्रा के लिए रवाना