By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Dec 30, 2020
नयी दिल्ली। सरकार ने बुधवार को एमएसपी खरीद प्रणाली के बेहतर क्रियान्वयन पर एक समिति गठित करने की पेशकश की और विद्युत शुल्क पर प्रस्तावित कानूनों तथा पराली जलाने से संबंधित प्रावधानों को स्थगित रखने पर सहमति जताई, लेकिन किसान संगठनों के नेता पांच घंटे से अधिक समय तक चली छठे दौर की वार्ता में तीनों नए कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने की अपनी मुख्य मांग पर अड़े रहे। अब चार जनवरी को फिर से वार्ता होगी। बैठक के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि चार विषयों में से दो मुद्दों पर पारस्परिक सहमति के बाद 50 प्रतिशत समाधान हो गया है और शेष दो मुद्दों पर चार जनवरी को चर्चा होगी। तोमर ने कहा, ‘‘तीन कृषि कानूनों और एमएसपी पर चर्चा जारी है तथा चार जनवरी को अगले दौर की वार्ता में यह जारी रहेगी।’’
तोमर, रेलवे, वाणिज्य और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल तथा वाणिज्य राज्य मंत्री सोमप्रकाश ने यहां विज्ञान भवन में 41 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ वार्ता की। मंत्री जहां बैठक में भोजन विराम के दौरान किसान नेताओं के साथ लंगर में शामिल हुए, वहीं किसान संगठनों के प्रतिनिधि शाम के चाय विराम के दौरान सरकार द्वारा आयोजित जलपान कार्यक्रम में शामिल हुए। पंजाब किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष रुल्दू सिंह मनसा ने कहा कि सरकार एमएसपी खरीद पर कानूनी समर्थन देने को तैयार नहीं है और इसकी जगह उसने एमएसपी के उचित क्रियान्वयन पर समिति गठित करने की पेशकश की है।
उन्होंने कहा कि सरकार ने विद्युत संशोधन विधेयक को वापस लेने और पराली जलाने पर किसानों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई के प्रावधान को हटाने के लिए अध्यादेश में संशोधन करने की पेशकश की है। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने भी कहा कि सरकार प्रस्तावित विद्युत संशोधन विधेयक और पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण से संबंधित अध्यादेश को क्रियान्वित न करने पर सहमत हुई है। शुरू में दो घंटे तक चर्चा के बाद केंद्रीय मंत्री प्रदर्शनकारी किसानों के ‘लंगर’ में शामिल हुए। दोनों पक्षों के दोपहर भोज के लिए विराम लेने से कुछ देर पहले ‘लंगर भोजन’ एक वैन में बैठक स्थल, विज्ञान भवन पहुंचा।
आयोजन स्थल पर मौजूद सूत्रों ने बताया कि वार्ता में शामिल तीनों केंद्रीय मंत्री विराम के दौरान किसानों के साथ ‘लंगर’ में शामिल हुए। पिछली कुछ बैठकों में किसान नेता अपना खुद का दोपहर भोज, चाय और जलपान कार्यक्रम आयोजित करते रहे हैं और सरकार की जलपान तथा भोज की पेशकश को खारिज करते रहे हैं। इस तरह की एक बैठक में किसान नेताओं ने सिंघू बॉर्डर पर प्रदर्शन स्थल पर लंगर में मंत्रियों को भी आमंत्रित किया था। दोनों पक्षों ने शाम के समय एक और चाय विराम लिया। इस दौरान किसान संगठनों के नेताओं ने सरकार द्वारा आयोजित चाय स्वीकार की। चाय विराम के बाद वार्ता शुरू होने से पहले किसान नेताओं ने आयोजन स्थल पर ‘अरदास’ भी की।
बैठक से पहले वाणिज्य राज्य मंत्री सोमप्रकाश, जो खुद पंजाब से सांसद हैं, ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि यह निर्णायक बैठक होगी और सरकार चाहती है कि प्रदर्शनकारी किसान नए साल का जश्न मनाने के लिए अपने घरों को लौट जाएं। पूर्व में, तोमर ने भी कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि 2020 के समाप्त होने से पहले गतिरोध का समाधान निकल आएगा। बैठक के लिए आयोजन स्थल पर प्रवेश से पहले टिकैत ने कहा कि जब तक मांगें पूरी नहीं हो जातीं, किसान दिल्ली नहीं छोड़ेंगे और राजधानी की सीमाओं पर ही नए साल का जश्न मनाया जाएगा।
बैठक से पहले पंजाब के किसान नेता बलदेव सिंह सिरसा ने कहा, ‘‘हमारा कोई नया एजेंडा नहीं है। सरकार यह कहकर हमारी छवि खराब कर रही है कि किसान बातचीत के लिए नहीं आ रहे हैं। इसलिए हमने वार्ता के वास्ते तारीख दी।’’ केंद्रीय मंत्रियों और किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के बीच बैठक आज अपराह्न लगभग ढाई बजे शुरू हुई। केंद्र ने सितंबर में लागू तीनों नए कृषि कानूनों पर गतिरोध दूर करने के लिए ‘‘खुले मन’’ से ‘‘तार्किक समाधान’’ तक पहुंचने के लिए किसान यूनियनों को 30 दिसंबर को वार्ता के लिए आमंत्रित किया था।
‘संयुक्त किसान मोर्चा’ ने मंगलवार को अपने पत्र में कहा था कि एजेंडे में तीनों विवादित कानूनों को निरस्त करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कानूनी गारंटी देने के विषय को शामिल किया जाना चाहिए। छठे दौर की वार्ता नौ दिसंबर को ही होने वाली थी, लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और किसान यूनियनों के कुछ नेताओं के बीच इससे पहले हुई अनौपचारिक बातचीत में कोई नतीजा नहीं निकलने पर बैठक रद्द कर दी गई थी। शाह से मुलाकात के बाद सरकार ने किसान संगठनों को एक प्रस्ताव भेजा था जिसमें नए कानून में सात-आठ संशोधन करने और एमएसपी पर लिखित आश्वासन देने की बात कही गई थी। सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने से इनकार कर दिया था।
कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले एक महीने से भी ज्यादा समय से हजारों किसान राष्ट्रीय राजधानी की अलग-अलग सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदर्शन में ज्यादातर किसान पंजाब और हरियाणा के हैं। सरकार ने कहा है कि इन कानूनों से कृषि क्षेत्र में सुधार होगा और किसानों की आमदनी बढ़ेगी लेकिन प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों को आशंका है कि नए कानूनों से एमएसपी और मंडी की व्यवस्था ‘कमजोर’ होगी तथा किसान बड़े कारोबारी घरानों पर आश्रित हो जाएंगे।