By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jul 17, 2022
नयी दिल्ली।ऊर्जावान या आक्रामक? नये संसद भवन की छत पर स्थापित किये गये राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न को लेकर बहस जारी है। कुछ इतिहासकार इस बात से निराश हैं कि प्रतीक चिह्न में सम्राट अशोक के मूल चिह्न के सार का अभाव है, जिसमें शेरों को ‘रक्षक’ के रूप में दर्शाया गया है। वहीं, कई इतिहासकारों का कहना है कि दोनों में अंतर बहुत कम है और कला के दो हिस्से हूबहू एक जैसे नहीं हो सकते। पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अनावरण किए गये प्रतीक चिह्न में मौजूद शेरों को कुछ अलग रूप में प्रदर्शित किये जाने को लेकर विवाद शुरू हो गया तथा इससे उत्पन्न हुआ विमर्श त्वरित और ध्रुवीकृत है। हरबंस मुखिया, राजमोहन गांधी, कुणाल चक्रवर्ती और नयनजोत लाहिड़ी सहित कई अन्य इतिहासकारों के मुताबिक, अशोक के मूल चिह्न से तुलना करने पर ‘नये शेर’ थोड़े ‘अलग’ नजर आते हैं और इनमें शांति एवं सद्भावना का समान भाव नहीं नजर आता। हालांकि, इतिहासकार पारोमिता दास गुप्ता उनकी राय से इत्तफाक नहीं रखतीं। उनका तर्क है कि नये संसद भवन की छत पर स्थापित किये गये प्रतीक चिह्न में मौजूद शेर ज्यादा बड़े और ऊर्जावान दिखाई देते हैं, जो इस जंतु का मूल चरित्र है।
हैदराबाद की महिंद्रा यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर दास गुप्ता ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “जिन कलाकारों ने इन्हें तैयार किया है, वे 2500 से अधिक वर्षों के बाद के हैं। ऐसे में उनकी कलाकृति स्वाभाविक रूप से अलग होगी। यह कार्बन कॉपी नहीं हो सकती, क्योंकि कला के दो हिस्से हूबहू एक जैसे नहीं हो सकते।” वर्तमान में अमेरिका की इलिनोई यूनिवर्सिटी में अध्यापन कर रहे इतिहासकार राजमोहन गांधी ने कहा कि नये प्रतीक चिह्न और सारनाथ स्थित अशोक के मूल चिह्न में मौजूद शेरों में अंतर बहुत स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। महात्मा गांधी के पोते राजमोहन गांधी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “संबंधित तस्वीरों पर नजर दौड़ाने पर भी कोई भी व्यक्ति फर्क महसूस कर सकता है।” उन्होंने कहा, “मूल शिल्प में गौरव और आत्मविश्वास का भाव झलकता है। उसमें मौजूद शेर रक्षक नजर आते हैं। जबकि मौजूदा शिल्प आक्रोश और असहजता का भाव प्रकट करती है और इसमें मौजूद शेर आक्रामक दिखते हैं।” प्रख्यात इतिहासकार हरबंस मुखिया ने भी समान विचार जाहिर किए।
मुखिया ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “शेरों को आक्रामक माना जाता है, लेकिन ये शेर (अशोक के चिह्न वाले) आक्रामक नहीं हैं। ये शांति और सुरक्षा का संदेश देते हैं तथा सौम्य स्वभाव के नजर आते हैं। नये शेरों में दांत ज्यादा उभरे हुए दिखाई देते हैं, जबकि पुराने शेरों में ऐसा नहीं है।” उन्होंने कहा कि दांत को ज्यादा उभारकर दिखाना ‘आक्रामकता’ का संकेत है, जो ‘आक्रामक राष्ट्रवाद’ को दर्शाता है, जिसे चित्रित करने का प्रयास किया जा रहा है। मुखिया ने कहा, “यह न तो अनजाने में किया गया है, न ही कलात्मक स्वतंत्रता है। मेरे विचार में कलाकारों को अपनी भावनाएं व्यक्त करने की आजादी है, लेकिन वे उस मूल संदेश को नहीं बदल सकते, जो संबंधित कला का अंश दर्शाना चाहता है।” उन्होंने कहा, “इसमें दांत खासतौर पर आक्रामक दिखते हैं। यह कला के मूल चरित्र को बदल देता है। बदलाव हमेशा कोई संदेश बयां करते हैं। यह सरकार किस तरह का संदेश देना चाहती है। क्या आप भारत को एक शांतिपूर्ण देश से आक्रामक राष्ट्र में तब्दील करना चाहते हैं?” मुखिया ने जोर देकर कहा कि अशोक स्तंभ के शेर शांति और सुरक्षा के संदेश को आगे बढ़ाते थे। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से प्राचीन भारतीय इतिहास के प्रोफेसर के रूप में सेवानिवृत्त हुए कुणाल चक्रवर्ती ने कहा कि नये संसद भवन की छत पर स्थापित किया गया प्रतीक चिह्न उससे ‘अलग’ नजर आता है, जो इतने वर्षों से देखा जाता रहा है। उन्होंने कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि सारनाथ के शेर अंदरूनी ताकत और शांति का एहसास कराते हैं।”
चक्रवर्ती ने कहा, “मैंने अशोक के शेरों को करीब से देखा है और ये शांति, शक्ति, सद्भाव और सुरक्षा का एहसास कराते हैं, जो एक नये राष्ट्र में होना चाहिए।” चक्रवर्ती ने जोर देते हुए कहा, “नये संसद भवन की छत पर स्थापित किये गये प्रतीक चिह्न में शेरों में दांत ज्यादा उभरे हुए दिखाई देते हैं। मैंने इसके शिल्पकार को टेलीविजन पर यह कहते सुना था कि वे समान हैं, लेकिन वे स्पष्ट रूप से अलग हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है।” प्राचीन भारतीय इतिहास की विशेषज्ञ नयनजोत लाहिड़ी ने भी इस बात को रेखांकित किया कि नये शेरों के चेहरे का ‘आक्रामक भाव’ सारनाथ में मौजूद अशोक के शेरों की ‘सौम्य आभा’ से ‘गुणात्मक रूप से अलग’ है। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित लेख में उन्होंने कहा, “संसद की नयी इमारत के प्रशंसक निश्चित रूप से दावा कर सकते हैं कि यह पुराने प्रतीक चिह्न को लेकर एक नयी सोच है। लेकिन इसमें उस अद्वितीय सौम्य छवि एवं आभा की हत्या कर दी गई है, जो अशोक के शेरों की पहचान है।” हालांकि, पारोमिता दास गुप्ता ने लाहिड़ी की बात का विरोध करते हुए कहा कि नये संसद भवन पर लगाए गए प्रतीक चिह्न में उस मूल राष्ट्रीय चिह्न के सभी आवश्यक प्रतीक एवं भाव मौजूद हैं, जिसे 1950 में भारत में गणतंत्र की स्थापना पर अपनाया गया था। दास गुप्ता ने कहा, “जब तक मूल तत्व अपरिवर्तित रहते हैं और भारत के राज्य संप्रतीक अधिनियम-2005 के सिद्धांतों का पालन करते हैं, तब तक मौर्य काल के शेरों के स्वरूप और राष्ट्रीय प्रतीक की ताजा नकल के बीच तकनीकी रूप से कोई बड़ा अंतर नहीं है।” उन्होंने मौजूदा विवाद को ‘बेहद गैरजरूरी’ करार देते हुए कहा, “राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न के मूल तत्वों/स्वभाव से कोई छेड़छाड़ या समझौता नहीं किया गया है। ऐसे में बहस व्यर्थ और आलोचना निराधार है।’ उल्लेखनीय है कि विपक्षी दलों ने सरकार पर नये चिह्न को ‘आक्रामक रूप’ देने और राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न का अपमान करने का आरोप लगाया है। वहीं, केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इन आरोपों को प्रधानमंत्री मोदी को निशाना बनाने की एक और ‘साजिश’ करार देते हुए इन्हें खारिज कर दिया है।