Gyan Ganga: वीर अंगद के किन वचनों को सुनकर रावण आवेश में आ गया था?

By सुखी भारती | Jul 04, 2023

रावण के साथ वीर अंगद ने माथा भिड़ा रखा है। उसे समझाना तो ऐसे था, मानो सौ कल्पों तक भी पत्थर पर गंगा जल डालते रहें, और तब भी वह रत्ती भर भी नरम न पड़े। लेकिन मुझे लगता है, कि वीर अंगद रावण को समझाना ही नहीं चाह रहे। बल्कि उसे केवल लताड़ना चाह रहे हैं। कारण कि उन्होंने देख लिया, कि रावण के तिलों में तेल नहीं है। वीर अंगद को लगता है, कि जिस रावण को, श्रीहनुमान जी जैसे संत शिरोमणि नहीं समझा पाये, उसे मैं भला कहाँ से समझा पाऊँगा। रावण को श्रीराम जी तो कुछ बोलेंगे नहीं। कारण कि क्या पता, श्रीराम जी को कब रावण पर भी दया भाव आ जाये। तो क्यों न रावण को खरी-खोटी सुनाने का यह शुभ कार्य हम ही कर डालें। श्रीहनुमान जी ने तो रावण की लंका को अग्नि की भेंट चढ़ाया था। क्यों न हम, रावण के हृदय को ही, अग्नि की भेंट चढ़ा दें। और यह तभी संभव है, कि रावण को उसी की सभा में, उसके वास्तविक मलिन चरित्र से परिचित कराया जाये। लेकिन रावण इतना निर्लज्ज है, कि तब भी वह केवल अपने ही बल का बखान कर रहा है। वीर अंगद जी ने कहा-


‘सेन सहित तव मान मथि बन उजारि पुर जारि।

कस रे सठ हनुमान कपि गयउ जो तव सुत मारि।।’


वीर अंगद बोले, कि हे रावण! सेना सहित तेरा मान मथकर अशोक वन को उजाड़कर, नगर को जलाकर और तेरे पुत्र को मारकर जो लौट गए, और तू उनका कुछ भी न बिगाड़ पाया। ऐसे में भी तू क्या उन श्रीहनुमान जी को केवल बंदर ही मान रहा है? क्यों तू स्वयं को भ्रम में रखने का प्रयास कर रहा है? मेरी मान चतुराई छोड़, और कृपा के सागर श्रीराम जी का भजन कर। यही तेरे लिए शुभ होगा। नहीं तो, अरे दुष्ट! यदि तू श्रीराम जी का बैरी हुआ, तो तुझे ब्रह्मा और रुद्र भी नहीं बचा पायेंगे। रे मुढ़! व्यर्थ गाल न मार। श्रीराम जी के साथ बैर करने पर तेरा ऐसा हाल होगा, कि तेरे जितने भी सिर हैं न, उन सिरों को श्रीराम जी काट डालेंगे, और उन सिरों से सभी वानर गेंद की भाँति चौगान खेलेंगे। तब तेरा यह गाल बजाना क्या काम आयेगा?

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वीर अंगद के यह वचन सुन कर, रावण बहुत अधिक जल उठा। मानो जलती हुई प्रचण्ड अग्नि में घी डल गया हो। रावण बोला, कि अरे मूर्ख वानर! तू नहीं जानता, कि कुंभकर्ण मेरा ऐसा भाई है, कि उसके बल का क्या ही कहना। इन्द्र का शत्रु सुप्रसिद्ध मेघनाद मेरा पुत्र है। और मेरा पराक्रम तो तूने सुना नहीं, कि मैंने संपूर्ण जड़-चेतन जगत को जीत लिया है। अरे दुष्ट! वानरों की सहायता जोड़कर राम ने समुद्र बाँध लिया, बस, यही उनकी प्रभुता है? अरे पगले! समुद्र को तो अनेकों पक्षी भी लाँघ जाते हैं। पर इसी से वे सभी शूरवीर नहीं हो जाते। अरे मूर्ख वानर! सुन, मेरा एक-एक भुजा रूपी समुद्र बल रूपी जल से पूर्ण है। जिसमें बहुत से शूरवीर देवता और मनुष्य डूब चुके हैं। बता कौन ऐसा शूरवीर है, जो मेरे इन अथाह और अपार बीस समुद्रों का पार पा जाएगा? अरे मूर्ख मैंने दिक्पालों तक से जल भरवाया है। यदि तेरा मालिक संग्राम में लड़ने वाला योद्धा है, तो फिर क्यों वह बार-बार अपने दूत भेजता है? अपने शत्रु से प्रीति करते हुए उसे लाज नहीं आती? हे वानर! कैलास का मथन करने वाली मेरी इन भुजाओं को देख, फिर तू अपने मालिक की सराहना करना। तू यह क्यों नहीं देखता, कि मुझ रावण के समान शूरवीर कौन है? जिसने अपने हाथों से सिर काट-काट कर अत्यंत हर्ष के साथ, उन्हें अग्नि में होम दिया। स्वयं गौरीपति शिवजी इस बात के साक्षी हैं। एक बात तो मैंने तुम्हें बताई ही नहीं। वह यह, कि जिस समय मेरे सस्तक अग्नि कुण्ड में जल रहे थे, तो मेरे लिलाटों पर, मैंने भी विधाता के लिखे यह अक्षर देखे थे, कि मेरी मुत्यु मनुष्य के हाथ से लिखी है। विधाता की ऐसी असत्य वाणी देख मुझे हँसी आ गई थी। उस बात को समझकर भी मेरे में तनिक भी भय नहीं है। कारण कि मुझे पता है, कि ब्रह्मा बहुत अधिक बूढ़ा हो गया है, जिस कारण अत्यधिक आयु के प्रभाव से, भ्रम वश उसने ऐसा लिख दिया है। और एक तू है, कि सारी लज्जा व मर्यादा छोड़ कर, बार-बार मेरे शत्रु का बल कहता है-


‘सोउ मन समुझि त्रस मोरें।

लिखा बिरंचि जरठ मति भोरें।।

आन बरी बल सठ मम आगें।

पुनि पुनि कहसि लाज पति त्यागें।।’


रावण के ऐसे वचन सुन कर अंगद ने मान लिया, कि रावण की बुद्धि पूर्णतः कीचड़ में सन कर कुबुद्धि में परिर्वतित हो चुकी है। आगे वीर अंगद रावण को क्या कहते हैं, जानेंगे अगले अंक में---(क्रमशः)---जय श्रीराम।


- सुखी भारती

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