गोधरा कांड और गुजरात दंगा: तारीखों के आईने में इतिहास की काली इबारत

By अभिनय आकाश | Jan 04, 2022

27 फरवरी, 2002 भारत के इतिहास का एक काला अध्याय है, जिसने हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की भावना को आग लगा दी थी। इस घटना के बाद पूरा गुजरात सुलग उठा औऱ सांप्रदायिक दंगे फैल गए। जिसमें 1200 से भी ज्यादा लोगों ने जान गंवाई। उस वक्त के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर दंगाइयों को रोकने के लिए जरूरी कार्रवाई नहीं करने के आरोप भी लगे। लेकिन बाद में सभी आरोपों से नरेंद्र मोदी को क्लीनचिट भी मिली। ऐसे में आइए जानते हैं जानिए गोधरा कांड और उसके बाद गुजरात में भड़के दंगों की कहानी।

27 फरवरी पूरे देश के लिए तारीख ही नहीं बल्कि इस तारीख का हमारे देश के अतीत से काला रिश्ता है। ये वो तारीख है जिस पर चढ़ी धूल की परत वक्त गुजरने के साथ साथ और मोटी होती चली गई। हमारे देश के मीडिया का एक बड़ा तबका आज खुद को बहुत ही जागरूक, निष्पक्ष और जिम्मेदार मानता है। लेकिन अफसोस की बात ये है कि इस तारीख में छुपी तकलीफ को दुनिया के कोने कोने तक पहुंचाने का समय शायद किसी भी न्यूज़ चैनल या अखबार को पिछले 20 वर्षों में नहीं मिला। हम गोधरा की बात कर रहे हैं, जहां 27 फरवरी 2002 को आधुनिक भारत के इतिहास का काला अध्याय लिखा गया था। इस दिन हमारे स्वतंत्र धर्मनिरपेक्ष देश में सुबह 7:43 पर गुजरात के गोधरा स्टेशन पर 23 पुरुष और 15 महिलाओं और 20 बच्चों सहित 58 लोग साबरमती एक्सप्रेस के कोच नंबर S6 में जिंदा जला दिए गए थे। उन लोगों को बचाने की कोशिश करने वाला एक व्यक्ति भी 2 दिनों के बाद मौत की नींद सो गया था।

अयोध्या से वापस लौट रही थी श्रद्धालुओं से भरी ट्रेन

अयोध्या में विश्व हिंदू परिषद की तरफ से फरवरी 2002 में पूर्णाहुति महायज्ञ का आयोजन किया गया था। देश के विभिन्न कोने से बड़ी संख्या में श्रद्धालु वहां गए थे। 25 फरवरी 2002 को अहमदाबाद जाने वाली साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में करीब 1700 तीर्थयात्री और कारसेवक सवार हुए थे। ट्रेन 27 फरवरी की सुबह 7 बजकर 43 मिनट पर गोधरा स्टेशन पहुंची। जैसे ही ट्रेन रवाना होने लगी, चेन पुलिंग की वजह से सिग्नल के पास ट्रेन रुक गई। और फिर बड़ी संख्या में भीड़ ने आगजनी की घटना को अंजाम दिया। 

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अक्सर  गुजरात दंगों की बात गोधरा कांड पर आकर रुक जाती है यह दलील दी जाती है कि गुजरात दंगे, गोधरा कांड में किए क्रिया की प्रतिक्रिया थी। लेकिन कभी भी इन दोनों घटनाओं को न्याय की एक ही कसौटी पर रखकर नहीं तौला जाता। गोधरा कांड का इंसाफ आज भी अधूरा है। जिसमें 59 लोगों की चीखें छिपी है जिसकी गूंज आज तक किसी नेता के कान तक नहीं पहुंची और ना ही मानवता की दुहाई देने वाले मीडिया को कभी सुनाई थी। मामले पर 2011 में निचली अदालत का फैसला भी आया जिसमें 11 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई। जबकि 20 लोगों को उम्र कैद की सजा हुई। लेकिन गोधरा कांड के ठीक 1 दिन बाद से गुजरात ही नहीं बल्कि पूरे देश की राजनीति हमेशा के बदल गई।

एसआईटी रिपोर्ट

उसी दिन शाम को गुजरात के मुख्यमंत्री निवास पर बैठक हुई जिसमें नरेंद्र मोदी पर शामिल हुए। इस मीटिंग को लेकर पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट ने दावा किया था कि मोदी ने हिंदुओं की प्रतिक्रिया होने देने की बात कही थी। लेकिन एसआईटी ने संजीव भट्ट के आरोपों को गलत माना और कहा कि वह 27 तारीख की उस मीटिंग में मौजूद ही नहीं थे। एसआईटी ने कहा वह (संजीव भट्ट) तथ्यों को घुमा फिरा रहे हैं और मीडिया को बरगलाने की साजिश रच कर ना सिर्फ एमिकस क्यूरी राजू रामचंद्रन बल्कि सुप्रीम कोर्ट पर भी दबाव डालने की कोशिश कर रहे हैं।

कारसेवकों के शवों को गोधरा से अहमदाबाद लाने का फैसला हुआ पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने इसका विरोध किया था। द नमो स्टोरी के लेखक के अनुसार मोदी सरकार के मंत्री हरेन पांड्या ने भी इसका विरोध किया था। 2003 में  पांड्या की हत्या कर दी गई थी। इसके लिए उनके पिता ने मोदी को दोषी ठहराया था। हालांकि सीबीआई ने जांच के बाद मोदी को क्लीन चिट दे दी थी। शवों को गोधरा स्टेशन से अहमदाबाद लाया गया और विहिप को सौंपा गया। उस वक्त शहर में कर्फ्यू नहीं लगा था और जल्दी हैं अहमदाबाद में दंगे फैल गए।

गोधरा कांड के बाद पूरे गुजरात में हुआ दंगा

गोधरा की घटना में 1500 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी। इस घटना के बाज पूरे गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी और जान-माल का भारी नुकसान हुआ। हालात इस कदर बिगड़े कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को जनता से शांति की अपील करनी पड़ी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दंगों में 1200 लोगों की मौत हुई थी।

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नानावटी आयोग की 15 सौ पन्नों की रिपोर्ट 

27 फरवरी 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में 59 कारसेवकों को जलाने की घटना के प्रतिक्रियास्वरूप समूचे गुजरात में दंगे भड़क उठे थे। इसकी जांच के लिए तीन मार्च 2002 को सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज न्यायमूर्ति जीटी नानावती की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया। न्यायमूर्ति केजी शाह आयोग के दूसरे सदस्य थे। शुरू में आयोग को साबरमती एक्सप्रेस में आगजनी से जुड़े तथ्य और घटनाओं की जांच का काम सौंपा गया। लेकिन जून 2002 में आयोग को गोधरा कांड के बाद भड़की हिंसा की भी जांच करने के लिए कहा गया। आयोग ने दंगों के दौरान नरेंद्र मोदी, उनके कैबिनेट सहयोगियों व वरिष्ठ अफसरों की भूमिका की भी जांच की। आयोग ने सितंबर 2008 में गोधरा कांड पर अपनी प्राथमिक रिपोर्ट पेश की थी। इसमें गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी गई थी। उस समय आयोग ने साबरमती एक्सप्रेस की बोगी संख्या-छह में आग लगाने को सुनियोजित साजिश का परिणाम बताया था। 2009 में जस्टिस शाह के निधन के बाद अक्षय मेहता को सदस्य बनाया गया। आयोग ने 45 हजार शपथ पत्र व हजारों गवाहों के बयान के बाद करीब 15 सौ पेज की रिपोर्ट तैयार की। अब इस रिपोर्ट को विधानसभा के पटल पर रखा गया। नानावटी कमीशन ने उन्हें क्लीन चिट दी और तमाम तरह के प्रोपोगैंडा जो न सिर्फ देश बल्कि पूरी दुनिया में फैलाए गए उसे सिरे से खारिज किया गया। इस रिपोर्ट में ये बताया गया कि वहां पर कोई भी ऐसा काम नहीं किया गया जो राज्य सरकार को नहीं करना चाहिए थे। 

सिलसिलेवार घटनाक्रम पर एक नजर..

27 फरवरी 2002 : गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती ट्रेन के एस-6 कोच में आग लगाने से 59 से अधिक कारसेवकों की मौत हुई थी। 

28 फरवरी 2002 : गुजरात के कई इलाकों में दंगा भड़कने से 1200 से अधिक लोग मारे गए।

03 मार्च 2002 : गोधरा ट्रेन जलाने के मामले में गिरफ्तार किए गए लोगों के खिलाफ आतंकवाद निरोधक अध्यादेश (पोटा) लगाया गया।

25 मार्च 2002 : केंद्र सरकार के दबाव की वजह से सभी आरोपियों पर से पोटा हटाया गया।

18 फरवरी 2003 : गुजरात में भाजपा सरकार के दोबारा चुने जाने पर आरोपियों के खिलाफ फिर से आतंकवाद निरोधक कानून लगा दिया गया।

21 सितंबर : नवगठित संप्रग सरकार ने पोटा कानून को खत्म कर दिया और अरोपियों के खिलाफ पोटा आरोपों की समीक्षा का फैसला किया।

17 जनवरी 2005 : यूसी बनर्जी समिति ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में बताया कि गोधरा कांड महज एक ‘दुर्घटना’थी।

13 अक्टूबर 2006 : गुजरात उच्च न्यायालय ने कहा कि यूसी बनर्जी समिति का गठन ‘अवैध’ और ‘असंवैधानिक’ है, क्योंकि नानावटी-शाह आयोग पहले ही दंगे से जुड़े सभी मामले की जांच कर रहा है। 

26 मार्च 2008 : सुप्रीम कोर्ट ने गोधरा कांड और फिर हुए दंगों से जुड़े आठ मामलों की जांच के लिए विशेष जांच आयोग बनाया।

18 सितंबर : नानावटी आयोग ने गोधरा कांड की जांच सौंपी। इसमें कहा गया कि यह पूर्व नियोजित षड्‍यंत्र था।

22 फरवरी : विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 31 लोगों को दोषी पाया, जबकि 63 अन्य को बरी किया।

1 मार्च 2011: विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 11 को फांसी, 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई। 

-अभिनय आकाश

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