By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | May 09, 2020
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के शुरुआती प्रमुख नेताओं में से एक गोपाल कृष्ण गोखले राजनीतिक बदलाव के अलावा सामाजिक सुधारों के लिए भी प्रतिबद्ध थे और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उन्हें अपना गुरु माना था। गोखले के समय में कांग्रेस भारतीय राजनीति की मुख्यधारा को प्रकट करने वाली सर्वप्रमुख संस्था थी। वह कांग्रेस में नरमपंथी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता थे और बातचीत की प्रक्रिया में भरोसा करते थे। उस समय के प्रमुख नेताओं का प्रयास था कि अंग्रेजी साम्राज्य में भारतीयों को इज्जत मिलनी चाहिए।
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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गोपाल कृष्ण गोखले वैसे तो नरमपंथी दल के नेता के रूप में विख्यात थे लेकिन उन्होंने महात्मा गांधी के रूप में देश को सबसे बड़ा योगदान दिया था क्योंकि भारत को समझने की सीख गांधी को गोखले से ही मिली थी और राष्ट्रपिता ने उन्हें अपने राजनीतिक गुरु के रूप में स्वीकार भी किया था। गोपाल कृष्ण गोखले ही वह शख्स थे जिन्होंने महात्मा गांधी को पूरा देश घूमकर भारत को समझने की सलाह दी थी। गोखले की इस सलाह ने भारतीय आजादी के आंदोलन की एक नई दिशा तय कर दी। महात्मा गांधी गोखले के जबरदस्त प्रशंसक थे और उन्होंने उन्हें अपना राजनीतिक गुरु भी स्वीकार किया था। गोखले उन नेताओं में थे जिनसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सबसे अधिक प्रभावित थे।
महात्मा गांधी गोखले से काफी प्रभावित थे और यही कारण है कि दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद वह जिन लोगों से प्रमुखता से मिले उनमें गोखले भी थे। गोखले के सुझाव को ध्यान में रखते हुए महात्मा गांधी ने भारत की यात्रा की थी। इससे उन्हें भारत और आम भारतीय को समझने का मौका मिला। इसी क्रम में वह विभिन्न क्षेत्रों की समस्याओं से दो चार हुए। उनका मानना है कि गांधी के पहले कांग्रेस नेतृत्व एलीट किस्म का था जिसमें आम लोगों के लिए जगह नहीं थी। लेकिन गांधी की लोकमुखी राजनीति से आम आदमी का उसमें प्रवेश हो गया और वह गांव−गांव तक पहुंच गई। इससे स्वतंत्रता आंदोलन में आम आदमी की सहभागिता और भूमिका बढ़ती गई।
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गोखले कालेज में शिक्षा हासिल करने वाली देश की शुरुआती पीढ़ियों में से एक के सदस्य थे। शिक्षा प्राप्त करने से उन्हें इसका महत्व समझ में आया और वह चाहते थे कि आम भारतीय भी शिक्षा के महत्व को समझें। शिक्षा के महत्व को समझते हुए उन्होंने इसके सार्वजनिक प्रसार के लिए काफी प्रयास किया। बीसवीं सदी के शुरुआती वर्षों में गोखले जननेता के तौर पर उभरे और युवाओं के बीच वह विशेष रूप से लोकप्रिय हुए। उन्होंने सर्वेंट्स आफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना की जिसका लक्ष्य ऐसे प्रतिबद्ध लोगों को प्रशिक्षित करना था जो निस्वार्थ भाव से आम लोगों की भलाई के लिए काम कर सकें। आम लोगों के बीच शिक्षा के प्रसार एवं सामाजिक सुधार के लिए प्रयासरत गोखले ने अज्ञानता, जातिवाद, अस्पृश्यता जैसे मुद्दों पर प्रभावी तरीके से अपने विचार रखे। इसके साथ ही वह हिन्दू और मुस्लिम समुदायों के बीच सौहार्द्र और विश्वास के लिए भी प्रयासरत रहे।
गोखले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उस दौर में विख्यात हुए जब आजादी की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस दो स्पष्ट विचारधाराओं में विभाजित नजर आ रही थी। एक ओर बाल गंगाधर तिलक, विपिन चन्द्र पाल, लाला लाजपत राय और अरविन्द घोष जैसे गरमपंथी विचारधारा के नेता थे वहीं नरमपंथी विचारधारा के सिरमौर नेता गोखले थे। गोखले ने दादा भाई नैरोजी जैसे नरमपंथी नेताओं के साथ हमेशा सामाजिक सुधारों पर जोर दिया। इन तमाम कद्दावर नेताओं के बावजूद गोखले अपनी स्पष्ट विचारधारा और बेबाक भाषण शैली के कारण भारत ही नहीं ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका जैसे कई अन्य देशों में काफी लोकप्रिय थे। गोखले गांधी के न्यौते पर दक्षिण अफ्रीका गए थे जहां भारतीय मूल के लोगों ने उनका जबरदस्त स्वागत किया था। 9 मई 1866 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले में पैदा हुए गोखले ने तमाम बाधाओं के बीच परिवार के समर्थन से शिक्षा हासिल की। देशवासियों की प्रगति के लिए आजीवन प्रयासरत रहने का असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ा। वह मधुमेह, दमा जैसी कई गंभीर बीमारियों से परेशान रहने लगे और आखिरकार 19 फरवरी 1915 को उनका निधन हो गया।