भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास के शोधकर्ताओं ने अपने एक ताजा अध्ययन में उच्च रक्तचाप के पीछे जिम्मेदार अनुवांशिक भिन्नता का पता लगाय है। शोधकर्ताओं की खोज में यह तथ्य निकलकर सामने आया है कि मैट्रिक्स मटालो प्रोटीनेज (एमएमपीएस) नामक एक जीन के ‘डीएनए बिल्डिंग ब्लॉक’ में बदलाव से लोगों में उच्च रक्तचाप का खतरा बढ़ सकता है। इस निष्कर्ष तक पहुँचने के क्रम में अध्ययनकर्ताओं ने उच्च रक्तचाप से पीड़ित रोगिओं और सामान्य रक्तचाप वाले स्वस्थ लोगों के अनुवांशिक प्रोफाइल का गहन अध्ययन और विश्लेषण किया है।
उच्च रक्तचाप के कारण रक्त नलिकाओं की दीवार और धमनियां, दीवारों पर अत्यधिक कोलेजन जमा होने के कारण सख्त हो जाती हैं। कोलेजन शरीर में पैदा होने वाले प्रोटीन का सबसे प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला प्रकार है। सामान्यतः मैट्रिक्स मटालो प्रोटीनेज8 (एमएमपी8) नामक एंजाइम अतिरिक्त कोलेजन को खंडित कर उसका संचयन रोकने का काम करता है। फिर भी, कई बार एंजाइम के ठीक ढंग से काम नहीं करने या उसमें असंतुलन की स्थिति में अतिरिक्त कोलेजन बिना टूटे धमनिओं की दीवार से जा चिपकता है।
आईआईटी मद्रास के जैव-प्रौद्योगिकी विभाग में प्रोफेसर और इस अध्ययन के नेतृत्वकर्ता डॉ नीतीश महापात्र बताते हैं- "उच्च रक्तचाप के अनुवांशिक कारण का निर्धारण अपने आप में एक जटिल विषय है और इसमें अनेक जीन की भूमिका होती है। हाइपरटेंशन या उच्च रक्तचाप भारत में सबसे अधिक रोगों और मौतों का एक प्रमुख कारण है। अनुमानतः सालाना लगभग 16 लाख लोग इस्केमिक यानि बाधित रक्तप्रवाह-जन्य ह्रदय रोगों और उसके द्वारा कारित स्ट्रोक्स से अपनी जान गंवा देते हैं।‘’
पूर्व के अध्ययनों में भी रक्त में एमएमपी8 की मात्रा में बदलाव को अनेक ह्रदय रोगों से परस्पर सम्बद्ध होने की बात कही गयी है। एमएमपी8 एंजाइम से जुडी असमान्यताओं और हाइपरटेंशन तथा गुर्दे की गंभीर बीमारियों में भी परस्पर संबंध देखा गया है। आईआईटी मद्रास के शोधकर्ताओं ने अपने नए अध्ययन में एमएमपी 8 जीन में बदलाव और एंजाइम की मात्रा में परिवर्तन के बीच परस्पर संबंध को स्थापित किया है।
अध्ययन टीम ने चेन्नई के मद्रास मेडिकल मिशन (एमएमएम )हॉस्पिटल और चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) हॉस्पिटल में उच्च रक्तचाप पीड़ित 1432 रोगिओं और 1133 स्वस्थ्य वालंटियर्स को शोध के लिए चयनित किया। शोधकर्ताओं ने उनसे प्राप्त डीएनए सैम्पल्स को संवर्द्धित कर जीन के एक निकाले हुए हिस्से का क्लोन बनाकर प्रायोगिक जीवित कोशिकाओं में स्थानांतरित कर दिया।
शोधकर्ताओं को सैम्पल्स में विशिष्ट अनुवांशिक विविधताएं (एमएमपी8 एचएपी3 जीनोटाइप) मिलीं जिसके परिणामस्वरूप रक्त में एमएमपी8 का स्तर कम हो गया था। इस आधार पर शोध-टीम इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि जिन लोगों के डीएनए में यह विशिष्ट अनुवांशिक भिन्नता पाई जाती है, उनकी धमनिओं में कोलेजन जमा होने की संभावना बढ़ जाती है और इसके परिणामस्वरूप उनमे उच्च रक्तचाप तथा अन्य ह्रदय रोगों का खतरा भी बढ़ जाता है।
शोधकर्ताओं का यह मानना है कि अनुवांशिक भिन्नता को वास्तव में हाइपरटेंशन के पूर्व-संकेतक के रूप में देखा जाना चाहिए।
अध्ययन टीम में प्रोफेसर महापात्र के अतिरिक्त ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टिट्यूट,एनसीआर बायोटेक साइंस क्लस्टर, फरीदाबाद, प्रायोगिक चिकित्सा और जैव प्रौद्योगिकी विभाग, पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़, तथा हृदय रोग संस्थान, मद्रास मेडिकल मिशन, चेन्नई से संबद्ध शोधकर्ता शामिल हैं।
इस शोध के निष्कर्ष जर्नल ऑफ हाइपरटेंशन में प्रकाशित किये गए हैं।
(इंडिया साइंस वायर)