By अभिनय आकाश | May 28, 2023
"आज हम जिस उपलब्धि का जश्न मना रहे हैं, वह हमारी राह देख रही महान विजयों और उपलब्धियों की दिशा में महज एक कदम है।"जवाहरलाल नेहरू ने जब ये भाषण देकर भारत की आजादी का ऐलान किया तब वो उस जगह पर खड़े थे जिसे संसद भवन का सेंट्रल हॉल कहते हैं। 14-15 अगस्त की दरमियानी रात को भारत का अपनी नियति से साक्षात्कार हुआ था तब लाखों लोगों के मन में भविष्य को लेकर आशंकाएं थी। मगर जोश भरपूर था। आजादी की हवा में सांस लेने के रोमांच में लाखों लोग संसद के बाहर खड़े थे। तब से लेकर अब तक ये इमारत भारत के विधायी इतिहास के सारे बड़े पलों की गवाह रही है। आजादी के 75 साल बाद जब देश को नया संसद भवन मिला तो भविष्य को लेकर कोई आशंकाएं नहीं है केवल उत्साह है।
18 जनवरी, 1927 जब हर्बर्ट बेकर की डिजाइन की गई गोलाकार इमारत का वायसराय लार्ड इरविन ने सोने की चाबी से ताला खोलकर उद्घाटन किया था। उस वक़्त कांग्रेस अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू समेत कांग्रेस के कई बड़े नेता और पटियाला के राजा जैसे दिग्गज लोग मौजूद थे। ये इमारत बाद में हिंदुस्तान के लोकतंत्र का गौरव बनी। 96 साल बाद एक और इमारत हिंदुस्तान के मजबूत लोकतंत्र का पताका फहराने को तैयार है। देश का नया संसद भवन।
धूमधाम से उद्घाटन
पुरानी इमारत का तब बहुत धूमधाम से उद्घाटन किया गया था, जब ब्रितानी राज की नई शाही राजधानी नई दिल्ली का रायसीना हिल क्षेत्र में निर्माण किया जा रहा था। इमारत के उद्घाटन के लिए 18 जनवरी, 1927 को भव्य आयोजन किया गया था। 12 फरवरी, 1921 को इसकी आधारशिला रखते हुए ड्यूक ऑफ कनॉट प्रिंस आर्थर ने कहा था, यह भवन भारत के पुनर्जन्म के प्रतीक के रूप में खड़ा होगा, जो इसे ऊंचे मुकाम पर ले जाएगा।
1921 में रखी गई आधारशिला
एक सदी पहले जब राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया जारी थी तब ब्रिटेन के ड्यूक ऑफ कनॉट ने 12 फरवरी, 1921 को संसद भवन की आधारशिला रखते हुए कहा था कि यह भवन भारत के पुनर्जन्म के प्रतीक के रूप में खड़ा रहेगा, जिसमें देश और भी ऊंची नियति हासिल करेगा।
बम धमाकों से गूंजा
पुराना संसद भवन बीते करीब एक दशक में ब्रिटेन के साम्राज्यवादी शासन का साक्षी बना। उसके कक्षों ने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे क्रांतिकारियों भगत सिंह एवं बटुकेश्वर दत्त द्वारा फेंके गए बम के धमाकों की गूंज सुनी।
आजादी का सवेरा देखा
इस इमारत ने देश में आजादी सवेरा होते देखा। इसे 15 अगस्त 1947 को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के ऐतिहासिक ट्राइस्ट विद डेस्टिनी (नियति साक्षात्कार) भाषण की गवाह बनने का भी सौभाग्य मिला।