एल.बी. नगर के डी मार्ट शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के पास बने फ्लाइ ओवर पर बाइक चलाने का मजा ही कुछ और है। एक समय था जब इस फ्लाइ ओवर के न बनने से ट्राफिक के चलते बाइक के साथ मेरा भी कचूमर निकल जाता था। आधा पेट्रोल तो सिग्नल पार करने में लग जाता था। ऊपर से थकान अलग। एल.बी. नगर से वनस्थलीपुरम चेकपोस्ट जाने के लिए फ्लाइ ओवर पर चढ़ना जरूरी था। बाइक लेकर फ्लाइ ओवर पर दौड़ाते समय नीचे की ओर देखने पर एक अलग तरह की खुशी मिलती थी। ऊँचाई से ढलान की ओर देखने का मजा ही कुछ होता है। इसी क्रम में मेरी नज़र एक बहुत बड़ी बिल्डिंग पर पड़ी।
पिछले कई वर्षों से देख रहा हूँ कि उसका निर्माण अधूरा ही है। जो भी हो इतनी बड़ी बिल्डिंग का अधूरा रूप देखने मात्र से मेरी आँखें चौंधिया जाती थीं। जब कोई इतनी बड़ी बिल्डिंग बना रहा है तो हो न हो आने वाले दिनों में मेरी जेब से पैसे जरूर वसूलेगा। मेरे मन में रह-रह कर तरह-तरह के ख्याल आने लगे कि वह किस तरह पैसे वसूलेगा। उसमें सिनेमा हॉल, शॉपिंग कॉम्पलेक्स, खाने-पीने की दुकानें खुलेंगी तब मैं भी तो जाऊँगा! यह सब सोच-सोच कर मेरा मन कभी उसमें सिनेमा देखने के बहाने तो कभी कपड़ों की शॉपिंग के नाम पर भटकने लगा। कभी ऐसा लगता कि मानो उसे मैंने अभी से पोस्ट डेटेड चेक दे दिये हों।
कुछ देर बाद इसी घटना का जिक्र अपने मित्र से किया। उसे उस बिल्डिंग के बारे में बताया। मैं आपको बता दूँ कि मेरा मित्र भौतिक रूप में दिखायी नहीं देता। वह सिर्फ मेरा खयाली मित्र है। मैं उससे अपनी सारी बाते साझा करता हूँ। हो सकता है कि यह आपको कोई मानसिक बीमारी लगे। अब है तो है। इसे यूँ बदल तो नहीं सकता। इसीलिए मैं कभी अकेला महसूस नहीं करता।
मैंने अपने काल्पनिक मित्र से कहा – देखा न! मेरे जेब के चंद पैसे किस तरह से उससे बिल्डिंग बनवाने पर मजबूर कर रहे हैं। काल्पनिक मित्र भी कहां कम था। उसने तुरंत पलट कर पूछा– इस तरह सोचने से तुम्हें क्या मिलता है? मैंने कहा– शांति! यदि मैं केवल एक तरफा सोचूँगा तो मुझमें तनाव उत्पन्न होगा। इसलिए दोतरफा सोचता हूँ। इससे तनाव की कोई संभावना ही नहीं बचती। यह कला मैंने जीवन भर शांति प्राप्त करने के लिए सीखी है।
-डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त'