By नीरज कुमार दुबे | Sep 30, 2022
जनरल अनिल चौहान ने आज भारत के दूसरे प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) का पदभार ग्रहण किया। इससे पहले सुबह चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान को दिल्ली के साउथ ब्लॉक में गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। इसके बाद जनरल अनिल चौहान ने नेशनल वार मेमोरियल जाकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी। इसके बाद उन्होंने वहां मौजूद 95 वर्षीय अपने पिता के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। इसके बाद वह तीनों सेनाओं के अधिकारियों, अपने परिचितों और परिजनों से मिले और सभी की शुभकामनाएं स्वीकार कीं। इसके बाद उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा कि मुझे गर्व है कि आज मैं भारतीय सेनाओं के प्रमुख पद पर कार्यभार संभालने जा रहा हूं। उन्होंने कहा कि मैं भारत सरकार और तीनों सेनाओं की आशाओं को पूरा करने की कोशिश करूंगा। उन्होंने कहा कि हमारे सामने सुरक्षा संबंधी जो भी चुनौतियां और मुश्किलें हैं उसको साझा रूप से दूर करने की कोशिश की जायेगी।
हम आपको बता दें कि नये सीडीएस के सामने सशस्त्र सेनाओं के तीनों अंगों के बीच समन्वय और महत्वाकांक्षी ‘थियेटर’ कमान के निर्माण का लक्ष्य है ताकि देश की सेनाओं को भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार किया जा सके। हम आपको बता दें कि जनरल चौहान सेना की पूर्वी कमान के प्रमुख रह चुके हैं। जनरल चौहान को चीन मामलों का विशेषज्ञ माना जाता है और शीर्ष पद पर उनकी नियुक्ति ऐसे समय हुई है जब पूर्वी लद्दाख में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच सीमा को लेकर विवाद बना हुआ है। भारतीय सेना के बेहद अनुभवी और अलंकृत अधिकारी, 61 वर्षीय सीडीएस चौहान रक्षा मंत्रालय के सैन्य मामलों के विभाग के सचिव के तौर पर भी काम करेंगे।
हम आपको बता दें कि भारत के पहले सीडीएस रहे दिवंगत बिपिन रावत की तरह ही नये सीडीएस भी उत्तराखंड के रहने वाले हैं। नये सीडीएस के नाम की घोषणा के बाद से जनरल अनिल चौहान के उत्तराखण्ड स्थित पैतृक गांव गवाणा में जश्न का माहौल है। गांव में अचानक रौनक बढ़ गयी है और लोग चौहान के घर के आंगन में जमा होने लगे जहां उनके चचेरे भाई रहते हैं। इस मौके पर घर आने वाले लोगों का मिठाई खिला कर स्वागत किया जा रहा है। देवलगढ़ मोटर मार्ग पर स्थित गवाणा में लगभग 30 परिवार रहते हैं। सीडीएस अनिल चौहान के चचेरे भाई दर्शन सिंह चौहान ने बताया कि अनिल चौहान सीधे और सरल व्यक्तित्व के धनी हैं और परिवार के लोगों के साथ अक्सर वे गढ़वाली भाषा में ही बात करते हैं। प्रसन्नता जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि उनके भाई ने गांव के साथ ही पूरा क्षेत्र और उत्तराखंड का मान बढ़ा दिया है।
वर्ष 1981 में भारतीय सेना की 11वीं गोरखा राइफल में भर्ती हुए अनिल चौहान का परिवार लगभग 50 वर्ष पहले अपने गांव गवाणा से देहरादून चला गया था, लेकिन दिल्ली में रहने वाले उनके पिता सुरेंद्र सिंह चौहान का गांव से संपर्क बना हुआ है। अठारह मई, 1961 को जन्मे अनिल चौहान की प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता में हुई थी। उन्होंने परमाणु हमले के विनाशकारी प्रभाव पर आधारित एक किताब ‘आफ्टरमैथ ऑफ न्यूक्लियर अटैक’ लिखी है जो 2010 में प्रकाशित हुई थी। अनिल चौहान आखिरी बार जून 2016 में एक पूजा में शामिल होने गवाणा आए थे।