भारत में विभिन्न वैज्ञानिक संस्थान मिलकर कोरोना वायरस की जीनोम सीक्वेंसिंग कर रहे हैं। अब तक देश के विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों में कोरोना की करीब 300 जीनोम सीक्वेंसिंग की जा चुकी है। इसमें से 200 सीक्वेंसिंग वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर) द्वारा की गई है। यह जानकारी सीएसआईआर के महानिदेशक डॉ शेखर सी. मांडे द्वारा एक राष्ट्रीय चैनल पर दिए गए साक्षात्कार के दौरान दी गई है।
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कोरोना वायरस से लड़ने के लिए वैक्सीन के विकास के लिए इसकी आनुवांशिक संरचना का पता लगाना बेहद जरूरी है। यही कारण है कि दुनियाभर के वैज्ञानिक कोरोना वायरस की जीनोम सीक्वेंसिंग करने में जुटे हुए हैं। डॉ मांडे ने कहा है कि हमारे देश में भी सिविअर एक्यूट रिस्पेरेटरी सिंड्रोम-कोरोना वायरस-2 (SARS-CoV-2) की सीक्वेंसिंग काफी तेजी से चल रही है। नई दिल्ली स्थित सीएसआईआर-जिनोमिकी और समवेत जीव विज्ञान संस्थान (आईजीआईबी) और हैदराबाद स्थित सीएसआईआर-कोशकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र (सीसीएमबी) सीक्वेंसिंग को लेकर मुख्य रूप से काम कर रहे हैं।
जीनोम सीक्वेंसिंग से पता चलता है कि वायरस किस जीनोम का बना हुआ है। इसके अलावा, वायरस में पाये जाने वाले आरएनए से उसकी आनुवांशिक बनावट के बारे में काफी जानकारियां मिल सकती हैं। कोरोना वायरस के बारे में यह भी कहा जा रहा है कि यह लगातार रूपांतरित हो रहा है। सीक्वेंसिंग से वायरस के रूपांतरित होने के बारे में भी जानकारी मिल सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सीक्वेंसिंग से प्राप्त जानकारी से वैक्सीन के विकास में मदद मिल सकती है। जीनोम सीक्वेंसिंग वायरस के प्रति वाहक की प्रतिक्रिया का पता लगाने और बीमारी के प्रति जनसंख्या की संवेदनशीलता की पहचान करने में भी महत्वपूर्ण हो सकती है।
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डॉ शेखर सी. मांडे ने बताया है कि कोविड-19 से लड़ने के लिए सीएसआईआर छह दवाओं का परीक्षण कर रहा है, जिसमें चार आयुर्वेदिक दवाएं शामिल हैं। उन्होंने कहा है कि सीएसआईआर दो अन्य दवाओं का परीक्षण करना चाहता है, जिसके लिए ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) से मंजूरी के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।
इंडिया साइंस वायर