भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा स्थापित मानक एक विशेष चरण के बाद विदेशी बाजारों में उत्पादों के विस्तार के लिए आवश्यक होते हैं। भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा पहली बार ग्रासरूट नवाचार के लिए आधिकारिक मानक स्थापित किये गए हैं। वांकानेर, गुजरात के मनसुख भाई प्रजापति द्वारा विकसित मिट्टी से बने कूलिंग कैबिनेट मिट्टीकूल के लिए यह आधिकारिक ग्रासरूट मानक स्थापित किये गए हैं।
भारत सरकार के स्वायत्त निकाय विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) से सम्बद्ध नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन (एनआईएफ) द्वारा राष्ट्रपति भवन में आयोजित इनोवेशन स्कॉलर्स इन-रेसिडेंस कार्यक्रम में इस विचार को सामने रखा गया था। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा इस संबंध में जारी वक्तव्य के अनुसार बीआईएस ने इस अभिनव तकनीक का संज्ञान लिया और बाद में एनआईएफ के साथ मिलकर एक नया भारतीय मानक - आईएस 17693: 2022 'मिट्टी से बना गैर-इलेक्ट्रिक कूलिंग कैबिनेट' विकसित किया है।
नये मानक, प्राकृतिक रूप से काम करने वाले मिट्टी से बने रेफ्रिजरेटर, जो वाष्पीकरणीय शीतलन के सिद्धांत पर संचालित होता है, के कूलिंग कैबिनेट के निर्माण और प्रदर्शन को निर्दिष्ट करते हैं। इन कूलिंग कैबिनेट्स का उपयोग बिजली की आवश्यकता के बिना खराब होने वाले खाद्य पदार्थों को स्टोर करने के लिए किया जा सकता है। यह खाद्य पदार्थों को प्राकृतिक शीतलता प्रदान करता है ताकि वे अपनी गुणवत्ता खोये बिना ताजा बने रहें।
ये मानक 17 संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में से 06 लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बीआईएस के प्रयास में मदद करते हैं। इन लक्ष्यों में गरीबी उन्मूलन, खाद्य सुरक्षा, लैंगिक समानता, सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा, उद्योग, नवाचार एवं बुनियादी ढांचा, जिम्मेदार उपभोग एवं उत्पादन शामिल है।
बीआईएस मानक औपचारिक क्षेत्र के नवाचारों के साथ जमीनी स्तर पर नवाचारों को आगे बढ़ने में मदद कर सकते हैं। नवप्रवर्तन से प्राप्त होने वाले कुछ लाभों में व्यापार और वाणिज्य की सुविधा, कार्यप्रणाली में सुधार एवं उन्हें अधिक कुशल बनाना, लगातार कामकाज व गुणवत्ता बनाये रखने के लिए मार्गदर्शन, उत्पादों तथा सेवाओं की तुलना को सरल बनाना, और आगे तकनीकी विकास को बढ़ावा देना आदि शामिल हैं।
'मिट्टीकूल रेफ्रिजरेटर' का प्रभाव उल्लेखनीय रहा है, और बीआईएस मानकों को स्थापित करने के बाद यह आगे बढ़ने की ओर अग्रसर है। यह पहल मिट्टी के बर्तनों की संस्कृति, परंपरा और विरासत को पुनर्जीवित करने में प्रमुख भूमिका निभाने के साथ-साथ लोगों को अपनी जड़ों से जोड़ने, निर्धन समुदाय को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने, हरित विकल्प उपलब्ध कराकर पर्यावरण संरक्षण, और आर्थिक विकास व रोजगार सृजन में प्रभावी बतायी जा रही है।
(इंडिया साइंस वायर)