By अनन्या मिश्रा | Oct 07, 2024
आज ही के दिन यानी की 07 अक्तूबर पर गुरु गोबिंद सिंह जी का निधन हो गया था। गुरु गोबिंद सिंह सिखों के दसवें गुरु थे। उनका पूरा जीवन प्रेरणा से भरा था। वह त्याग और बलिदान की प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने बेहद कम उम्र में दर्जन भर से अधिक रचनाएं कर डाली थीं और गुरु गोबिंद सिंह ने ही खालसा पंथ की स्थापना की थी। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
गुरु गोबिंद सिंह की वीरता
गुरु गोबिंद सिंह पंजाबी, संस्कृत, फारसी, उर्दू और अरबी पर अच्छी पकड़ रखते थे। हालांकि वह स्वभाव के बेहद विनम्र थे, लेकिन हमले की स्थिति में वह कड़ा जवाब भी देते थे। वैसे तो उनकी वीरता के तमाम किस्से हैं, लेकिन जब गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की, तो इससे मुगल शासक औरंगजेब बहुत नाराज हुआ। उसने गुरु गोबिंद सिंह की गिरफ्तारी का आदेश दे दिया। लेकिन गुरु गोबिंद सिंह ने मुगल सेना को धूल चटा दी। जबकि सिख सैनिकों का जत्था मुगल सैनिकों की संख्या से कम था। लेकिन गुरु गोबिंद सिंह ने नेतृत्व और हौंसले ने उनको जीत दिलाई।
9 साल की उम्र में संभाला पद
बता दें कि गुरु गोबिंद सिंह के पिता और सिखों के नवें गुरु तेग बहादुर को मुगल शासक औरंगजेब ने मरवा दिया था। उस दौरान गुरु गोबिंद सिंह की उम्र महज 9 साल थी। पिता की हत्या के बाद उन्होंने गुरु की गद्दी संभाली और पूरी जिम्मेदारी उठाई। उन्होंने देश को पढ़ाई से जोड़ा। क्योंकि उनके पिता की हत्या मुस्लिम धर्म न अपनाने के कारण हुई थी। ऐसे में गुरु गोबिंद सिंह के दिमाग में गुस्सा और आक्रोश था।
हिंदुओं के धर्मरक्षक
गुरु गोबिंद सिंह पूरा जीवन सिखों के मार्गदर्शक बने रहे। इसके साथ ही वह हिंदुओं के भी धर्मरक्षक बनें। उनके द्वारा तय किए गए खालसा पंथ के नियमों को आज भी जवान फॉलो करते हैं। वैसे तो सिख पंथ की स्थापना करने वाले गुरु नानक देव जी से लेकर सभी 10 सिख गुरुओं की अपनी भूमिकाएं रही हैं। लेकिन गुरु गोबिंद सिंह जी उनमें सबसे अलग थे। उन्होंने खालसा महिमा, बचित्र नाटक, जफरनामा, चंडी द वार और जाप साहि जैसे अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथ लिख।
मुगलों ने धोखे से की हत्या
सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह एक ऐसे संत, लीडर और योद्धा थे, जिनकी तीन पीढ़ियों ने मुगलों से जंग की। मुगल शासक औरंगजेब कश्मीर में बड़े पैमाने पर हिंदुओं को मुस्लिम बनाने का काम कर रहा था। वहीं जो लोग मुस्लिम धर्म नहीं अपना रहे थे, उनकी हत्या कर दी जा रही थी। ऐसे में यह जानकारी मिलने पर गुरु गोबिंद सिंह का मन विचलित हो उठा और उन्होंने अपने पिता यानी की 9वें गुरु से इस मामले में हस्तक्षेप करने को कहा। जिसके बाद गुरु गोबिंद सिंह के पिता की हत्या कर दी गई।
गुरु गोविंद सिंह खुद योद्धा थे, साथ ही उन्होंने अपने बेटों को भी शस्त्र शिक्षा का ज्ञान दिया था। वहीं समय आने पर उन्होंने अपने बेटों को मुगलों से युद्ध करने के लिए भी भेजा। लेकिन मुगल शासक औरंगजेब ने उनके दो बेटों को दीवार में जिंदा चुनवा दिया। औरंगजेब की मृत्यु के बाद गुरु गोबिंद सिंह ने बहादुर शाह जफर को बादशाह बनने में मदद की। यह बाद अन्य मुगल शासकों को बहुत खटकी। ऐसे में नवाब वजीत खां ने अपने दो सिपाहियों से गुरु गोबिंद सिंह पर धोखे से हमला करवा दिया। वहीं 07 अक्तूबर 1708 में गुरु गोबिंद सिंह का निधन हो गया।