By संतोष पाठक | Sep 12, 2023
भारत की राजधानी दिल्ली में हुआ जी-20 का सफल शिखर सम्मेलन, भारत के लिए कई मायनों में बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण रहा। जी-20 जैसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का सफल आयोजन कर भारत ने दुनिया को यह दिखा दिया कि अब यह भारत वह भारत नहीं है जिसे दुनिया खासतौर से यूरोपीय और अमीर देश सांप-सपेरों के देश के रूप में देखते थे, बल्कि यह नया भारत न केवल उनके साथ खड़ा है बल्कि उनकी समस्याओं का समाधान भी अब इसी भारत के पास है।
रूस यूक्रेन के बीच जारी लड़ाई को लेकर जिस तरह से जी-20 में शामिल देश दो खेमों में बंट गए थे उसे देखते हुए यह आशंका जताई जाने लगी थी कि जी-20 के सम्मेलन में आम सहमति से कोई घोषणा पत्र जारी ही नहीं किया जा सकेगा। एक तरफ जहां चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने भारत ना आकर यह संदेश देने का प्रयास किया कि वह दिल्ली में होने जा रहे जी-20 सम्मेलन को बहुत ज्यादा तवज्जो या यूं कहें कि ज्यादा महत्व देने को तैयार नहीं है तो वहीं दूसरी तरफ रूस के राष्ट्रपति पुतिन के प्रतिनिधि के रूप में जी-20 सम्मेलन में शामिल होने के लिए दिल्ली आए रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने बिना किसी लाग-लपेट के सख्त भाषा में स्पष्ट तौर पर यह कह दिया था कि अगर जी-20 के साझा घोषणा पत्र में यूक्रेन युद्ध पर रूस के पक्ष को ध्यान में नहीं रखा गया तो वह इसे नामंजूर कर देगा। ऐसे में असफलता की प्रबल आशंका के साथ जी-20 का यह सम्मेलन शुरू हुआ और भारत ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए एक तरफ जहां अमेरिका के नेतृत्व में यूरोपीय देशों को साधा तो वहीं दूसरी तरफ रूस को भी तैयार किया। दिल्ली घोषणापत्र की शब्दावली को बदला गया और आखिरकार जी-20 के सभी देशों ने इसको सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया। बाद में कई देशों ने यह माना कि यह सब भारत की सफल कूटनीति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तिगत प्रभाव के कारण ही संभव हो पाया। लेकिन दिल्ली का यह सम्मेलन सिर्फ इस लिहाज से ही महत्वपूर्ण नहीं रहा बल्कि भारत ने जी-20 का सफल आयोजन कर अरब से लेकर अफ्रीका तक चीन की कुटिल रणनीति का पर्दाफाश भी कर दिया। इसे यूं भी समझा जा सकता है कि चीन ने अपनी व्यग्रता में खुद ही अपनी भावना को दुनिया के सामने ला दिया कि वह दुनिया में शांति स्थापित करने की प्रक्रिया, आतंकवाद के खात्मे, क्षेत्रीय अखंडता, देशों की स्वतंत्रता, अफ्रीकी गरीब देशों के विकास और यातायात के साधनों के विकास को लेकर एक ऐसी सोच रखता है जिसमें सिर्फ और सिर्फ उसका ही फायदा हो और इसलिए दिल्ली का यह सम्मेलन इस बात के लिए भी याद रखा जाएगा कि भारत ने कूटनीतिक मोर्चे पर चीन जैसे ताकतवर देश को भी अलग-थलग कर दिया।
भारत की पहल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तिगत प्रयासों की वजह से दिल्ली की बैठक में जी-20 का विस्तार कर इसमें अफ्रीकी संघ को 21वें स्थायी सदस्य के रूप में शामिल किया गया। पीएम मोदी ने बैठक की शुरुआत में ही सदस्य देशों के सामने ग्लोबल साउथ के प्रमुख ब्लॉक अफ्रीकी संघ को जी-20 में शामिल करने का प्रस्ताव रखा जिसको सभी नेताओं ने स्वीकार कर लिया। अफ्रीकी देशों ने इस फैसले का स्वागत करते हुए भारत को धन्यवाद भी कहा। अफ्रीकी संघ में अफ्रीका के 55 देश शामिल हैं और इन देशों की कुल आबादी 1.3 अरब से ज्यादा है और इन सभी 55 अफ्रीकी देशों की कुल जीडीपी 2.99 ट्रिलियन डॉलर है। हालांकि यह भी एक कटु सच्चाई है कि इनमें से कई देशों को चीन ने उसी तरह से कर्ज के जाल में जकड़ रखा है जैसे चीन ने श्रीलंका और अन्य देशों को जकड़ रखा है। ऐसे में इन देशों के संगठन को जी-20 में शामिल कर भारत ने उम्मीद की नई राह दिखाई है तो वहीं दूसरी तरफ जी-20 सम्मेलन से अलग हटकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर की घोषणा कर चीन को एक और बड़ा राजनीतिक झटका दे दिया। इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट में भारत ने अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के अलावा संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, फ्रांस, इटली और जर्मनी को शामिल कर यह तय कर दिया कि यह प्रोजेक्ट 100 फीसदी कामयाब हो और चीन के बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट की तरह सिर्फ छोटे और कमजोर देशों के शोषण का प्रतीक बन कर न रह जाए।
-संतोष पाठक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)