By अभिनय आकाश | Apr 11, 2022
देश की राजधानी दिल्ली में अक्सर फ्रांस की राजधानी पेरिस जैसा बनाने की बातें की जाती है। आपको याद होगा दिल्ली के चुनाव के वक्त आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल ने राजधानी को पेरिस जैसा बना देने का वादा किया था। आज आपको देश की राजधानी दिल्ली से 6 हजार 568 किलोमीटर दूर फ्रांस की राजधानी पेरिस लिए चलते हैं। जहां इन दिनों देश चुनावी माहौल में है। पहले राउंड की वोटिंग हो चुकी है और दूसरे राउंड को लेकर तैयारियां जोरों पर है। आज के इस विश्लेषण में आपको फ्रांस के इतिहास, उसकी राजनीतिक व्यवस्था, चुनावी मुद्दे, उम्मीदवारों की संख्या य़ानी की कुलमिलाकर फ्रांस के चुनाव से जुड़ी हर बारीक जानकारी आपको देंगे। इसके साथ ही बताएंगे की इस चुनाव का केवल फ्रांस ही नहीं बल्कि पूरे यूरोप पर असर पड़ेगा।
यूरोप का मजबूत स्तंभ है फ्रांस
फ्रांस की राज्यक्रांति 1789 ई में लूई सोलहवां के शासनकाल में हुई। 18 वीं शताब्दी के अंत में, फ्रेंच क्रांति ने पूर्ण राजशाही को उखाड़ दिया, और आधुनिक इतिहास के सबसे पुराने गणराज्यों में से एक को स्थापित किया। 14 जुलाई, 1789 ई. को क्रांतिकारियों ने बास्तील के कारागृह फाटक को तोड़कर बंदियों को मुक्त कर दिया. तब से 14 जुलाई को फ्रांस में राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इतिहास की किताबों में हम जिसे फ्रेंच रिवॉल्यूशन के नाम से जानते हैं। फ्रांसीसी क्रांति का प्रभाव केवल फ्रांस तक सीमित नहीं रहा, इस क्रांति का प्रभाव संपूर्ण यूरोप पर पड़ा। 1848 में यूरोप में कुल मिलाकर 17 क्रांतियां हुईं। फ्रांस के बाद वियना, हंगरी, बोहेमिया, इटली, जर्मनी, प्रशा, स्विट्जरलैण्ड, हॉलैण्ड आदि में विद्रोह हुए। विशेष रूप से मध्य यूरोप इतना अधिक प्रभावित हुआ कि वियना कांग्रेस ने जो प्रतिक्रियावादी राजनीतिक ढांचा खड़ा किया था उसकी नींव हिल उठी। फ्रांस संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिणी प्रांत टेक्सास से भी छोटा है। लेकिन उसके पास यूरोप की दूसरी सबसे ताकतवर सेना है। यूरोपीय यूनियन की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी जिसके पास है। विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यस्था का टैग जिसे प्राप्त है। गोल्वब साफ्ट पॉवर इंडेक्स में पहले स्थान पर और दुनिया में सबसे ज्यादा घूमा जाने वाला देश। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, नाटो और यूरोपीय यूनियन का संस्थापक सदस्य। इतनी लंबी-चौड़ी भूमिका बनाने के पीछे का मकसद ये बताना है कि यूरोपीय यूनियन में फ्रांस के बिना कुछ भी संभव नहीं है।
दो राउंड में वोटिंग
फ्रांस में चुनाव हो रहे हैं। पहले राउंड के लिए वोटिंग हो गई है और 24 अप्रैल को दूसरे राउंड में वोट डाले जाएंगे। फ्रांस के वोटर केवल अपने ही देश के भविष्य के लिए वोट नहीं करेंगे बल्कि इससे यूरोप का भविष्य भी तय होगा। ऐसे में फ्रांस की जनता किसे चुनेगी। क्या दूसरी बार इमैनुएल मैक्रों को मौका मिलेगा। या फिर इस बार जनता नये नेता पर भरोसा जताएगी। फ्रांस की कुल आबादी 6 करोड 68 लाख है। जिसमें से चार करोड़ 70 लाख रजिस्टर्ड वोटर है। पिछले चुनाव में 3 करोड़ 50 लाख लोगों ने वोट डाला था। जिसमें से मैक्रों को 2 करोड़ वोट मिले थे जबकि ले पेन को 1 करोड़ वोट मिले थे। खाली वैलेट पेपर 30 लाख छोड़े गए थे जबकि 10 लाख विरोध में फाड़ दिए गए थे।
पहले राउंड के बाद
फ्रांस में राष्ट्रपति चुनाव के पहले चरण के लिए मतदान 10 अप्रैल को हुआ। फ्रांस में राष्ट्रपति चुनाव के पहले चरण के मतदान के बाद फ्रांसीसी पोलिंग एजेंसी ने राष्ट्रपति एमैनुअल मैक्रों के दक्षिणपंथी उम्मीदवार मारिन ली पेन पर बढ़त हासिल किये जाने का अनुमान जताया है। एजेंसी द्वारा जताये गये अनुमान के मुताबिक, पहले चरण के मतदान में जहां मैक्रों को 27 से 29 फीसदी मतदाताओं का समर्थन मिलता दिख रहा है, तो वहीं 23 से 24 फीसदी वोट ली पेन के खाते में जा सकते हैं।
फ्रांसीसी राजनीतिक व्यवस्था कैसे काम करती
फ्रांस एक सेमी प्रेसिडेंसियल डेमोक्रेसी है यानी राष्ट्रपति ही पॉवर सेंटर हैं। जबकि प्रधानमंत्री सरकार को लीड करते हैं। दोनों ही नेशनल असेंबली के प्रति जवाबदेह हैं। राष्ट्रपति का चुनाव फ्रांस की जनता द्वारा पांच साल के लिए किया जाता है, जिसे डायरेक्ट यूनिवर्सल सर्फरेज कहा जाता है। राष्ट्रपति बनने के बाद वही अगले प्रधानमंत्री का चुनाव करते हैं। प्रधानमंत्री सरकार के अन्य लोगों का चयन करते हैं। राष्ट्रपति देश की नीतियों का निर्धारण करते हैं जबकि प्रधानमंत्री सरकार की कार्यवाही को देखते हैं।
कैसे राष्ट्रपति बना जा सकता है
फ्रांस के राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए 500 चुने हुए ऑफिसियल के हस्ताक्षर चाहिए होते हैं। जिनकी संख्या 30 अलग-अलग सरकारी विभागों से होनी चाहिए। उम्मीदवार स्वतंत्र भी हो सकता है और किसी राजनीतिक पार्टी से भी।
प्रमुख चुनावी मुद्दे
जीवन यापन की लागत
बेरोजगारी
स्वास्थ्य सुविधाएं
जलवायु परिवर्तन
क्रय शक्ति
महामारी
इमीग्रेशन
यूक्रेन संकट
उम्मीदवारों की संख्या
इसके संख्या का निर्धारण नहीं किया गया है। 2002 में 16 उम्मीदवार थे तो 2017 में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों की संख्या 11 थी। जबकि 2022 में इनकी संख्या 12 है। सभी उम्मीदवारों को बराबरी के मीडिया प्रसेंस का अधिकार है। यानी टीवी और रेडियो के अलावा बोलने के लिए बराबरी के स्लॉट दिए जाते हैं। सारी प्रक्रिया की कड़ाई के साथ निगरानी की जाती है। इसके अलावा कैंपेन में खर्च होने वाले पैसे को लेकर भी निगरानी रखी जाती है। पहले राउंड में ये रकम 16.9 मिलियन यूरो से अधिक नहीं होनी चाहिए। जबकि दूसरे राउंड में लिमिट 22.5 मिलियन यूरो तक निर्धारित की गई है।
दो राउंड में क्यों वोटिंग
फ्रेंच लोगों का मानना है कि इंसान पहले अपने दिल का प्रयोग करते हुए वोट करता है फिर दिमाग का इस्तेमाल करके करता है। पहले राउंड में सभी उम्मीदवारों के लिए वोटिंग होती है। जिसके बाद जिसे ज्यादा वोट प्राप्त हुए वो अगले राउंड के लिए जाते हैं। सेकेंड राउंड जीतने के बाद 13 मई को वो अपना पदभार संभालता है।
राष्ट्रपति चुनाव के 12 उम्मीदवार
इमैनुएल मैक्रों
मरीन ले पेन
जीन ल्यूक मेलनचोन
एरिक ज़ेमोर
यानिक जादोट
निकोलस डुपोंटे
वैलेरी पेक्रेसी
ऐनी हिडाल्गो
फिलिप पाउटौ
नथाली अर्थौद
जीन लासले
राष्ट्रपति पद के तीन प्रमुख चेहरे
इमैनुएल मैक्रों को चुनाव में चरम दक्षिणपंथी कही जाने वाली मरीन ल पेन से 2017 के चुनाव में कड़ी चुनौती मिली थी। फेनेंक्स के नाम से मशहूर ले पेन साल 2017 के चुनाव में पहले राउंड की मतगणना के बाद दोनों के बीच ज्यादा अंतर भी नहीं था। मरीन ल पेन खुद को राष्ट्रवादी बताती हैं और उन्होंने यह वादा किया था कि अगर वह सत्ता में आती है तो सबसे पहले फ्रांस में इमीग्रेशन से जुड़े नियमों को सख्त बनाएंगे। शरणार्थियों की संख्या में कमी करेंगे। कट्टर इस्लामिक तत्वों के खिलाफ कार्यवाही करेंगे और फ्रांस को यूरोपीय यूनियन से निकालने पर भी विचार किया जाएगा। मरीन ल पेन चाहती थी कि सरकार की तरफ से दी जाने वाली सुविधाएं पहले फ्रांस के आम नागरिकों को मिले बाद में बाहर से आने वाले लोगों को इसका फायदा दिया जाए। लेकिन दक्षिणपंथी नेता ल पेन के प्रदर्शन से फ्रांस की स्थापित पार्टियां इतना घबरा गई थी कि उन्होंने पहले राउंड में अपनी हार के बावजूद इमैनुएल मैक्रों को समर्थन देने का ऐलान कर दिया। यह एक तरह से ल पेन के राष्ट्रवाद के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बनाने जैसा था। इस बार के चुनाव से पहले भी ल पेन ने सार्वजनिक जगहों पर हिजाब को लेकर जुर्माने के प्रावधान जैसी बातें कहकर खूब सुर्खियां बटोरी हैं। 2012 और 2017 में पिछड़ने के बाद मरीन ल पेन तीसरी बार राष्ट्रपति पद के लिए मैदान में हैं। इस बार उनकी जीत के दावे भी कई ओपिनियन पोल्स की तरफ से किए जा रहे हैं। ओपिनियन पोल्स में दूसरे राउंड में 42 प्रतिशत वोट ल पेन को मिलने की संभावना जताई गई है।
टीवी स्टार से राजनेता बने एरिक ज़ेमोर जिन्हें फ्रेंच डोनाल्ड ट्रंप भी कहा जाता है। इस्लाम विरोधी और आप्रवास विरोधी विचारों की वजह से जेमोर की छवि एक फायर ब्रांड नेता के रूप में है। उनका मानना है कि सिर्फ महान शख्स ही फ्रेंच की जनता को बचा सकते हैं। लेकिन जेमोर का खुद के ट्रैक रिकॉर्ड को महान तो कतई नहीं कहा जा सकता है। ज़ेमौर को एक बार फ़्रांस में 2011 में नस्लीय भेदभाव के लिए उकसाने के लिए, और एक बार 2018 में मुसलमानों के खिलाफ घृणा के लिए और साथ ही 2022 के लिए नस्लीय घृणा को उकसाने के लिए दोषी ठहराया गया है। इसके अलावा इस्लाम, इमीग्रेशन, महिलाओँ के मुद्दे को लेकर भी वो अपने बयानों की वजह से विवादों में बने रहते हैं। ओपिनियन पोल में उन्हें तीसरे नंबर पर रखा जा रहा है। दूसरे राउंड में उन्हें 34 प्रतिशत वोट मिलने की संभावना जताई जा रही है।
इमैनुएल मैक्रों को उदारवादी नेता माना जाता है। वो यूरोप के साथ फ्रांस के संबंधों को मजबूत बनाना चाहते हैं। उनका सारा ध्यान देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने पर है। मैक्रों की पत्नी ब्रिजेट उनसे 24 साल बड़ी है। उनका मानना है कि उनकी पत्नी ही उनकी असली ताकत है। एक बार उन्होंने खुद ही बताया था कि वो हर डेढ़ घंटे पर ब्रिजेट को कॉल करते हैं। ब्रिजेट मैक्रों की हाई स्कूल टीचर हुआ करती थी उस वक्त वो केवल 15 साल के थे। माइक्रो के माता-पिता ने जब इस रिश्ते को मंजूरी नहीं दी तो वह अपने माता पिता के खिलाफ चले गए। ब्रिजेट ना सिर्फ उनकी शिक्षक रही हैं बल्कि वैवाहिक राजनीतिक जीवन में भी मैक्रों उन्हें अपना गुरु मानते हैं। अप्रैल 2016 में मैक्रों ने 'एन माशेर्' नाम से एक नई राजनीतिक पार्टी बनाई। फ्रांस की स्थापित पार्टियों के 11 उम्मीदवारों को हराकर दूसरे राउंड में पहुंचे और बड़े अंतर से जीत दर्ज की। ओपिनियन पोल मैक्रों को एक बार फिर से फ्रांस में वापसी करते हुए दर्शा रहे हैं। दूसरे राउंड में उन्हें 53 प्रतिशत लोगों का समर्थन प्राप्त होने की संभावना है।
फ्रांस के चुनाव का व्यापक प्रभाव
फ्रांस के चुनाव परिणाम का व्यापक अंतरराष्ट्रीय प्रभाव होगा क्योंकि यूरोप रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के यूक्रेन पर आक्रमण से पैदा हुए संकट को रोकने के लिए संघर्ष कर रहा है। मैक्रों ने रूस पर यूरोपीय संघ (ईयू) के प्रतिबंधों का पुरजोर समर्थन किया है जबकि ले पेन (53) ने फ्रांस के लोगों के जीवन स्तर पर उनके प्रभाव को लेकर चिंता जताई है। मैक्रों नाटो के भी प्रबल समर्थक रहे हैं और यूरोपीय संघ के 27 सदस्यों के साथ घनिष्ठ संबंध रखते हैं। राष्ट्रपति मैक्रों दूसरी बार पांच साल के कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ रहे हैं और उन्हें दक्षिणपंथी पार्टी से कड़ी चुनौती मिल रही है। मैक्रों के अलावा दक्षिणपंथी उम्मीदवार ले पेन और वामपंथी नेता ज्यां-लुस मेलेंकोन राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल प्रमुख उम्मीदवारों में शामिल हैं।
-अभिनय आकाश