By अनन्या मिश्रा | Apr 01, 2025
गुरु तेग बहादुर एक क्रांतिकारी युग पुरुष थे और वह 9वें सिख गुरु थे। गुरु तेग बहादुर ने धर्म की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया था। गुरु तेग बहादुर को 'हिंद की चादर' कहा जाता था। इसका अर्थ 'भारत की ढाल' होता है। बता दें कि इंसानियत के कल्याण के लिए गुरु तेग बहादुर ने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर गुरु तेग बहादुर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म
पंजाब के अमृतसर नगर में 01 अप्रैल 1621 को गुरु तेग बहादुर का जन्म हुआ था। उनके पिता सिखों के छठवें गुरु, गुरु हरगोविंद जी थे। बता दें कि 8वें गुरु हरकिशन की असमय मृत्यु के बाद गुरु तेग बहादुर को 9वां गुरु बनाया गया था। धर्म और मानवीय मूल्यों, आदर्शों और सिद्धांत की रक्षा के लिए गुरु तेग बहादुर ने कभी समझौता नहीं किया। उनके बचपन का नाम त्यागमल था और वह बचपन से ही उदार, संत स्वरूप, बहादुर और निर्भीक स्वभाव के थे।
उन्होंने गुरुबाणी, धर्मग्रंथों के साथ-साथ घुड़सवारी आदि की भी शिक्षा प्राप्त की थी। महज 14 साल की उम्र में गुरु तेग बहादुर ने पिता के साथ मुगलों के हमले के खिलाफ हुए युद्ध में अपनी वीरता का परिचय दिया था। उनकी वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम तेग बहादुर यानी की तलवार के धनी रख दिया।
मुगल के नापाक इरादों को किया नाकामयाब
गुरु तेग बहादुर जहां भी गए, लोगों ने उनसे प्रेरित होकर न सिर्फ नशे का त्याग किया बल्कि तंबाकू की खेती भी छोड़ दी। उन्होंने देश को दुष्टों के चुंगल से छुड़ाने के लिए जनमानस में विरोध की भावना भरकर कुर्बानियों के लिए तैयार किया। गुरु तेग बहादुर के समकालीन मुगल बादशाह औरंगजेब था। उसकी छवि कट्टर बादशाह के रूप में थी। औरंगजेब के शासनकाल में हिंदुओं का जबरन धर्म परिवर्तन कराया जा रहा था।
इसका सबसे ज्यादा शिकार कश्मीरी पंडित हो रहे थे। तब औरंगजेब से परेशान होकर कश्मीरी पंडितों का एक प्रतिनिधिमंडल गुरु तेग बहादुर साहिब की शरण में सहायता के लिए पहुंचा। तब गुरु तेज बहादुर ने कश्मीरी पंडितों को उनके धर्म की रक्षा का आश्वासन दिया। जिसके बाद गुरु तेग बहादुर ने खुले स्वर में औरंगजेब का विरोध किया और कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा की जिम्मेदारी अपने सिर पर ले ली। उनके इस कदम से औरंगजेब गुस्से से भर गया और उसने इसको गुरु तेग बहादुर की खुली चुनौती मान ली।
औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर को किया कैद
साल 1675 में गुरु तेग बहादुर अपने 5 सिखों के साथ आनंदपुर से दिल्ली के लिए चल पड़े। इस दौरान औरंगजेब ने उनको रास्ते में ही पकड़ लिया और 3-4 महीनों तक कैद में रखा और तमाम अत्याचार किए। औरंगजेब गुरु तेग बहादुर को इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर किया। दरअसल, औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर के सामने 3 शर्तें रखी थीं। जिसमें से पहली कलमा पढ़कर मुसलमान बनने की, चमत्कार दिखाने की या फिर मौत स्वीकार करने की। तब गुरु तेग बहादुर ने धर्म बदलने और चमत्कार दिखाने से मना कर दिया।
मृत्यु
दिल्ली के चांदनी चौक में 24 नवंबर 1675 को जल्लाद जलालदीन ने तलवार से गुरु तेग बहादुर का शीश धड़ से अलग कर दिया।