चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रारम्भ होता है हिंदू नववर्ष

By मृत्युंजय दीक्षित | Apr 02, 2022

हम सामान्य रूप से एक जनवरी को बड़ी धूमधाम से नववर्ष मनाते हैं लेकिन हिंदूधर्म का नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रारम्भ होता है। हिंदी पंचांग, ज्योतिष और धार्मिक एवं सामाजिक आधार पर भी इस तिथि और चैत्र माह का विशेष महत्व है। वैज्ञानिक मान्यता यह है कि हिंदू पंचांग व कालगणना अधिक वैज्ञानिक व प्राचीन है। साथ ही यह दिन अनेक ऐतिहासिक पलों और कई घटनाओं को याद करने का दिन है।   

 

भारतीय ज्योतिष विज्ञान के अनुसार सृष्टि के आरम्भ से अब तक 1 अरब 95 करोड़ 58 लाख 85 हजार 99 वर्ष से अधिक बीत चुके हैं। आधुनिक वैज्ञानिक भी सृष्टि की उत्पत्ति का समय एक अरब वर्ष से अधिक का बता रहे हैं। भारत में कई प्रकार से कालगणना की जाती है। युगाब्द (कलियुग का प्रारंभ), श्रीकृष्ण संवत्, विक्रमी संवत, शक संवत् आदि।

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वर्ष प्रतिपदा का दिन ऋतु परिवर्तन का भी प्रतीक है। इस समय चारों ओर पीले पुष्पों की सुगंध भरी होती है, नयी फसलें भी पककर तैयार हो जाती हैं जिसके कारण ग्रामीण परिवेश में नयी खुशियों और नवजीवन का संचार होता है। नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने का शुभ समय चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ही होता है। कहा जाता है कि इसी दिन सूर्योदय से ब्रहमा जी ने जगत् की रचना प्रारम्भ की। 2078 वर्ष पहले समाट विक्रमादित्य ने अपना राज्य स्थापित किया था। जिनके नाम पर विक्रमी सम्वत् आरम्भ हुआ, कहा जाता है कि उनके राज्य में न तो कोई चोर था और नही कोई भिखारी। इसी दिन लंका विजय करके अयोध्या वापस आने पर प्रभु श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ था अतः यह दिन श्रीराम के राज्याभिषेक दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना करी थी। सिंध प्रांत के समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल भी इसी दिन प्रकट हुये अतः यह दिन सिंधी समाज बड़े ही उत्साह के साथ मनाता है। पूरे देशभर में सांस्कृतिक समारोहों का आयोजन किया जाता है। झांकियां आदि निकाली जाती है। विक्रमादित्य की भांति उनके पौत्र शालिवाहन ने हूणों को पराजित करके दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने के लिये शालिवाहन संवत्सर का प्रारम्भ किया। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के ही दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा़ केशवराम बलिराम हेडगेवार का जन्म हुआ था।

 

हिंदू नववर्ष व अंग्रेजी नववर्ष मनाने की पद्धति में बड़ा ही अंतर है। इस दिन जहां हिंदू घरों में नवरात्रि के प्रारम्भ के अवसर पर कलश स्थापाना की जाती है घरों में पताका ध्वज आदि लगाये जाते हैं तथा पूरा नववर्ष सफलतापूर्वक बीते इसके लिए अपने इष्ट, गुरु, माता-पिता सहित सभी बड़ों का आशीर्वाद लिया जाता है। जबकि अंग्रेजी नववर्ष पूरे विश्व में हुड़दंग का दिन होता है। हिंदू नववर्ष  की शुरूआत में ही मां दुर्गा के नवरूपों के आराधना के रूप में महिलाओं के सम्मान की बात सिखायी जाती है जबकि अंग्रेजी नववर्ष में नारी शक्ति का उपयोग मनोरंजन प्रधान वस्तु के रूप में करता है।

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चैत्र माह के हर दिन का अपना अलग ही विशेष महत्व है। शुक्लपक्ष में अधिकांश देवी देवताओं के पूजने व उन्हें याद करने का दिन निर्धारित है। शुक्ल पक्ष की तृतीया को उमा शिव की पूजा की जाती है, वहीं चतुर्थी तिथि को गणेश जी की। पंचमी तिथि को लक्ष्मी जी तथा नागपूजा की जाती है। शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को स्वमी कार्तिकेय की पूजा की जाती है। सप्तमी को सूर्यपूजन का विधान है। अष्टमी के दिन मां दुर्गा की पूजन और ब्रहमपुत्र नदी में स्नान करने का अपना अलग ही महत्व है इस दिन असोम में ब्रहमपुत्र नदी के घाटों पर स्नानार्थियों की भारी भीड़ उमड़ती है। नवमी के दिन भद्रकाली की पूजा की जाती है।

ठोस गणितीय और वैज्ञानिक कल गणना पद्धति पर आधारित हिन्दू नववर्ष हमारी पुरातन संस्कृति का सार है आज जिसका प्रयोग मात्र धार्मिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र तक ही सीमित रह गया है। आवश्यकता इस बात की है कि हम इसे दैनिक जीवन में भी अपनाएं और धूम धाम से शास्त्रीय विधान के साथ अपना नववर्ष मनाएं।


- मृत्युंजय दीक्षित

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