नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन का हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। एक नए अध्ययन ने चेताया है कि चरम जलवायु परिवर्तन के परिदृश्य में सतलज नदी घाटी के ग्लेशियरों में से 55 प्रतिशत 2050 तक और 97 प्रतिशत 2090 तक तक लुप्त हो सकते हैं। इससे भाखड़ा बांध सहित सिंचाई और बिजली की कई परियोजनाओं के लिए पानी की उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। सतलज नदी घाटी में 1426 वर्ग किलोमीटर में फैले क्षेत्र में छोटे-बड़े कुल 2026 ग्लेशियर हैं। जलवायु परिवर्तन का सबसे पहले प्रभाव छोटे ग्लेशियरों पर पड़ेगा, वे तेज़ी से पिघलेंगे। इस नए अध्ययन से यह निकलकर आया है कि एक वर्ग किलोमीटर से कम क्षेत्रफल वाले ग्लेशियर वर्ष 2050 तक 62 प्रतिशत तक लुप्त हो जायेंगे।
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सतलज नदी घाटी हिमालय क्षेत्र की दर्जनों घाटियों में से एक है जिसमें हजारों ग्लेशियर हैं । कुछ ग्लेशियर धीरे-धीरे सिकुड़ रहे हैं जबकि कुछ अब तक अप्रभावित हैं। सतलज नदी के वार्षिक प्रवाह का लगभग आधा हिस्सा ग्लेशियरों के पिंघलने से आता है और हिमाचल प्रदेश के भाखड़ा बांध में जा रहे जल का 80 प्रतिशत इसी नदी से आता है। शोधकर्ताओं ने सतलज घाटी में ग्लेशियरों में उपस्थित पानी का अनुमान लगाने के लिए विभिन्न तकनीकों का इस्तेमाल किया और फिर जलवायु परिवर्तन के पूर्वानुमानों के डेटा को कंप्यूटर मॉडलों द्वारा यह देखने के लिए जांचा कि तापमान वृद्धि का ग्लेशियरों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। यह अध्ययन भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर के दिवेचा सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है, और परिणाम शोध पत्रिका ‘करेंट साइंस’ में प्रकाशित किये गए हैं ।
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सतलज के ग्लेशियरों में संग्रहित पानी की मात्रा का आकलन के लिए, शोधकर्ताओं ने 'वेलोसिटी-स्लोप' और 'वॉल्यूम-एरिया' विधियों का इस्तेमाल किया। इस अध्ययन में एक प्रमुख मापदंड या नियामक आता है जिसे ‘इक्विलिब्रियम लाइन एल्टीट्यूड’ (ईएलए) कहा जाता है। यह ये दर्शाता है कि कितनी बर्फ पिंघल रही और कितनी नयी बर्फ जमा हो रही है। इस गणना के लिए सतलज नदी घाटी में काजा और रकचाम स्थित मौसम विभाग के केंद्रों के साथ-साथ अन्य स्रोतों से तापमान और वर्षा के डेटा का उपयोग किया गया। लैंडसैट उपग्रह के डेटा का उपयोग बर्फ पड़ने की नयी सीमा-रेखाओं और वर्षा होने की दर का पता लगाने के लिए किया गया था। विश्लेषण से ज्ञात हुआ कि सतलज नदी घाटी में ग्लेशियरों के रूप में कुल 69 घन किलोमीटर पानी था। इसकी लगभग 56 प्रतिशत मात्रा 5 वर्ग किलोमीटर से अधिक बड़े ग्लेशियरों में संग्रहित है और यह 517 वर्ग किमी० के क्षेत्र में फैले हैं । सबसे बड़ा ग्लेशियर तिब्बत में स्थित है और 66.8 वर्ग किमी० क्षेत्र में फैला है।इसमें 6.5 गीगाटन बर्फ है। अधिकांश ग्लेशियरों में बर्फ 0.1 गीगाटन से कम होती है। इस नदी घाटी से 1984 और 2013 के बीच 21 प्रतिशत या 16.4 गीगाटन बर्फ नष्ट हो चुकी है।
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जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों के जल भंडार के भविष्य में प्रभावित होने की संभावना है। उत्तरी पश्चिमी हिमालय में सतह के वायु तापमान में वृद्धि 1991–2015 के दौरान 0.65 अंश हुयी थी - जो वैश्विक वृद्धि की दर 0.47 अंश से कहीं अधिक है। भविष्य में तापमान में वृद्धि वर्तमान सदी में कितना कार्बन उत्सर्जन होता है इस पर निर्भर करेगी। शोधकर्ताओं ने 2090 तक जलवायु परिवर्तन के ग्लेशियरों पर प्रभाव का आकलन करने के लिए एक चरम मॉडल, ‘जीए फ़डीएल-सीएम3’, का उपयोग किया। उन्होंने पाया कि ग्लेशियर क्षेत्र में 33% (475 वर्ग किमी०) और 81% (1157 वर्ग किमी) की कमी क्रमशः 2050 और 2090 तक होगी। इस मॉडल के अनुसार, सतलज नदी घाटी में ग्लेशियरों का लगभग 55 प्रतिशत 2050 तक ग़ायब होने की संभावना है, और 2090 तक कुल ग्लेशियरों का केवल 3 प्रतिशत ही बचा रहेगा।
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“यदि तापमान 2090 तक 7.9 डिग्री बढ़ जाता है तो सतलज नदी घाटी में ग्लेशियरों के क्षेत्र का 81% समाप्त हो जाने की संभावना है। संख्यात्मक रूप से, ग्लेशियरों की कुल संख्या का 97 प्रतिशत गायब हो जाएगा। सबसे बड़ा नुकसान एक वर्ग किमी से कम क्षेत्र वाले ग्लेशियरों के लिए अनुमानित है। यह छोटे ग्लेशियरों के अल्प प्रतिक्रिया समय के कारण है, जो उन्हें जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील बनाते हैं,” अनुसंधान दल का नेतृत्व करने वाले डॉ० अनिल वी० कुलकर्णी ने इंडिया साइंस वायर को बताया। ग्लेशियरों के निरंतर पिंघलने से धीरे-धीरे धारा प्रवाह में कमी आएगी। ग्लेशियर के द्रव्यमान और क्षेत्र में बढ़ती कमी, भाखड़ा जलाशय में जाने वाले पानी को प्रभावित करेगी। "कम ऊंचाई पर स्थित छोटे ग्लेशियरों के गायब होने से सतलज नदी घाटी के निचले इलाकों में स्थित विभिन्न जलविद्युत परियोजनाओं के लिए पानी की समग्र उपलब्धता में बदलाव होगा, जिससे हिमालय क्षेत्र में छोटे समुदायों के लिए नई चुनौतियां उत्पन्न होंगी," शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे। इससे ग्लेशियर झील के फटने से बाढ़ जैसी आपदाओं की संभावनायें भी बढ़ जाएंगी।
[भाषांतरण: पीयूष पाण्डेय ]