बंकिम की लेखनी, तिलक की परिकल्पना, सावरकर की जीवन पद्धति, अटल की कविता का आधार, आतंकवाद नहीं ये है हिंदुत्व का सार

FacebookTwitterWhatsapp

By अभिनय आकाश | Nov 12, 2021

बंकिम की लेखनी, तिलक की परिकल्पना, सावरकर की जीवन पद्धति, अटल की कविता का आधार, आतंकवाद नहीं ये है हिंदुत्व का सार

हमारे देश-दुनिया में कई कहावतें हैं जैसे पीठ में छुरा घोंपना, विभीषण होना, जयचंद होना, मान सिंह होना और मीर जाफर होना। इन सारी कहावतों का जो व्यापकता में अर्थ निकल कर आता है उसमें यह बात साफ तौर पर निकल कर बाहर आती है कि इन्हें धोखेबाजी के पर्याय के तौर पर जाना जाता है। ऐसे ही लोगों की वजह से हम पहले मुगलों से हारे और ऐसे ही लोगों की वजह से हम अंग्रेजों के गुलाम बन गए। वर्तमान में भी हम अपने ही देश के कुछ ऐसे ही लोगों से दो-चार होते रहते हैं। जो अपने डबल स्टैंडर्ड वाले बयानों के जरिये इन्हें चरितार्थ भी करते रहते हैं। ये तो आपने अक्सर सुना होगा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है, क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा के रास्ते पर चलना नहीं सिखाता। ठीक वैसा ही सच भी है।  लेकिन इसके बाद कहा जाता है कि भगवा आतंकवाद के नाम पर लोगों का खून बहाया जा रहा है और अब तो हिंदुच्व की तुलना आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठन से भी की जाने लगे तो फिर ऐसे लोगों के लिए क्या कहा जाए। आज के इस विश्लेषण में आपको और आईएसआईएस-बोकोहरम से हिंदुत्व की तुलना, कहां से आया ये शब्द, कब से इसका राजनीतिक इस्तेमाल होना शुरू हुआ और सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुत्व को लेकर क्या कहा था ये आपको बताएंगे। कुल मिलाकर कहा जाए तो सावरकर की कलम से लेकर सलमान की किताब तक हिंदुत्व और इसकी विचारधारा को लेकर की गई  व्याख्या को समझने आपको समझाने का प्रयास करेंगे। 

आईएसआईएस और बोको हरम जैसा 

जिस सॉफ्ट हिन्दूत्व के सहारे कांग्रेस अपनी जड़े जमाने का सपना देख रही है उसमें पार्टी के ही एक वरिष्ठ नेता पलीता लगाने पर तुले हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, पूर्व विदेश मंत्री, पूर्व कानून मंत्री सलमान खुर्शीद अयोध्या पर एक किताब लिखी है और उसमें एक ऐसा संदर्भ जोड़ दिया की कांग्रेस सांसत में आ गई है। खुर्शीद की किताब का नाम तो सनराइज ओवर अयोध्या है लेकिन इसमें उनके व्यक्त किए विचार कांग्रेस के अरमानों को सूर्यास्त करने वाले साबित होते हैं। सनराइज ओवर अयोध्या के पेज नं 113 में सैफरन स्काई नामक अध्याय यानी भगवा आसमान में एक जगह खुर्शीद ने लिखा है- सनातन धर्म और शास्त्रीय हिंदुत्व की पहचान साधु-संतों से हो रही है। जिसे अब हिंदुत्व के मजबूत संस्करण से किनारे लगायाा जा रहा है। हर तरह से ये राजनीतिक संस्करण हाल के वर्षों के आईएसआईएस और बोको हरम जैसे जिहादी संगठनों जैसा है। 

इसे भी पढ़ें: Prabhasakshi NewsRoom | राहुल-प्रियंका-अखिलेश के चुनावी नारों पर स्मृति ईरानी का कटाक्ष, खुर्शीद को भी लिया आड़े हाथ

हिन्दुत्व एक ऐसा शब्द है जो संपूर्ण मानवजाति के लिए आज भी असामान्य स्फूर्ति तथा चैतन्य का स्रोत बना हुआ है। इसी हिंदुत्व के असंदिग्ध स्वरूप तथा आशय का ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास आज हम करने जा रहे हैं। हिंदुत्व कोई सामान शब्द नहीं है। यह एक परंपरा है। एक इतिहास है। यह इतिहास केवल धार्मिक अथवा आध्यात्मिक इतिहास नहीं है। अनेक बार हिदुत्व शब्द को उसी के समान किसी अन्य शब्द के समतुल्य मानकर बड़ी भूल की जाती है। हिंदुत्व शब्द का निश्चित आशय ज्ञात करने के लिए पहले हम लोगों को यह समझना आवश्यक है कि हिंदू किसे कहते हैं। 

हिंदू धर्म ये शब्द हिंदुत्व से ही उपजा उसी का एक रूप है, उसी का एक अंश है, इसलिए हिंदुत्व शब्द की स्पष्ट कल्पना करना संभव नहीं होता तो हिंदू धर्म शब्द भी हम लोगों के लिए दुर्बोध तथा अनिश्चित बन जाएगा। 

सिंधु से हिन्दू 

केवल आर्य ही स्वयं को सिंधु कहलाते ऐसा नहीं था। उनके पड़ोसी राष्ट्र भी उन्हें इसी नाम से जानते थे। इसे साबित करने के लिए कई प्रमाण उपलब्ध हैं। संस्कृत के स अक्षर का हिन्दू तथा अहिंदू प्राकृत भाषाओं में ह ऐसा अपभ्रंश हो जाता है। सप्त का हप्त हो जाना केवल हिंदू प्राकृत भाषा तक ही सीमित नहीं है। यूरोप की भाषाओं में इस प्रकार की बात देखी जाती है। सप्ताह को हम लोग हफ्ता कहते हैं। यूरोपीय भाषाओं में सप्ताह हप्टार्की बन जाता है। इतिहास के प्रारंभिक काल में भी हम लोग सिंधु अथवा हिंदू राष्ट्र के अंग माने जाते हैं। स्थान का स्तान हो गया। हिंद और स्तान मिलकर ‘हिंदुस्तान’ बन गया। हिंद से ही ‘हिंदू’, ‘हिंदी’, ‘हिंदवी’, ‘हुन्दू’, ‘हन्दू’, ‘इंदू’, ‘इंडीज’, ‘इंडिया’ और ‘इंडियन’ आदि शब्द निकले हैं। 

हिंदू नाम से ही राष्ट्र का नामाकरण हुआ

हिन्दुत्व और हिंदू धर्म दोनों ही शब्द हिंदू शब्द से उत्पन्न हुए हैं। हिन्दू धर्म की परिभाषा के अनुसार यदि कोई महत्वपूर्ण समाज उसमें सम्मलित न किया जाता हो अथवा उसे स्वीकारने से हिंदुओं के घटकों को हिंदुत्व से बाहर किया जा रहा हो तो वह परिभाषा मूलत: धिक्कारने योग्य समझी जानी चाहिए। हिंदू धर्म से लोगों में प्रचलिक विविध धर्ममतों का बोढ क्या है, इसे निश्चित रूप से समझने के लिए सर्वप्रथम हिंदू शब्द की परिभाषा निश्चित करना आवश्यक है। 

इसे भी पढ़ें: क्या है स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स नीति? जिससे कई देश बन सकते हैं चीन के गुलाम, भारत कैसे इससे निपटेगा

हिंदू किसे कहते हैं?

हिंदू किसे कहना चाहिए? जो हिंदू धर्म के तत्वों का पालन करता है। जिस महाविद्वान अंग्रेज ने हिंदूइज्म शब्द को प्रचलित किया उसी का अनुकरण करते हुए यदि कोई हिंदी व्यक्ति इंग्लिशिज्म शब्द का प्रयोग करते हुए इंग्लिश लोगों में रूढ़ धार्मिक कल्पनाओं की जड़ों को कुछ एकता की खोज करने  का प्रयास करता है तो ज्यू से जकोविनो तक तथा ट्रिनिटूी का तत्तव माननेवाले से उपयुक्तवादियों तक उसे इतने पंथ, उपपंथ, जातियां एवं उपजातियां दिखाई देंगी कि क्रोध से वह कहेगा इंग्लिश कहलानेवाला कोई भी व्यक्ति इस विश्व में विद्यमान नहीं है।

हिंदुत्व शब्द का लिखित उल्लेख 

देवेंद्रनाथ टैगोर ने 1867 में हिंदू मेला का आयोजन किया। इस मेले के उद्घाटन कार्यक्रम की शुरूआत भारत माता के गीत से हुई थी। वहीं, 1870 के दशक में बंकिम चंद्र चटर्जी  ने 'वंदे मातरम' गीत लिखकर लोगों में राष्ट्र प्रेम की भावना को और मजबूत किया। उनका उपन्यास आनंद मठ में एंटी-मुस्लि‍म विचारों के चलते चर्चित हुआ। इसी लेख में बंकिम चंद्र ने बंगालियों का आह्वान किया कि वे पीढ़ी दर पीढी सुनाई जानी वाली कहानियों में बंगाल का अतीत ढूंढे. जिसे विश्‍वसनीय माना जाए. यहां बंगाली से बंकिम चंद्र का आशय बंगाली हिंदुओं से था। 1892 में चंद्रनाथ बसु की किताब- 'हिंदुत्व', प्रकाशित हुई। हिंदुत्व शब्‍द का संभावित सबसे पहला प्रचलित उपयोग इसी किताब में हुआ। यह किताब हिंदुओं को जागृत करने के उद्देश्‍य से लिखी गई थी। जून 1909 के दौरान भारतीय चिकित्सा सेवा के अधिकारी यूएन मुखर्जी द्वारा लिखे गए 'हिंदू: ए डाइंग रेस' पत्रों की एक पूरी श्रृंखला एक समाचार पत्र में छपी। इन पत्रों में बताया गया था कि कैसे मुस्लिम शासकों के देशों पर कब्जा करने से वहां के नागरिकों पर खतरा बढ़ा।

तिलक का हिदुत्व

 तिलक ने 1884 में पहली बार हिंदुइज़्म से अलग हिंदुत्व की परिकल्पना पेश की। उन्होंने बार-बार ब्रिटिश सरकार से अपील की कि धार्मिक तटस्थता की नीति त्यागकर जातीय प्रतिबंधों को कठोरता से लागू करे। जब ब्रिटिश सरकार ने उनके आवेदनों पर ध्यान नहीं दिया तो उन्होंने देशी राजाओं का रुख़ किया। उन्होंने कोल्हापुर के युवा महाराज छत्रपति साहू जी को सलाह दी कि वह हिंदुत्व पर गर्व को लेकर गंभीरता से काम करें और वर्णाश्रम धर्म को कड़ाई से लागू करें।

इसे भी पढ़ें: सिन्हो आयोग: EWS आरक्षण का आधार कांग्रेस ने बनाया, राजनीतिक नुकसान के डर से कदम पीछे हटाया, अब बीजेपी कर रही इसका इस्तेमाल

 सावरकर और हिदुत्व

वर्तमान राजनीतिक विर्मश में जिन्‍हें 'हिंदुत्व' का जनक कहा जाता है। भारत में 'हिंदुत्व की विचारधारा को वीर सावरकर से जोड़ा जाता रहा है। सावरकर के नाम पर देश के तमाम राजनीतिक दलों और बुद्धिजीवियों द्वारा अलग-अलग तरह के तथ्य और तर्क गढ़े जाते रहे हैं। सावरकर ने कहा कि वह हिंदू हैं जो भारत को अपनी मातृभूमि, पितृभूमि और पुण्यभूमि मानते हों। सावरकर ने इस शब्द को लोकप्रिय बनाया और हिंदुत्व नाम से एक पुस्तक भी लिखी थी। सावरकर के वैचारिक दृष्टिकोण को दर्शाती पुस्तक 1923 में 'एसेंसिएल्स ऑफ हिंदुत्व' शीर्षक से प्रकाशित हुई थी। 1928 में इसका प्रकाशन दूसरे शीर्षक 'हिंदुत्व: हू इज ए हिंदू' से हुआ। पुस्तक के टाइटल और लेखक अलग होने की वजह थी कि सावरकर को जेल में लेखन की आजादी नहीं थी। सावरकर ने 'हिंदुत्व' शब्द का प्रयोग अपनी विचारधारा की रूपरेखा बनाने हेतु किया। उनकी इस पुस्तक के बाद 'हिंदुत्व' सामान्य शब्द न रहकर विचारधारा से जुड़ गया। सावरकर ने हिंदू जीवन-पद्धति को अन्य जीवन पद्धतियों से अलग और विशिष्ट रूप में प्रस्तुत किय।

हिंदुत्व का राजनीतिक इस्तेमाल

हिंदुत्व का इस्तेमाल किसी न किसी रूप में इस्तेमाल होता रहा। लेकिन 1990 के दशक में इसका तेजी से राजनीतिक रूप से इस्तेमाल शुरू हुआ। इसके बाद कई राज्य विधानसभा चुनावों में इसका इस्तेमाल किया। 2004 के आम चुनाव में बीजेपी ने इसे जोर-शोर से उठाया। फिर कुछ राजनेता हिंदू आतंकवाद जैसी थ्योरी लेकर सामने आई। घरेलू राजनीति का फायदा उठाने के लिए हमारे ही देश के नेताओं ने एक शब्द की खोज की थी। वो था हिन्दू आतंकवाद। आपको याद होगा एक जमाना था जब हिन्दू आतंकवाद को लेकर देश में चर्चा जोरों पर थी। हिन्दू आतंकवाद कांग्रेस का पसंदीदा टू लाइनर रहा है और दिग्विजय सिंह इसके चैंपियन रहे हैं।  दिग्विजय सिंह ने कहा था कि हेमंत करकरे ने मुंबई हमले से कुछ घंटे पहले मुझे फोन कर कहा था कि उन्हें हिंदू आतंकवादियों से खतरा है, सोची समझी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा लगता है।  

हिंदुत्व को सुप्रीम कोर्ट ने जीवनशैली बताया

11 दिसंबर 1995 में जस्टिस जेएस वर्मा की बेंच ने फैसला दिया था कि  हिंदुत्व शब्द भारतीय लोगों की जीवन शैली की ओर इंगित करता है। हिंदुत्व को केवल धर्म तक सीमित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने हिंदुत्व के इस्तेमाल को रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपुल ऐक्ट की धारा-123 के तहत करप्ट प्रैक्टिस नहीं माना था। 1995 के इस फैसले में हिंदुत्व को जीवन शैली बताया गया था और कहा था कि हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगने से किसी उम्मीदवार पर प्रतिकूल असर नहीं होता। बता दें कि मनोहर जोशी विरुद्ध एनबी पाटिल मामले में यह फैसला आया था। 

अटल बिहारी की हिंदुत्व पर सोच

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जब दसवीं कक्षा में थे तब उन्होंने एक कविता लिखी थी। जिसके शब्द कुछ इस प्रकार थे...

हिन्दु तन मन

हिन्दु जीवन रग रग

हिन्दु मेरा परिचय

उन्होंने एक बार पुणे में भाषण देते हुए हिंदुत्व के बारे कहा था- "मैं  हिन्दू  हूं, ये मैं कैसे भूल सकता हूं? किसी को भूलना भी नहीं चाहिए। मेरा हिंदुत्व सीमित नहीं हैं। संकुचित नहीं हैं मेरा हिंदुत्व हरिजन के लिए मंदिर के दरवाजे बंद नहीं कर सकता है। मेरा हिन्दुत्त्व अंतरजातीय, अंतरप्रांतीय और अंतरराष्ट्रीय विवाहों का विरोध नहीं करता है। हिंदुत्व सचमुच बहुत विशाल है।

-अभिनय आकाश

प्रमुख खबरें

Ammy Virk Birthday: सिंगिंग और एक्टिंग दोनों में सुपरहिट हैं एमी विर्क, इस गाने ने पलट दी किस्मत

Soft Bhature Recipe: घर पर सुपर सॉफ्ट और फ्लफी भटूरे के लिए फॉलो बनाने के लिए फॉलो करें ये टिप्स

Skin Care: अपनी स्किन टाइप के अनुसार चुनें ओवरनाइट रिपेयर मास्क, मिलेगा भरपूर पोषण

Narasimha Jayanti 2025: भगवान नृसिंह की पूजा करने से दूर होता है भय और नकारात्मकता, जानिए पूजन विधि और मुहूर्त