By प्रज्ञा पाण्डेय | Sep 06, 2024
आज गणेश चतुर्थी है, इस दिन से गणेश उत्सव शुरू हो जाता है। गणपति जी के जन्मोत्सव को गणेश चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। दस दिन तक चलने वाले इस महोत्सव का समापन अनंत चतुर्दशी पर होता है, तो आइए हम आपको गणेश चतुर्थी व्रत की विधि एवं महत्व के बारे में बताते हैं।
जानें गणेश चतुर्थी के बारे में
इस साल गणेश चतुर्थी 7 सितंबर को मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश का जन्म हुआ था। देशभर में पूरे 10 दिनों तक गणपति उत्सव की धूम रहती है। इस दौरान भक्त बप्पा की भक्ति में पूरी तरह डूबे रहते हैं और हर गणपति बप्पा मोरया की गूंज सुनाई देती है। गणेश चतुर्थी के दिन भक्तगण बप्पा की प्रतिमा को घर लाते हैं और विधिपूर्वक, नियम के साथ इसकी स्थापना करते हैं। गजानन जी की प्रतिमा घर में पूरे 10 दिनों तक रखा जाता है लेकिन अगर ऐसा संभव नहीं तो 1, 3,5, 7 या 10 दिन तक गणेश जी को घर में विराजमान कर सकते हैं। गौरीपुत्र गणेश की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि और सौभाग्य बनी रहती है। अगर आप अपने घर में गणपति जी को स्थापित नहीं कर पा रहे हैं तो रोजाना उनकी पूजा करने से भी शुभ फलों की प्राप्ति कर सकते हैं।
मूर्ति स्थापना करते समय दिशा का रखें ध्यान
अगर आप भी गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश की मूर्ति घर ला रहे हैं या स्थापना करते रहते हैं तो दिशा का ध्यान जरूर रखें। ज्योतिष विद्या के अनुसार, भगवान की मूर्ति सही दिशा में व सही विधि से स्थापित करना महत्वपूर्ण माना जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार भगवान गणेश की मूर्ति को घर के ईशान कोण अर्थात् उत्तर-पूर्व दिशा में स्थापित करना चाहिए। यदि ईशान कोण में रिक्त स्थान उपलब्ध ना हो तो मूर्ति को पूर्व, पश्चिम या उत्तर दिशा में भी स्थापित कर सकते हैं।
गणेश चतुर्थी व्रत का शुभ मुहूर्त
भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि आरंभ- 6 सितंबर को दोपहर 3 बजकर 1 मिनट से
भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि समाप्त- 7 सितंबर को शाम 5 बजकर 37 मिनट तक
गणेश चतुर्थी तिथि- शनिवार, 7 सितंबर 2024
गणेश विसर्जन तिथि- मंगलवार, 17 सितंबर 2024
गणेश चुतर्थी के दिन इस समय करें पूजा, मिलेगा लाभ
हिंदू पंचांग के अनुसार, गणेश चतुर्थी के दिन बप्पा की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 3 मिनट से शुरू होगा, जबकि इसका समापन दोपहर 1 बजकर 34 मिनट पर होगा। भक्तगण इसी मुहूर्त में गणपति जी मूर्ति को अपने घर में स्थापित करें। गजानन जी की मूर्ति विधिपूर्वक ही स्थापित करें। वहीं गणेश जी की वो मूर्ति ही घर लाएं जिसमें उनकी सूंड बाईं ओर हो।
गणेश चतुर्थी पर न देखें चंद्रमा
गणेश चतुर्थी के दिन भाद्रपद की विनायक चतुर्थी है। इस दिन आपको चंद्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए। यदि आप ऐसा करते हैं तो आप पर झूठा कलंक लग सकता है। भगवान श्रीकृष्ण पर मणि चोरी करने का झूठा आरोप लगा था। इसकी कथा चतुर्थी से जुड़ी है।
रवि और ब्रह्म योग में होगी गणेश चतुर्थी पूजा
इस साल गणेश चतुर्थी की पूजा रवि और ब्रह्म योग में होगी। चतुर्थी के दिन रवि योग सुबह 06:02 बजे से दोपहर 12:34 बजे तक है, वहीं ब्रह्म योग सुबह से लेकर रात 11:17 बजे तक है।
अभिजीत मुहूर्त में करें गणपति स्थापना
गणेश चतुर्थी पर गणपति बप्पा की मूर्ति की स्थापना आप अभिजीत मुहूर्त में करें। यह घट और मूर्ति स्थापना के लिए अच्छा समय माना जाता है। उस दिन अभिजीत मुहूर्त 11:54 बजे से दोपहर 12:44 बजे तक है।
मूर्ति स्थापना के लिए आवश्यक पूजा सामग्री
पंडितों के अनुसार भगवान गणेश को विराजित करने के लिए चौरंगा या पाटा और रखने के लिए वस्त्र रखें। पूजा के लिए आवश्यक सामग्री हैं निरंजन, धूप, समई, कपूर और आरती की थाली। पांच फल, सुपारी, नारियल, पान के पत्ते, सूखा नारियल, गुड़ और कुछ सिक्के। पूजा स्थल पर रखने के लिए क्लश, जल और आम के पत्ते जरूर रखें।
गणेश चतुर्थी व्रत में ऐसे करें पूजा
पंडितों के अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर भगवान गणेश का ध्यान करें। इसके बाद घर की साफ-सफाई करें। गणपति की मूर्ति स्थापना के लिए मंडप सजाएं। इसके लिए पुष्प, रंगोली और दीपक का इस्तेमाल करें। इसके बाद कलश में गंगाजल, रोली, अक्षत, कुछ सिक्के और एक आम का पत्ता डालकर मंडप में रखें। अब एक चौकी में साफ कपड़ा बिछाएं और लंबोदर की मूर्ति स्थापित करें। मूर्ति स्थापना के बाद तीन बार आचमन करें। फिर पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद घी का दीपक जलाएं। साथ ही भगवान गणेश को वस्त्र, जनेऊ, चंदन, सुपारी, फल और फूल अर्पित करें। 21 दूर्वा चढ़ाएं और उनके प्रिय मोदक का भोग लगाएं। आखिरी में सभी लोग गणेश जी की आरती करें।
भगवान गणेश से जुड़ी पौराणिक कथाएं
पंडितों के अनुसार एक बार माता पार्वती स्नान करने के लिए जा रही थीं। उन्होंने अपने शरीर के मैल से एक पुतला निर्मित किया और उसमें प्राण फूंक दिए। फिर उसे घर की रक्षा के लिए द्वारपाल नियुक्त किया। ये द्वारपाल गजानन थे। गृह में प्रवेश के लिए उन्होंने भगवान शिवजी को रोक दिया। नारज होकर महादेव ने उनका मस्तक काट दिया। जब पार्वती जी को इसका पता चला तो वह काफी दुखी हो गईं। उन्हें प्रसन्न करने के लिए शिवजी ने गज का सर काटकर भगवान गणेश के धड़ पर जोड़ दिया। गज का सिर जुड़ने से उनका नाम गजानन पड़ गया।
इन मंत्रों के जाप से भगवान गणेश होंगे प्रसन्न
1. वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रथ। निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
2. विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लंबोदराय सकलाय जगद्धितायं। नागाननाथ श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।
3. अमेयाय च हेरंब परशुधारकाय ते। मूषक वाहनायैव विश्वेशाय नमो नमः।।
4. एकदंताय विद्महे, वक्रतुंडाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात।।
5. ओम श्रीं गं सौभाग्य गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।।
- प्रज्ञा पाण्डेय