Lord Shiva: शिवजी की कृपा पाने के लिए करें शिवाष्टक, रुद्राष्टक, शिव स्त्रोत, शिव सहस्त्र नामावली का पाठ, प्रसन्न होंगे महादेव

By अनन्या मिश्रा | Mar 01, 2024

हिंदू धर्म में भगवान शिव को सभी देवों में सबसे ऊंचा स्थान प्राप्त है। माना जाता है कि भगवान शिव अपने भक्तों से बेहद आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं, यदि कोई भक्त भगवान शिव को पूरी श्रद्धा और भक्ति से सिर्फ एक लोटा जल अर्पित कर दे, तो भी वह अपने भक्त से प्रसन्न हो जाते हैं। जिसके कारण उनको भोलेनाथ भी कहा जाता है। ऐसे में अगर आप भी भगवान शिव की कृपा व आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो आपको शिवाष्टक, रुद्राष्टक, शिव स्त्रोत, शिव सहस्त्र नामावली का पाठ करना चाहिए। 


यह भगवान शिव की अद्भुत स्तुति मानी जाती है। शिवाष्टक, रुद्राष्टक, शिव स्त्रोत, शिव सहस्त्र नामावली का पाठ करने से बड़े से बड़े शत्रुओं का नाश और जीवन में आने वाली परेशानियों का अंत हो जाता है। साथ ही व्यक्ति का जीवन खुशहाल और आनंद से बीतता है। वहीं भगवान शिव अपने भक्तों को हमेशा रक्षा करते हैं। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको शिवाष्टक, रुद्राष्टक, शिव स्त्रोत, शिव सहस्त्र नामावली के बारे में बताने जा रहे हैं। जिनका पाठ कर आप भी भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।


शिवाष्टक

जय शिव शंकर, जय गंगाधर, करुणाकर करतार हरे।

जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशि सुखसार हरे ।।


जय शशि शेखर, जय डमरूधर, जय जय प्रेमागर हरे।

जय त्रिपुरारी, जय मदहारी, अमित, अनन्त, अपार हरे।।


निर्गुण जय जय, सगुण अनामय, निराकार साकार हरे।

पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ।।


जय रामेश्वर, जय नागेश्वर, वैद्यनाथ, केदार हरे ।

मल्लिकार्जुन, सोमनाथ जय, महाकाल ओंकार हरे।।


त्रयम्बकेश्वर, जय घुश्मेश्वर, भीमेश्वर, जगातार हरे।

काशी पति श्री विश्वनाथ जय, मंगलमय, अघहार हरे।।


नीलकण्ठ जय, भूतनाथ जय, मृत्युञ्जय अविकार हरे।

पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ।।


जय महेश, जय जय भवेश, जय आदिदेव, महादेव विभो।

किस मुख से हे गुणातीत, प्रभु तव अपार गुण वर्णन हो ।।


जय भवकारक तारक, हारक, पातक-दारक शिव शम्भो।

दीन दुःखहर, सर्व सुखाकर, प्रेम-सुधाधर दया करो।।


पार लगा दो भवसागर से, बन कर कर्णाधार हरे।

पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ।।


जय मनभावन, जय पतितपावन, शोक नशावन शिवशम्भो।

विपद विदारन, अधम उद्धारन, सत्य सनातन शिवशम्भो।।


सहज वचनहर, जलज नयनवर, धवल-वरन-तन शिवशम्भो ।

मदन-कदन-कर, पाप-हरन-हर, चरन-मनन-धन शिवशम्भो ।।


विवसन, विश्वरूप प्रलयंकर, जग के मूलाधार हरे।

पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ।।


भोलानाथ कृपालु, दयामय, औढरदानी शिव योगी।

निमिष मात्र में देते हैं, नव निधि मनमानी शिव योगी।।


सरल हृदय, अति करुणा सागर, अकथ कहानी शिव योगी ।

भक्तो पर सर्वस्व लुटाकर, बने मसानी शिव योगी ।।


स्वयं अकिंचन, जन मन रंजन, पर शिव परम उदार हरे।

पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे।।


आशुतोष ! इस मोहमायी निद्रा से मुझे जगा देना।

विषम वेदना से विषयों की मायाधीश छुड़ा देना ।।


रूप सुधा की एक बूंद से जीवन मुक्त बना देना।

दिव्य ज्ञान भण्डर युगल चरणों की लगन लगा देना ।।


एक बार इस मन मन्दिर में कीजे पद-संचार हरे।

पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे।।


दानी हो दो भिक्षा में, अपनी अनुपायनी भक्ति प्रभो।

शक्तिमान हो दो अविचल, निष्काम प्रेम की शक्ति प्रभो।।


त्यागी हो दो इस असार, संसार से पूर्ण विरक्ति प्रभो।

परमपिता हो दो तुम अपने, चरणों में अनुरक्ति प्रभो ।।


स्वामी हो निज सेवक की, सुन लेना करुण पुकार हरे।

पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे।।


तुम बिन ‘बेकल’ हूँ प्राणेश्वर, आ जाओ भगवन्त हरे।

चरण शरण की बांह गहो, हे उमारमण प्रियकन्त हरे।।


विरह व्यथित हूँ दीन दु:खी हूँ, दीनदायल अनन्त हरे।

आओ तुम मेरे हो जाओ, आ जाओ श्रीमन्त हरे।।


मेरी इस दयनीय दशा पर, कुछ तो करो विचार हरे।

पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे।।


श्री शिव रूद्राष्टकम

नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥

 

निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।

करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥

 

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥

 

चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।

मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥

 

प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।

त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥

 

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।

चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥

 

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।

न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥

 

न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।

जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥

 

रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये

ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।। 


॥  इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥


शिव तांडव स्तोत्र

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले

गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।

डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं

चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥॥


जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी

विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।

धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके

किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥॥


धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर

स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।

कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि

क्वचिद्दिगम्बरे(क्वचिच्चिदम्बरे) मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥॥


जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा

कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।

मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे

मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥॥


सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर

प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।

भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक

श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥॥


ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा

निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।

सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं

महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥॥


करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल

द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।

धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक

प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥॥


नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्

कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।

निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः

कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥॥


प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा

वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।

स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं

गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥॥


अगर्व सर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी

रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम् ।

स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं

गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥॥


जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस

द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।

धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल

ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥॥


दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्

गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।

तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः

समं प्रव्रितिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम ॥॥


कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्

विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् ।

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः

शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥॥


निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-

निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।

तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं

परिश्रय परं पदं तदङ्गजत्विषां चयः ॥॥


प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी

महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।

विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः

शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥॥


इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं

पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं

विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥॥


पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं

यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।

तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां

लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥॥


इति श्रीरावण कृतम्

शिव ताण्डव स्तोत्र संपूर्णम

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