By अभिनय आकाश | May 16, 2022
विश्व के सात अजूबों में से एक ताजमहल पर विवाद कोई नया नहीं है। मुगलों की ओर से देश में शासन के दौरान हिंदू धार्मिक स्थलों को निशाना बनाए जाने को पूरे विवाद का आधार माना जा रहा है। इस मामले में इतिहासविदों की राय अलग है। ताजमहल के नीचे हिंदू मंदिर था या नहीं, इस पर अभी भी बहस चल रही है। ताजमहल के नीचे मकबरा है या नहीं, इसको लेकर भी विवाद है। यह तो सभी जानते हैं कि मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी प्यारी बेगम मुमताज महल की याद में इस भव्य स्मारक का निर्माण करवाया था। जी हां, इसके पुख्ता सबूत हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या वास्तव में बेगम को उस स्मारक के नीचे दफनाया गया था?
अर्जुमंद बानो या मुमताज महल शाहजहाँ की निरंतर साथी थी। न केवल महल में, बल्कि युद्ध शिविर में भी, उनकी प्यारी बेगम ने सम्राट का हाथ नहीं छोड़ा। लेकिन 1831 में शाहजहाँ के दिल्ली के मसनद में बैठने के ठीक तीन साल बाद, ये बंधन टूट गया। 14वें बच्चे को जन्म देते समय मुमताज की समय से पहले मौत हो गई। इतिहास के अनुसार बेगम मुमताज महल की मृत्यु दिल्ली या आगरा में नहीं बल्कि आगरा के दक्षिण पश्चिम बुरहानपुर में हुई थी। बुरहानपुर में ताप्ती नदी के तट पर स्थित शाही किला, दुश्मन के हमलों को रोकने के लिए सम्राट का निवास स्थान था और कई लोगों का दावा है कि मुमताज का मकबरा मध्य प्रदेश के इस शांत शहर में है। लेकिन इस तरह के दावे के पीछे क्या कारण है? दरअसल, उस समय ज्ञात होता है कि मुमताज को बुरहानपुर के शाही किले से कुछ दूरी पर जैनाबाद के अहुखाना के आबंटन में दफनाया गया था। कुछ लोगों ने कहा कि विभिन्न जड़ी-बूटियों से शरीर को संरक्षित करने की व्यवस्था की गई ताकि बेगम के शरीर को वापस राजधानी ले जाया जा सके।
क्या है इसकी कहानी
शाहजहां की बेगम मुमताज की कब्र ताप्ती नदी के पूर्व में आज भी स्थित है। इतिहासकारों के अनुसार लोधी ने जब 1631 में विद्रोह का झंडा उठाया था। तब शाहजहां अपनी पत्नी मुमताज महल को लेकर बुरहानपुर आ गया था। उन दिनों मुमताज गर्भवती थी। सात जून 1631में 14वें बच्चे को जन्म देते समय उसकी मौत हो गई। दूसरे दिन की शाम उसे वहीं आहुखाना के बाद में दफना दिया गया। यह इमारत आज भी खस्ता हाल में है। जिस जगह मुमताज की लाश रखी गई थी उसकी चारदीवारी में दीये जलाने के लिए आले बने हैं। यहां 40 दिन तक दीये जलाए गए।
कब्र के पास एक इबादतगाह भी मौजूद है
सम्राट शाहजहां की बेगम मुमताज की मौत न तो आगरा में हुई और न ही उसे वहां दफनाया गया। असल में मुमताज की मौत मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले की जैनाबाद तहसील में हुई थी। मुमताज की कब्र ताप्ती नदी के पूर्व में आज भी स्थित है। इतिहासकारों के अनुसार लोधी ने जब 1631 में विद्रोह का झंडा उठाया था तब शाहजहां अपनी पत्नी मुमताज महल को लेकर बुरहानपुर आ गया था। उन दिनों मुमताज गर्भवती थी। सात जून 1631 में बच्चे को जन्म देते समय उसकी मौत हो गई। दूसरे दिन गुरुवार की शाम उसे वहीं आहुखाना के बाग में दफना दिया गया।
इसको लेकर भी मतभेद है
कई लोगों के अनुसार, बेगम का मकबरा यहां छह महीने तक रहा था। लेकिन वापस आगरा में, बादशाह शाहजहाँ ने ताजमहल बनाने की योजना बनाई। कई इतिहासकारों ने कहा इसलिए शव को बुरहानपुर से आगरा ले जाया गया। उनके मुताबिक बेगम को ताजमहल परिसर में दफनाया गया और वहीं रखा गया। उन्होंने दावा किया है कि ताजमहल के निर्माण के पूरा होने के लगभग बारह साल बाद उन्हें अंतिम रूप दिया गया था। इस बात से कोई असहमत नहीं है कि बुरहानपुर से एक बारात वापस आगरा लौट आई थी। लेकिन क्या मुमताज की लाश उनके साथ ही लौटी? कुछ के अनुसार उस मकबरे में बेगम का शव पड़ा रहा। आगरा में जो लाया गया वह केवल एक प्रतीकात्मक ताबूत था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार लंबे समय तक दबे रहने के कारण शरीर प्राकृतिक तरीके से सड़ गया और जमीन में दब गया, जिसे उठाया नहीं जा सकता था। हालांकि, कई लोगों का कहना है कि बेगम के कंकाल या हड्डियों को आगरा लाया गया था।