Govatsa Dwadashi 2024: गोवत्स द्वादशी व्रत से होती है पुत्र सुख की प्राप्ति

By प्रज्ञा पांडेय | Oct 28, 2024

आज गोवत्स द्वादशी व्रत है, यह व्रत गौमाता को समर्पित है इसलिए इसे गोवत्स द्वादशी के नाम से जाता है। कई क्षेत्रों में यह वसु बारस या नंदिनी व्रत के नाम से भी मनाई जाती है तो आइए हम आपको गोवत्स द्वादशी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं। 


जानें गोवत्स द्वादशी के बारे में 

गोवत्स द्वादशी का व्रत मां एवं बच्चे के सम्बन्ध के महत्व को दर्शाता है। माता और संतान का रिश्ता बेहद खूबसूरत होता है। हर माता चाहती है उसकी संतान को लंबी आयु और सुखी जीवन की प्राप्ति हो। इसी कामना से कई महिलाएं गोवत्स द्वादशी का व्रत रखती हैं। पंडितों के अनुसार जो महिलाएं सच्चे मन से ये व्रत रखती हैं उनके संतान के जीवन में कभी कोई दुख नहीं आता। पुत्र प्राप्ति की चाह रखने वाली महिलाओं के लिए भी यह व्रत बेहद शुभ और फलदायी माना गया है। गोवत्स द्वादशी के दिन गाय माता और बछड़े की पूजा किए जाने का विधान बताया गया है। गोवत्स द्वादशी को वसुबारस भी कहा जाता है, इस त्योहार का हिंदू धर्म में बड़ा धार्मिक महत्व है। इस दिन को दिवाली उत्सव की शुरुआत का प्रतीक भी माना जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से महाराष्ट्र और गुजरात में मनाया जाता है। वहीं, उत्तर के क्षेत्रों में इसे गोवत्स द्वादशी के नाम से जाना जाता है। यह व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मानया जाता है, इस साल यह व्रत आज यानी 28 अक्टूबर 2024 को वसुबारस मनाया जा रहा है। इस दिन का उपवास रखने और पूजा-पाठ करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

इसे भी पढ़ें: Dhanteras 2024: 100 साल बाद 5 दुर्लभ योग में मनाई जायेगी धनतेरस

गोवत्स द्वादशी का है खास महत्व

पंडितों के अनुसार माताएं इस व्रत को अपनी संतान की लम्बी आयु और उनके संरक्षण के लिए रखती हैं। जो महिलाएं संतान-प्राप्ति का सुख भोगना चाहती हैं, वे इस दिन गोमाता और बछड़े की पूजा करती हैं, और इस दिन विधिपूर्वक व्रत का पालन करती हैं। यह व्रत और पूजन करने से अज्ञानतावश गाय पर किए अत्याचारों के पाप से भी मुक्ति मिलती है। हिन्दू संस्कृति में गौ अर्थात गाय कि महत्ता को इस बात से समझा जा सकता है, कि गाय में हर देवी-देवताओं का वास माना जाता है, इसीलिए गाय पूजनीय होती है। इस तरह गोवत्स द्वादशी गोमाता से मिलने वाले अनेक लाभों के लिए उनको आभार व्यक्त करने का शुभ अवसर है।


गोवत्स की पौराणिक कथा भी है रोचक

किसी समय में एक राजा हुआ करता था, जिसकी दो रानियां थी- सीता और गीता। उस राजा के पास एक भैंस और एक गाय थी। रानी सीता को भैंस अतिप्रिय थी, जबकि रानी गीता गाय को बहुत दुलार करती थी। कुछ समय बाद गाय को एक बछड़ा हुआ। एक दिन ईर्ष्यावश भैंस ने रानी सीता को गाय और उसके बछड़े के विरुद्ध कुछ बातें कही, जिनपर रानी ने विश्वास कर लिया और क्रोध में आकर बछड़े को मार दिया और उसे गेहूं के खेत में दबा दिया। संध्या समय जब राजा भोजन करने बैठा तो उसे अपने महल में चारों ओर केवल मांस और खून दिखाई देने लगा। राजा को परोसा हुआ भोजन भी मलीन हो गया और पूरे राज्य में खून की वर्षा होने लगी। राजा कुछ समझ पाते, उससे पहले ही एक आकाशवाणी हुई, जिससे राजा को रानी सीता की करतूत का पता चला।


राजा ने दुखी मन से उस आकाशवाणी से इस समस्या का हल पूछा। आकाशवाणी से आवाज आई कि कल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी है। इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने से और गाय और बछड़े की पूजा करने से वह मृत बछड़ा जीवित हो जाएगा और आपको इस पाप से भी मुक्ति मिले जाएगी। राजा ने ऐसा ही किया, जिससे वह बछड़ा जीवित हो गया। इसके बाद राजा ने पूरे राज्य में हर वर्ष गोवत्स द्वादशी का व्रत और पूजन करने की घोषणा की। मान्यताओं के अनुसार तब से यह पूजा और व्रत किया जा रहा है।


गोवत्स पूजा में करें इन नियमों का पालन 

इस दिन गौ माता की पूजा करें और उनके प्रति आभार व्यक्त करें। उन्हें नहलाएं उनके माथे पर सिन्दूर का टीका, पीले वस्त्र और फूलों की माला अर्पित करें। यदि आपके पास गाय नहीं है, तो पूजा के लिए गौशाला जा सकते हैं या मिट्टी की मूर्तियों का उपयोग कर सकते हैं। शाम की आरती करें और शाम के समय भी उनकी पूजा-पाठ करें। भोग के रूप में उन्हें अंकुरित मूंग और चने जरूर चढ़ाएं। भगवान कृष्ण भी गौ माता के प्रति अपार स्नेह रखते थे इसलिए उनका अपमान गलती से भी न करें। इस दिन महिलाएं अपने संतान के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए उपवास रखती हैं और गौ माता की प्रार्थना करती हैं।


जानें गोवत्स द्वादशी का शुभ मुहूर्त 

हिंदू पंचांग के अनुसार, अमृत काल सुबह 08 बजकर 12 मिनट से सुबह 10 बजे तक रहेगा। फिर विजय मुहूर्त दोपहर 01 बजकर 56 मिनट से 02 बजकर 41 मिनट तक रहेगा। इसके बाद गोधूलि मुहूर्त शाम 05 बजकर 39 मिनट से 06 बजकर 05 मिनट तक रहेगा। आप इस दौरान पूजा-पाठ व अन्य शुभ कार्य कर सकते हैं।


गोवत्स द्वादशी की महत्वता 

पंडितों के अनुसार गोवत्स द्वादशी का व्रत करने से पुत्र सुख की प्राप्ति होती है। वहीं जिन महिलाओं के पहले से ही पुत्र है उनके लिए भी ये व्रत शुभ फलदायी माना जाता है। कहते हैं इस व्रत को करने से पुत्रों को देवताओ का आशीर्वाद मिलता है और उन्हें सुख और समृद्धि मिलती हैं।


गोवत्स द्वादशी पर रंगोली का है खास महत्व 

गोवत्स द्वादशी दिवाली त्योहार की शुरुआत का प्रतीक है, इसलिए इस पवित्र दिन पर, लोग अपने- अपने घरों के प्रवेश द्वार पर रंगोली बनाते हैं। रंगोली बनाना एक महत्वपूर्ण रिवाज है, जो सकारात्मकता का प्रतीक भी मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है इस मौके पर रंगोली के लिए प्राकृतिक रंगों, चावल के आटे, फूलों और अन्य सामग्रियों का उपयोग किया जाता है। इनमें अक्सर कमल के फूल, गाय, मोर, या मां लक्ष्मी के चरण कमल जैसी पवित्र छवियों को बनाया जाता है।


- प्रज्ञा पाण्डेय

प्रमुख खबरें

IPL 2025: इन खिलाड़ियों को नहीं मिला कोई खरीददार, मेगा ऑक्शन में रहे अनसोल्ड

जिम्बाब्वे ने बड़ा उलटफेर कर पाकिस्तान को दी शिकस्त, 80 रन से जीता पहला वनडे

IPL 2025: सस्ते में निपटे ग्लेन मैक्सवेल, पंजाब किंग्स ने महज 4.2 करोड़ में खरीदा

IPL 2025 Auction: सनराइजर्स हैदराबाद ने ईशान किशन पर लगाया बड़ा दांव, 11.25 करोड़ में खरीदा