By रेनू तिवारी | Feb 18, 2022
बेंगलुरु। कुछ समय पहले ही योगी आदित्यनाथ ने अपने एक बयान में कहा था कि कोई भी मुस्लिम महिला अपनी इच्छा से हिजाब नहीं पहनती है। इस पर कई विपक्षी नेताओं ने सवाल भी किया था। हिजाब विवाद पर सियासत तेज है कर्नाटक सरकार ने शुक्रवार को उच्च न्यायालय के समक्ष तर्क दिया कि हिजाब इस्लाम की एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है और इसके उपयोग को रोकना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन नहीं है, जो धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है। महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने कहा कि सरकार ने एक स्टैंड लिया है कि हिजाब पहनना इस्लाम के तहत एक आवश्यक प्रथा नहीं है। एडवोकेट नवदगी ने कहा, "मेरा पहला निवेदन यह है कि आदेश शिक्षा अधिनियम के अनुरूप है। दूसरा अधिक ठोस तर्क है कि हिजाब एक अनिवार्य हिस्सा है। हमने यह स्टैंड लिया है कि हिजाब पहनना आवश्यक धार्मिक अभ्यास के अंतर्गत नहीं आता है। इस्लाम का। तीसरा यह है कि हिजाब पहनने के अधिकार का पता अनुच्छेद 19 (1) (ए) से लगाया जा सकता है। प्रस्तुत है कि यह ऐसा नहीं करता है।
नहीं थम रहा हिजाब पर विवाद
कर्नाटक सरकार ने शुक्रवार को उच्च न्यायालय के सामने कहा कि हिजाब इस्लाम की आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है और इसका इस्तेमाल रोकने पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन नहीं होता। गौरतलब है कि अनुच्छेद 25 धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
कोर्ट में जारी है हिजाब मामले पर सुनवायी
र्नाटक के महाधिवक्ता (एजी) प्रभुलिंग नवदगी ने न्यायमूर्ति ऋतुराज अवस्थी, न्यायमूर्ति जे. एम. काजी और न्यायमूर्ति कृष्ण एम दीक्षित की पीठ से कहा, “हमने यह रुख अपनाया है कि हिजाब पहनना इस्लाम का आवश्यक धार्मिक अंग नहीं है।” कुछ मुस्लिम लड़कियों ने आरोप लगाया था कि कर्नाटक सरकार द्वारा हिजाब या भगवा स्कार्फ पहनने पर रोक लगाने के पांच फरवरी केआदेश से संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन होता है। महाधिवक्ता ने इस आरोप का भी खंडन किया।
क्या हिजाब पर पाबंदी करती है मौलिक अधिकार का हनन?
अनुच्छेद 25 भारत के नागरिकों को अंतःकरण की और धर्म की अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है। नवदगी ने दलील दी कि सरकार के आदेश से संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन नहीं होता। यह अनुच्छेद भारतीय नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। महाधिवक्ता ने यह भी कहा कि राज्य सरकार का पांच फरवरी का आदेश कानून सम्मत है और उसमें आपत्ति करने जैसी कोई चीज नहीं है।