आज खुश तो बहुत होगे तुम। आँसू बहाने की आजादी जो मिली है। खुशनसीब होते हैं वे जिन्हें मौक-बेमौके आँसू बहाने का हुनर हासिल हो जाता है। यही तो आजादी है। आँखों के बाँध से आँसू की धारा कब बहाना है, आजादी को समझने वाले खूब जानते हैं। ऑक्सीजन की कमी से मरने वाले लोगों को झुठलाया जाता है, उस समय आँसू की एक बूँद भी नहीं बहती। यही तो आजादी है। आजादी के नाम पर जनता जनार्दन के पवित्र मंदिर संसद में खड़े-खड़े झूठ बोलते समय जिंदा मक्खी निगल जाना कोई आपसे सीखे। ऑस्कर विजेताओं को पछाड़ने वाली आपकी अभिनय क्षमता को देखकर लगता है शायद गंगा में तैरती लाशों की तस्वीरें भारत की नहीं उगांडा की हों। सुना था जादू करने वाले सड़क किनारे नुक्कड़ों पर तमाशा दिखाते हैं। मैं सलाम करता हूँ आपके तमाशे को। आप जैसे तमाशा करने वाले और हम जैसे तमाशबीन इस दुनिया में कहीं नहीं होंगे।
आज खुश तो बहुत होगे तुम। बहुत खुश होगे तुम...बहुत ख़ुश होगे कि आज मैं...यहां आया...लेकिन तुम जानते हो कि जिस वक़्त मैं यहां खड़ा हूं...वे किसान जो नौ महीने से धूप, बरसात और सर्दी की परवाह किए बिना अपने अधिकारों की लडाई लड़ रहे हैं। उन्होंने कौन-सा तुम्हारा राजपाट माँग लिया जो उनके मरने पर संसद में एक बूँद आँसू बहाना तो दूर दो मिनट का मौन नहीं रख सकते थे। जानता हूँ तुम्हें आँसू बहाने की आजादी जो मिली है। तुम अच्छी तरह से जानते हो कि आँसू कब और कहाँ बहाना है।
क्या क़सूर है उनका, कौन-सा पाप, कौनसा जुर्म किया है उन्होंने? क्या उनका जुर्म ये है कि वो आजाद देश में गुलामगिरी करने से मुकर रहे हैं। जीतने पर राष्ट्रवाद और हारने पर देशद्रोही का तमगा देने की जो प्रथा चल रही है, वह आजादी के नाम पर गुलामी की अनुशंसा है। संसद के कामकाज में गतिरोध का हवाला देकर आँसू बहाने वाले ड्रामेबाजों मैं तुम्हें सलाम करता हूँ। तुम्हारी आजादी की होशियारी तुम्हे मुबारक हो। किसी बलात्कार पीडिता का घुट-घुट कर मरना, बेरोजगारी के चलते घर-परिवार पर बोझ बनने वाले युवाओं का आत्महत्या करना, देश का पेट भरने वाला खुद भूखा सोकर मर जाए इससे बड़ा अभिशाप हमारी आजादी के लिए क्या हो सकता है? फिर भी खुश तो बहुत होगे तुम। मौक-बेमौके आँसू बहाने का हुनर जो मिला है तुम्हें। यही तो आजादी है। आजादी मुबारक हो तुमको।
-डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’
(हिंदी अकादमी, तेलंगाना सरकार से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)