कुतुबमीनार में हिंदू मंदिरों के अवशेष, जहां लोहे के बाड़े में कैद हैं गणेश, मोदी कराएंगे आजाद?

By अभिनय आकाश | Apr 12, 2022

इतिहास में कई ऐसे किस्से और कहानियां दर्ज हैं जिसमें मुगलिया दौर में हिन्दुओं की आस्था के साथ मजहबी खिलवाड़ किया गया। सनातन संस्कृति के मंदिर को तहस-नहस कर दिया गया। ऐसे कितने किस्से मिल जाएंगे जब हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियों को खंडित करने और उन्हें अपमानित किए जाने की घटनाएं घटी। सनातन आस्था को मटियामेट करने की नफरती ख्वाहिश के साथ 800 साल पहले जो कुछ भी हुआ उसे आज भी जारी रखने की आखिर क्या मजबूरी है। भगवान गणेश जो हिन्दुओं के प्रथम पूज्य देवता हैं और जिस विघ्नहर्ता से हम संकट हरने की प्रार्थना करते हैं। उन्हीं की मूर्ति को दिल्ली के कुतुबमीनार में पिंजरे में क्यों कैद करके रखा गया है। कुतुबमीनार में हिंदू मंदिर होने के मुद्दे ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया है। ये इस वक्त का वो विवादित मुद्दा है जिसका शोर इन दिनों न केवल सियासत को गर्म कर रहा है बल्कि आम लोगों की जिंदगी और सोच में भी हलचल पैदा कर रहा है। 

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दिल्ली की शान है महरौली में मौजूद कुतुबमीनार। निर्माण सदियों पुराना है लेकिन विवाद का पौधा फिर से लहलहाने लगा है। दिल्ली के प्रथम मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन एबक की ओर से कुतुबमीनार की नींव की आधारशीला रखी गई थी। लेकिन बार-बार इसको लेकर सवाल खड़े होते रहे। ये कहा जाता रहा कि मंदिर को तोड़कर इसका निर्माण करवाया गया। महरौली से बीजेपी की निगम पार्षद आरती सिंह ने ये दावा किया है कि कुतुबमीनार दरअसल, पैसे मंदिर था। जहां लोग साल 2000 तक आरती और पूजा करने जाते थे। लेकिन उसके बाद न जाने क्यों आरती और पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया गया। वहीं विश्व हिन्दू परिषद के नेता कुतुबमीनार का दौरा करने गए। दावा किया कि ये मस्जिद या मीनार नहीं बल्कि हिन्दू और जैन मंदिर है। जिसे मुगलों ने तोड़कर यहां पर मस्जिद का निर्माण करवाया।  

क्या है वो दावे 

कुतुबमीनार की मौजूदा कॉम्पलेक्स, दीवारों, खंभों पर देवी-देवताओं के चित्र और  धार्मिक चिन्ह बने हुए हैं। इनमें भगवान गणेश, विष्णु, यक्ष-यक्षिणी, महावीर और नटराज की आकृतियां भी नजर आएंगी। इसके अलावा यहां भगवान गणेश की एक मूर्ति को लोहे की ग्रिल में कैद करके रखा गया है। कहा जाता है कि ये मूर्ति मंदिर के विध्वंस के बाद बनाई गई मस्जिद की दीवार में लगा दी गई। दावा किया जाता है कि ये मूर्तियां राजा अनंगपाल तोमर के बनाए 27 जैन और हिंदू मंदिरों को तोड़कर लाई गई थीं। कुतुब परिसर के खंभे पर आधे गोल आकार में सूर्य देव की मूर्ति उकेरी गई है। दावा है कि इस्लाम में बुत परस्ती हराम है तो कोई भी इस्लामी शासक ऐसी आकृतियां नहीं बनवाएगा। इसके अलावा कुतुबमीनार परिसर में मंगल कशल, शंख, गदा और पवित्र कमल के चिन्ह भी नजर आ जाएंगे। 

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अपमानजनक तरीके से रखी हैं मूर्तियां

विवाद इस बात पर भी है कि कुतुबमीनार के अंदर जगह-जगह देवी-देवताओं की मूर्ति का अवशेष देखने को मिलता है। आरोप है कि मस्जिद परिसर में भगवान की मूर्तियों को जमीन पर रखकर अपमानित किया जा रहा है। कुतुबमीनार परिसर में उल्टी गणेश प्रतिमा पर भी विवाद हो रहा है। बीजेपी नेता तरुण विजय भी कई बार गणेश की उल्टी रखी गई मूर्तियों के अनादर के बारे में पुरातत्व विभाग को खत लिख चुके हैं। राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (एनएमए) के अध्यक्ष और भारतीय जनता पार्टी नेता तरुण विजय ने कहा कि कुतुब मीनार परिसर में ‘‘अपमानजनक’’ तरीके से रखी गई गणेश मूर्तियों को या तो हटा दिया जाना चाहिए या उन्हें ‘‘सम्मानपूर्वक’’ स्थापित किया जाना चाहिए। पूर्व सांसद विजय ने कहा कि उन्होंने एक साल से भी अधिक समय पहले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के समक्ष इस मुद्दे को उठाया था, लेकिन अभी तक उनके पत्र का कोई उत्तर नहीं मिला है।  

विष्णु मंदिर के स्थल पर किया गया निर्माण

विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने भी दावा किया कि कुतुब मीनार पहले एक विष्णु स्तंभ था, बाद में इसके कुछ हिस्सों का एक मुस्लिम शासक द्वारा पुनर्निर्माण किया गया और इसका नाम बदलकर कुव्वत-उल-इस्लाम कर दिया गया। विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने दावा किया कि 73 मीटर ऊंची संरचना भगवान विष्णु के मंदिर पर बनाई गई थी और उक्त मंदिर को एक हिंदू शासक के समय में निर्मित किया गया था। बंसल ने दावा किया, ‘‘जब मुस्लिम शासक आया तो उसके कुछ हिस्सों को 27 हिंदू-जैन मंदिरों को ध्वस्त करने के बाद प्राप्त सामग्री के साथ पुनर्निर्मित किया गया, और इसका नाम बदलकर कुव्वत-उल-इस्लाम कर दिया गया।’’ उन्होंने दावा किया कि मुस्लिम शासकों ने कुछ ऊपरी मंजिलों के पुनर्निर्माण के कई प्रयास किए, जिन्हें उन्होंने क्षतिग्रस्त किया था, लेकिन वे ऐसा नहीं कर सके। उन्होंने दावा किया, ‘‘मीनार की पहली तीन मंजिलों की संरचना और ऊपर की ओर शेष मंजिलों की संरचना में स्पष्ट अंतर देखा जा सकता है। इन मंजिलों को उनके द्वारा अधिरोपित किया गया था क्योंकि वे (मुस्लिम शासक) सिर्फ इस्लाम के प्रभुत्व का प्रदर्शन करना चाहते थे।’’ बसंल ने दावा किया, ‘‘यह वास्तव में विष्णु मंदिर पर बना एक विष्णु स्तंभ था।  

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एएसआई का क्या है कहना 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) का कहना है कि विवाद नया नहीं है। हालांकि इसका परीक्षण किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर कुतुबमीनार के अंदर मस्जिद के बाहर बोर्ड पर साफ-साफ लिखने का दावा है कि 27 हिन्दू और जैन धर्म के मंदिरों को तोड़कर इस मस्जिद का निर्माण किया गया है। ऐतिहासिक सबूतों के साथ-साथ कुतुबमीनार में मौजूद हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां भी इस दावे को स्थापित करती हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक बी आर मणि ने आगाह किया कि परिसर में संरचनाओं के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ के परिणामस्वरूप 1993 में यूनेस्को द्वारा मिला विश्व धरोहर का दर्जा रद्द कर दिया जाएगा। हालांकि, मणि ने कहा कि यह एक तथ्य है कि 27 हिंदू मंदिरों को उस जगह पर ध्वस्त कर दिया गया था और उनके अवशेषों का इस्तेमाल कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद और कुतुब मीनार के निर्माण में भी किया गया था, लेकिन इन मंदिरों के पुनर्निर्माण की मांग ‘‘बेमानी’’ है। 

कुतुबमीनार से जुड़ी खास बातें

इस मीनार की खास बात यह है कि कुतुबमीनार की मंजिलों का निर्माण अलग-अलग शासकों द्धारा करवाया गया है। 1193 ईसवी में दिल्ली के पहले मुस्लिम एवं गुलाम वंश के शासक कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा कुतुबमीनार का निर्माण काम शुरु करवाया गया था। उन्होंने कुतुबमीनार की नींव रख सिर्फ इसका बेसमेंट और पहली मंजिल बनवाई थी। कुतुबुद्धीन ऐबक के शासनकाल में इस भव्य इमारत का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका था, जिसके बाद कुतुब मीनार की इमारत का निर्माण दिल्ली के सुल्तान एवं कुतुब-उद-दिन ऐबक के उत्तराधिकारी और पोते इल्तुमिश ने करवाया था, उन्होंने इस ऐतिहासिक इमारत मीनार की तीन और मंजिलें बनवाईं थी। जबकि, साल 1368 ईसवी में एशिया की इस सबसे ऊंची मीनार की पांचवी और अंतिम मंजिल का निर्माण फिरोज शाह तुगलक के द्धारा करवाया गया थी। इस भव्य मीनार के निर्माण में लाल बलुआ पत्थर और मार्बल का इस्तेमाल किया गया है, जिसमें अंदर गोल करीब 379 सीढ़ियां हैं।

 अदालत में कुतुबमीनार विवाद

दिसंबर 2020 में दिल्ली के साकेत कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई, जिसमें कुतुब मीनार परिसर में बनी क़ुव्वत उल इस्लाम मस्जिद पर दावा ठोका गया। वकील हरिशंकर जैन की तरफ से दाखिल इस याचिका पर दिल्ली के साकेत कोर्ट में सुनवाई भी हुई। याचिकाकर्ता ने कोर्ट को इतिहास से पर्दा हटाते हुए बताया कि दिल्ली के पहले मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक की तरफ से 1192 में क़ुव्वत उल इस्लाम मस्जिद बनवाई गई, लेकिन इस मस्जिद में मुसलमानों ने कभी नमाज नहीं पढ़ी। याचिकाकर्ता ने कहा कि इसकी वजह यह थी कि ये मस्जिद मंदिरों की सामग्री से बनी इमारत के खंभों, मेहराबों, दीवार और छत पर जगह-जगह हिंदू-देवी देवताओं की मूर्तियां थीं। कुतुब मीनार परिसर में बनी इस मस्जिद में उन मूर्तियों और धार्मिक प्रतीकों को आज भी देखा जा सकता है। याचिका में सिलसिलेवार ढंग से बताया गया कि इतिहास के प्रसिद्ध गणितज्ञ वराहमिहिर ने ग्रहों की गति के अध्ययन के लिए विशाल स्तंभ का निर्माण करवाया जहां फिलहाल कुतुब मीनार परिसर है। इस स्तम्भ को ध्रुव स्तंभ या मेरु स्तंभ कहा जाता था. मुस्लिम शासकों के दौर में इसे कुतुब मीनार नाम दे दिया गया। याचिका के मुताबिक, इसी परिसर में 27 नक्षत्रों के प्रतीक के तौर पर 27 मंदिर थे। इनमें जैन तीर्थंकरों के साथ भगवान विष्णु, शिव, गणेश के मंदिर थे. जिन्हें तोड़कर इस मस्जिद को बनाया गया। भारतीय पुरातत्व सर्वे का बोर्ड भी यही बताता है कि उसे 27 हिंदू-जैन मंदिरों को तोड़कर बनाया गया है। फरवरी 2022 में कोर्ट ने कुतुब मीनार परिसर में 27 मंदिरों के होने के दावे पर दिल्ली स्थित साकेत जिला अदालत ने मंगलवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। याचिका पर अगली सुनवाई 11 मई को होगी। 

-अभिनय आकाश 

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